भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.

Saturday, March 7, 2009

हमारी तो आदत है यह !!!

क्या हो गया अगर हमने गांधी जी की व्यक्तिगत बस्तुओं को भारत लाने में मिली सफलता को अपनी पार्टी और सरकार की सफलता कह दिया तो? यह तो हमारी आदत है. हमने हमेशा हर सफलता को अपने खाते में लिखा है, और हर विफलता को दूसरों के खाते में. देश को आज़ादी मिली तो हमने दिलाई. जो मर गए, फांसी पर लटक गए, वेबकूफ थे. यह हमारा पहला महान काम था. इस में तो हमने गाँधी जी को भी किनारे कर दिया. सारा श्रेय हमने अपने परिवार और पार्टी को दे दिया. उसके बाद से हम लगातार ऐसे महान काम करते चले आ रहे हैं. 

आज देश के कितने शिक्षा मंदिर, अस्पताल, सड़कें, इमारतें, सरकारी योजनायें, सब हमारे परिवार के नाम पर चलती हैं. अपनी हर पीढी को भारत रत्न दिया है हमने. कुछ वबकूफ़ लोगों ने पिछले प्रधान मंत्री को भारत रत्न देने का चक्कर चलाया. हमने उन्हें उनकी जगह दिखा दी. हमारी पार्टी को हराकर प्रधानमंत्री बनने वाला व्यक्ति भारत रत्न कैसे हो सकता है? इतनी सी सीधी बात भी इन वेबकूफों की समझ में नहीं आई. हमारी पार्टी की मालिकिन की तस्वीर हर सरकारी विज्ञापन में छपती है. इस पर भी कुछ वेबकूफ ऐतराज करते हैं. करते रहें और जलते रहें. हमें क्या फर्क पड़ता है. 

'जय हो' को आस्कर मिला तो उस का श्रेय हमें जाता है. इससे पहले ओलम्पिक में पहला स्वर्ण पदक भी हमारी वजह से मिला. और भी बहुत से महान कार्य हमने किये हैं पर इस समय याद नहीं आ रहे. यह तो वेबकूफी हैं उन लोगों की जो इसे अपनी व्यकिगत सफलता मानते हैं. 

आओ और हमारी जय-जयकार करो. तुमने भी अगर कुछ अच्छा किया है तो उस का श्रेय हमें दो. यही तुम्हारा कर्तव्य है. अपना कर्तव्य पूरा करो. नहीं तो हमारी मालकिन को अच्छा नहीं लगेगा. 

Thursday, March 5, 2009

मैं हूँ न !!!

राजमाता के चरणों में शत-शत नमन. 

आप क्यों चिंता करती हैं राजमाता? आपकी लोक सभा के लिए चुनावों का कार्यक्रम आपके चुनाव आयोग ने घोषित कर दिया है. चुनाव होंगे और जरूर होंगे. आप चाहती हैं, चुनाव निष्पक्ष हों, देश के अन्दर और देश के बाहर सारी दुनिया को लगे कि चुनाव निष्पक्ष हुए हैं, इसलिए चुनाव निष्पक्ष होंगे. मेरी निष्पक्ष चुनाव की परिभाषा वही है जो आपकी है - केवल वही चुनाव निष्पक्ष है जिस में राजमाता की पार्टी जीतती है. इसलिए आप कोई चिंता न करें. में हूँ न. 

मेरे खिलाफ शिकायत थी. मेरे बड़े  आयुक्त भाई ने उस पर जांच की और मुझे दोषी पाया. मुझे पद से हटाने की सिफारिश कर दी राष्ट्रपति को. शिकायत भी सही थी, जांच भी सही थी, सिफारिश भी सही थी, पर बड़े भाई यह भूल गए कि सत्य वही होता है जिसे राजमाता सत्य कहें. राष्ट्रपति ने आपके निर्देश को सत्य माना और सबको धता बता दी. अब बड़े भाई के हटते ही मैं बड़ा भाई हो जाऊँगा. उसके बाद आपको कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है - मैं हूँ न. 

यह देश आपका है, इस देश की राष्ट्रपति आपकी हैं, इस देश के उपराष्ट्रपति आपके हैं. इस देश के प्रधान मंत्री आपके हैं. सारे  मंत्री आपके हैं. अब इस देश के चुनाव आयोग का मुखिया भी आपका है. यह सब लोग रात-दिन यही कहते रहते हैं - हम हैं न. चुनाव के मामले में भी आप कोई चिंता न करें - मैं हूँ न. 
 
मैं तो यह कहूँगा कि चुनाव की आवश्यकता ही क्या है. लोग नामांकन पत्र भरेंगे. जांच के बाद बस 'हाथ' वाले उम्मीदवार का पर्चा सही पाया जायेगा. बाकी सारे पर्चे किसी न किसी कारण से अस्वीकार कर दिए जायेंगे. सारे 'हाथ' वालों को निर्विरोध निर्वाचित कर दिया जायेगा. जिनको विरोध करना है करेंगे. सारा संसार देखेगा कि भारत में सबको विरोध करने का अधिकार है. सब यही कहेंगे कि सच्चा प्रजातंत्र है भारत. मुझे चुनाव आयोग का मुखिया बनाने में आपने भारतीय जनता और अदालत को जैसे धता बताई वैसे ही मैं भी धता बता दूंगा. आप चिंता न करें - मैं हूँ न. 

आप नाराज न हों. मैंने तो बस एक राय दी थी. ठीक है मैं समझ गया. मुझे अपनी औकात में रहना है.  आप चाहती हैं कि सब कुछ सही तरह से हो. मुझे जो गलत करना है वह भी सही तरह से हो. जहाँ सही करने से 'हाथ' को फायदा हो वहां सही करना है. यहाँ गलत करने से फायदा हो वहां गलत करना है. मतलब यह कि हर हाल में 'हाथ' को ही फायदा होना चाहिए. आप चिंता न करें ऐसा ही होगा - मैं हूँ न. 

इस पत्र को पढ़ कर जला दीजियेगा. 

आपका

मैं हूँ न. 

Monday, March 2, 2009

भारत की सबसे अच्छी नौकरी की जगह खाली है !!!

इस देश में अगर सबसे आसान काम कोई है तो वह है लोक सभा, विधान सभा, नगर निगम की सदस्यता की नौकरी. एक बार इन संस्थाओं में नौकरी पा जाइए और पांच वर्षों तक ऐयाशी कीजिए. बस यह स्थाई नौकरी नहीं है. आपको हर पांच वर्ष बाद नए सिरे से एप्लाई करना पड़ता है. पर खासबात यह है कि आपको जीवन भर पेंशन मिलती है. बस एक दिन हाजिरी लगा दीजिये और जीवन भर पेंशन का मजा लीजिये.

ऐसी नौकरी आपको कहीं नहीं मिलेगी. कोई काम नहीं, बस आराम ही आराम. दफ्तर साल में कुछ ही दिन खुलता है. इन दिनों में भी जब तब दफ्तर कुछ समय के लिए बंद हो जाता है (इसे इन दफ्तरों की भाषा में सत्र स्थगित होना कहते हैं). मान लीजिये आज आपका मूड नहीं है दफ्तर में बैठने का, तो कोई भी बात लेकर चिल्लाना शुरू कर दीजिये. इन दफ्तरों में एक कुआँ होता है, उसमें खड़े हो जाइए और चिल्लाते रहिये. मास्टरजी चुप कराने की कोशिश करेंगे. चुप मत होइए. और ज्यादा चिल्लाइये. मास्टरजी दुखी होकर छुट्टी कर देंगे.

किसी और दफ्तर में अगर आप कोई अपराध कर देंगे, जैसे रिश्वत लेना, मार-पीट करना, तब आपको सजा मिलेगी, पर इन दफ्तरों में आपको इन अपराधों की कोई सजा नहीं मिलती. इस नौकरी के लगते ही आप मान्यवर हो जाते हैं. नौकरी से पहले आपकी फोटो लोकल थाने में लगी है. मोहल्ले में कोई भी अपराध हो, पुलिस आपको थाने ले जाती है और धुलाई करती है. इन दफ्तरों में किसी तरह नौकरी हथिया लीजिये, वही पुलिस आपको सलाम करेगी और सुरक्षा प्रदान करेगी. आखिर आप दस-नम्बरी से मान्यवर हो गए हैं यह नौकरी लगते ही.

यह संस्थायें सही अर्थों में सेकुलर हैं. किसी भी धर्म का व्यक्ति हो इन संस्थाओं में नौकरी पा सकता है. यह संस्थायें सब को एक निगाह से देखती हैं. ऐसा या तो भगवान करते हैं या यह संस्थायें. आप पढ़े-लिखे हैं, आप अंगूठा-टेक हैं, कोई अंतर नहीं. आप ईमानदार हैं, आप परले दर्जे के बेईमान हैं, कोई अंतर नहीं. आपने जीवन में एक चींटी भी नहीं मारी, आपने कितने ही इंसानों को टपका दिया है, कोई अंतर नहीं. मतलब यह कि कोई भी हो, देव या दानव, सबको यहाँ नौकरी मिल सकती है.

आज कल भारत देश के सब से बड़े ऐसे दफ्तर में जगह खाली हो रहीं हैं. जल्दी ही विज्ञापन आने वाला है. ५०० से अधिक नौकरियां हैं. कोई जुगाड़ लगाइए और इस दफ्तर में एक नौकरी हथिया लीजिये. आपकी सात पुश्तें तर जायेंगी. तनख्वाह भी अच्छी है. फ्री मकान मिलता है. फ़ोन, विजली, पानी सब फ्री है. सारे भारत में घूमने का फ्री टिकट मिलता है, रेल और हवाई जहाज का. दफ्तर अटेंड करने का भत्ता भी मिलता है. और भी सारे भत्ते हैं. जब आपको नौकरी मिल जायेगी तो सब पता लग जायेगा. मतलब आपके दोनों हाथों में लड्डू (नहीं नहीं, नोटों की गड्डियां) होंगी. कुछ और गोटी फिट हो गई तो नोट ले जाने के लिए सूटकेस की जरूरत भी पड़ सकती है. नौकरी लगते ही कुछ बड़े सूटकेस खरीद लीजियेगा.

तो क्या ख्याल है, एप्लाई कर रहे हैं न? अगर हाँ, तो हमारी हार्दिक शुभकामनाएं.
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