भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.

Wednesday, January 27, 2010

दूसरों को नसीहत, खुद मादाम फजीहत

उन्होंने कहा कानून बनाओ,
अपराधी चुनाव न लड़ सकें,
कुछ ऐसा कर दिखाओ.
उन्होंने आज यह कहा,
मैं न जाने कब से कह रहा हूँ,
पर मैं एक आम आदमी हूँ,
वह उस पार्टी की मालकिन हैं,
जिसकी सरकार है इस देश में,
मेरी किसी ने न सुनी,
उनकी सब सुन रहे है,
पर यह कोई नहीं सोचता,
कि वह कानून बना सकती हैं,
पर बनाती नहीं बस बात करती हैं,
कम से कम यह तो कर सकती हैं,
अपनी पार्टी में सभी अपराधियों को,
पार्टी से निकाल सकती हैं,
पर वह ऐसा करेंगी नहीं,
वह आम आदमी नहीं हैं,
वह एक राजनीतिबाज हैं,
बचपन में पढी थी एक कहावत,
दूसरों को नसीहत,
खुद मादाम फजीहत.

Sunday, January 17, 2010

रामपुर का डाक्टर

उत्तर प्रदेश में रामपुर,
रामपुर में एक डाक्टर,
डाक्टर का एक मरीज,
मरीज का रक्त चाप गिर गया,
सुगर लेबल भी कम हो गया,
सब लोग घबड़ाए,
पर डाक्टर जी मुस्कुराए,
मरीज को ले चलो बरेली,
करूंगा में एंजियोग्राफी,
दस हजार का खर्चा आएगा,
सब ठीक हो जाएगा.

मरीज अड़ गया दिल्ली जाऊँगा,
जिस डाक्टर ने बाई पास किया था,
उसी से एंजियोग्राफी करवाऊंगा,
सुन कर डाक्टर उदास हो गए,
बोले में उन्हें चिट्ठी लिख देता हूँ,
मन में सोचा दस हजार नहीं,
कुछ कमीशन ही सही,
कडकडाती सर्दी, घने कोहरे में,
सात घंटे के सफ़र के बाद,
मरीज दिल्ली पहुंचा,
पहले तो डाक्टर ने मना किया,
कोई जरूरत नहीं वह बोला,
पर मरीज घबड़ा रहा था सो मान गया,
टेस्ट हुआ, सब ठीक निकला,
मरीज की जान में जान आई,
पर बीस हजार के नीचे आ गया,
वाह रे डाक्टर, वाह री डाक्टरी,
सेवा का धंधा,
बन गया पैसे कमाने की मशीन.

Friday, January 15, 2010

तीन सवाल ???

पडोसी देश ने,
हड़प ली जमीन हमारी,
इंच-इंच करके,
पर सरकार सोती रही,
कुछ न कर पाई,
न ही कुछ करना चाहा,
क्या देश सुरक्षित है,
ऐसी सरकार के हाथों में?

एक लेखक की किताब,
खूब बिकी, खूब बिकी,
परम्परा के अनुसार,
उन्होंने एक लेख में लिखा,
कश्मीर दे दो पाकिस्तान को,
किसी ने कुछ नहीं कहा,
न कोई फतवा,
न ही कोई भर्त्सना,
क्या देश सुरक्षित है,
ऐसे लेख्कों के हाथों में?

मैं दिल्ली में रहता हूँ,
बड़ा अजीब लगता है,
प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री,
अक्सर बयान देते हैं,
दिल्ली को बनायेंगे,
सबसे खूबसूरत शहर,
मेरी कालोनी के पार्क में,
घुमते हैं कुत्ते और सुवर,
क्या मेरा शहर सुरक्षित है,
ऐसे नेताओं के हाथों में?

Friday, January 8, 2010

ममता दी की झटका गाड़ी

ममता दी की झटका गाड़ी,
शताब्दी एक्सप्रेस उसका नाम,
दिल्ली कालका के बीच चलती,
हर रोज सुबह और शाम.

पहला झटका दिया सुबह जब,
प्लेटफार्म से निकली बाहर,
सारे झटके गिन नहीं पाया,
उतर गया चंडीगढ़ जाकर.

सुपर फास्ट कहलाती है वह,
पर चलती कछुए की चाल,
कभी तेज चलते नहीं देखा,
मर्जी जहाँ वहीं रुक जाती.

रुकती है तो झटका देती,
चलती है तो झटका देती,
चलते-चलते झटका देती,
रुलते-रुकते झटका देती.

लालू जी की झटका गाड़ी,
अब है ममता दी की गाड़ी,
लालू बदल गए ममता में,
पर नहीं बदले झटके इसके.

ममता दी की झटका गाड़ी,
ममता दी की झटका गाड़ी.
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