इस देश में अगर सबसे आसान काम कोई है तो वह है लोक सभा, विधान सभा, नगर निगम की सदस्यता की नौकरी. एक बार इन संस्थाओं में नौकरी पा जाइए और पांच वर्षों तक ऐयाशी कीजिए. बस यह स्थाई नौकरी नहीं है. आपको हर पांच वर्ष बाद नए सिरे से एप्लाई करना पड़ता है. पर खासबात यह है कि आपको जीवन भर पेंशन मिलती है. बस एक दिन हाजिरी लगा दीजिये और जीवन भर पेंशन का मजा लीजिये.
ऐसी नौकरी आपको कहीं नहीं मिलेगी. कोई काम नहीं, बस आराम ही आराम. दफ्तर साल में कुछ ही दिन खुलता है. इन दिनों में भी जब तब दफ्तर कुछ समय के लिए बंद हो जाता है (इसे इन दफ्तरों की भाषा में सत्र स्थगित होना कहते हैं). मान लीजिये आज आपका मूड नहीं है दफ्तर में बैठने का, तो कोई भी बात लेकर चिल्लाना शुरू कर दीजिये. इन दफ्तरों में एक कुआँ होता है, उसमें खड़े हो जाइए और चिल्लाते रहिये. मास्टरजी चुप कराने की कोशिश करेंगे. चुप मत होइए. और ज्यादा चिल्लाइये. मास्टरजी दुखी होकर छुट्टी कर देंगे.
किसी और दफ्तर में अगर आप कोई अपराध कर देंगे, जैसे रिश्वत लेना, मार-पीट करना, तब आपको सजा मिलेगी, पर इन दफ्तरों में आपको इन अपराधों की कोई सजा नहीं मिलती. इस नौकरी के लगते ही आप मान्यवर हो जाते हैं. नौकरी से पहले आपकी फोटो लोकल थाने में लगी है. मोहल्ले में कोई भी अपराध हो, पुलिस आपको थाने ले जाती है और धुलाई करती है. इन दफ्तरों में किसी तरह नौकरी हथिया लीजिये, वही पुलिस आपको सलाम करेगी और सुरक्षा प्रदान करेगी. आखिर आप दस-नम्बरी से मान्यवर हो गए हैं यह नौकरी लगते ही.
यह संस्थायें सही अर्थों में सेकुलर हैं. किसी भी धर्म का व्यक्ति हो इन संस्थाओं में नौकरी पा सकता है. यह संस्थायें सब को एक निगाह से देखती हैं. ऐसा या तो भगवान करते हैं या यह संस्थायें. आप पढ़े-लिखे हैं, आप अंगूठा-टेक हैं, कोई अंतर नहीं. आप ईमानदार हैं, आप परले दर्जे के बेईमान हैं, कोई अंतर नहीं. आपने जीवन में एक चींटी भी नहीं मारी, आपने कितने ही इंसानों को टपका दिया है, कोई अंतर नहीं. मतलब यह कि कोई भी हो, देव या दानव, सबको यहाँ नौकरी मिल सकती है.
आज कल भारत देश के सब से बड़े ऐसे दफ्तर में जगह खाली हो रहीं हैं. जल्दी ही विज्ञापन आने वाला है. ५०० से अधिक नौकरियां हैं. कोई जुगाड़ लगाइए और इस दफ्तर में एक नौकरी हथिया लीजिये. आपकी सात पुश्तें तर जायेंगी. तनख्वाह भी अच्छी है. फ्री मकान मिलता है. फ़ोन, विजली, पानी सब फ्री है. सारे भारत में घूमने का फ्री टिकट मिलता है, रेल और हवाई जहाज का. दफ्तर अटेंड करने का भत्ता भी मिलता है. और भी सारे भत्ते हैं. जब आपको नौकरी मिल जायेगी तो सब पता लग जायेगा. मतलब आपके दोनों हाथों में लड्डू (नहीं नहीं, नोटों की गड्डियां) होंगी. कुछ और गोटी फिट हो गई तो नोट ले जाने के लिए सूटकेस की जरूरत भी पड़ सकती है. नौकरी लगते ही कुछ बड़े सूटकेस खरीद लीजियेगा.
तो क्या ख्याल है, एप्लाई कर रहे हैं न? अगर हाँ, तो हमारी हार्दिक शुभकामनाएं.
हम आज ऐसे समाज में रहते हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है और हम सबके लिए नए तनावों की स्रष्टि कर रहा है. पर साथ ही साथ समाज में घट रही बहुत सी घटनाएं हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं. हमारे तनाव, भले ही कुछ समय के लिए, कम हो जाते हैं. हर घटना का एक हास्य-व्यंग का पहलू भी होता है. इस ब्लाग में हम उसी पहलू को उजागर करने का प्रयत्न करेंगे.
भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.
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5 comments:
आपने बताया नही Bio-Data कहा भेजना है
हूँ! तो आपने अप्लाई किया क्या?
अजी हमारे पास तो न पैसा है और न ही सिफारिश.अब आप बताऎं कि नौकरी कैसी मिलेगी?
प्रणाम
सुझाव तो बहुत अच्छा है पर नौकरी मिलना आसान नहीं है , बिना कंसल्टेंसी के अप्लाई करने पर जमानत तो जब्त होगी साथ में जान का भी खतरा है , और कंसल्टेंसी की फीस बहुत महँगी है और अपराधिक छवि न होने पर वरीयता भी नहीं है .
कोई जुगाड़ का इन्तजाम हो तो बताईये..खर्चा समझ लेंगे बाहर.
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