मिल बाँट कर खाना हमारी खासियत है. सच पूछो तो यही खासियत हम राजनीतिबाजों की सफलता का राज है. भगवान और जनता ने एक बार फिर हमें मौका दिया है सत्ता को बांटकर खाने का. बहुत पुराने खिलाडी हैं हम सत्ता को बांटने के. खिलाडी क्या चेम्पियन नंबर वन हैं. सत्ता के लिए तो हमने देश को भी बाँट दिया था. शायद हमारी यही बात जनता को बहुत पसंद आती है.
हम बांटते हैं. जम कर बांटते हैं. पर इस बांटने में हमारा एक सिद्धांत है - 'अँधा बांटे रेवडी, अपने अपनों को दे'. इस सिद्धांत पर चलने से कुछ लोग हमसे नाराज भी रहते हैं, पर इसका एक जबदस्त फायदा है कि हमारे वफादारों की गिनती बहुत ज्यादा है. इन वफादारों में हर समय एक होड़ लगी रहती है यह दिखाने की कि कौन बड़ा वफादार है. अंग्रेज भी हमसे इस बात पर ईर्ष्या करते हैं. वफादार तो उनके भी थे पर हमारे वफादारों जैसे नहीं. हमने अपने एक वफादार को पहले से ही गद्दी का मालिक बना दिया था. उसे कहा कि तुम चुनाव भी मत लडो, कहीं हार गए तो मुश्किल हो जायेगी. दूसरों को लड़ने दो. इस वफादार ने कभी सपने में भी हम पर अविश्वास नहीं किया. हमने उसकी वफादारी का पूरा ईनाम दिया है उसे. वाकी सब वफादारों के लिए एक मिसाल है यह. हमने फिर अपना वादा निभाया - 'तुम हमें अपनी वफादारी दो हम तुम्हें सत्ता में हिस्सा देंगे'.
पिछले कई दिनों से हमारे यहाँ सत्ता का वंटवारा चल रहा है. देश के कौने-कौने से हमारे वफादार इस महान आयोजन में भाग लेने आये हैं. हमारे इन वफादारों के अपने-अपने वफादार हैं, जिन के लिए इन्होनें आगे सत्ता का वंटवारा करना है. हमारे एक वफादार चल नहीं सकते इसलिए पहिये वाली कुर्सी पर आये हैं. आखिर उन्हें अपने बेटे और बेटी के लिए सत्ता का एक टुकडा लेना है. हमने सबको यही कहा है कि सब को वफादारी का ईनाम मिलेगा. हो सकता है किसी को उसकी आशा के अनुसार न मिले, पर मिलेगा सब को.
कुछ पुराने वफादार पता नहीं किस भ्रम में चुनाव से पहले हमें धमकियाँ देने लगे थे, पर अब सही रास्ते पर आ गए हैं और हमारे दरवाजे पर लाइन लगा कर 'भिक्षाम देही मां' की गुहार लगा रहे हैं. इसको भी कुछ न कुछ भिक्षा तो हम देंगे ही, पर कब यह नहीं कहा जा सकता. सही रास्ते से भटक गए थे. इसकी कुछ सजा तो जरूर मिलेगी इन्हें.
हमारी प्यारी जनता को हमारा बहुत सारा धन्यवाद. अब जनता का काम समाप्त हुआ. अब पाँच वर्ष बाद हम फिर जनता से वोट डालने का काम करवाएंगे. तब तक इस बंटवारे के बाद अगर कुछ बचता है तो जनता को भी कुछ मिल जाएगा, पर इस की उम्मीद कुछ कम है. ऐसे-ऐसे मोटे पेट वाले वफादारों से कुछ नहीं बच पायेगा. बैसे भी जनता तो आदी हो गई है यह सब झेलने की. मंहगाई, आतंकवाद, असुरक्षा जैसे मुद्दों से हमें डर लग रहा था, पर जनता को कोई डर नहीं लगा, कोई नाराजी नहीं हुई. फिर हमें वोट डाल दिया. फिर हमें आदेश दे दिया, तुम ही सत्ता का सुख भोगो. अब हम कैसे जनता के इस आदेश की अवहेलना करें? सत्ता का सुख तो भोगना ही पड़ेगा. अब हम सुख भोगेंगे तो जनता दुःख भोगेगी. जनता का त्याग महान है. हम इस त्यागी जनता को नमस्कार करते हैं.
हम आज ऐसे समाज में रहते हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है और हम सबके लिए नए तनावों की स्रष्टि कर रहा है. पर साथ ही साथ समाज में घट रही बहुत सी घटनाएं हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं. हमारे तनाव, भले ही कुछ समय के लिए, कम हो जाते हैं. हर घटना का एक हास्य-व्यंग का पहलू भी होता है. इस ब्लाग में हम उसी पहलू को उजागर करने का प्रयत्न करेंगे.
भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.
Friday, May 22, 2009
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