भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.

Wednesday, December 31, 2008

नए साल के चुटकुले

नए साल पूर्व की शाम थी. एक आदमी बार में बैठा था. उसके सामने एक पैग रखा था, पर वह उसे पी नहीं रहा था, बस दुखी होकर देखे जा रहा था. एक घंटा हो गया ऐसा चलते हुए. एक गुंडा सा दिखने वाला ट्रक ड्राइवर आया और उसका पैग उठा कर सारी शराब पी गया. यह देख कर वह आदमी रोने लगा. सब लोग इस तरफ़ ही देखने लगे. ट्रक ड्राइवर लज्जित हो गया. उसने कहा, "मैं तुम्हारे दूसरा पैग मंगाता हूँ, रो मत, मैं किसी आदमी को रोते हुए नहीं देख सकता". 
वह आदमी बोला, "नहीं ऐसी बात नहीं है, मैं तो अपने भाग्य पर रो रहा हूँ. आज का दिन मेरी जिंदगी का सब से ख़राब दिन है. पहले मैं देर तक सो गया और आफिस लेट पहुँचा. बॉस गुस्से से पागल हो गया और मुझे नौकरी से निकाल दिया. जब मैं आफिस से बाहर आया तो पता चला किसी ने मेरी कार चुरा ली है. मैं पुलिस स्टेशन गया. पुलिस ने कहा कि वह मेरी कोई मदद नहीं कर सकती. मैं टैक्सी लेकर घर पहुँचा. पता चला मेरा पर्स कहीं गिर गया है. टेक्सी वाले ने खूब गालियाँ दी और जाते-जाते एक थप्पड़ मार गया. जब में घर के अन्दर पहुँचा तो पाया कि मेरी पत्नी माली के साथ सो रही है. मैंने घर छोड़ दिया और इस बार में चला आया. शराब में जहर मिला कर उसे पीने जा रहा था कि तुम ने आकर उसे पी लिया. नया साल आने ही वाला है. समझ में नहीं आता क्या करुँ? क्या तुम्हें नए साल की मुबारकवाद दूँ?"

हे भगवान्, मैं अपने बिस्तर से बोल रहा हूँ, आज से नया साल शुरू हो रहा है, अभी तक सब ठीक है, मैंने गप्पें नहीं मारी, मैंने लालच नहीं किया, मैंने किसी को बुरा नहीं कहा, किसी औरत पर बुरी नजर नहीं डाली, किसी को धोखा नहीं दिया, किसी का अपमान नहीं किया. कुछ ही मिनट में मैं बिस्तर से बाहर आ रहा हूँ. उस के बाद मुझे तेरी मदद की जरूरत पड़ेगी. 

एक राजनीतिबाज से किसी ने पूछा कि उसकी शराब पीने के बारे में क्या राय है? राजनीतिबाज ने उत्तर दिया, "अगर तुम उस जहरीले ड्रिंक के बारे पूछ रहे हो जो दिमाग ख़राब कर देता है, शरीर का नाश कर देता है, पारिवारिक जीवन को नष्ट कर देता है, इंसान को पापी बना देता है, तो मैं उस के सख्त ख़िलाफ़ हूँ. लेकिन अगर तुम उस सोमरस के बारे में पूछ रहे हो जो नए साल का टोस्ट है, सर्दी से बचाव करता है, जिसके बिना पार्टी में जान नहीं आती, तब मैं उसका पूरा समर्थन करता हूँ. 

नया साल शुरू करने के लिए उन्होंने आई क्यु टेस्ट लिया और नतीजा निगेटिव आया. 

नए साल की पार्टी के बाद जोगिंग करने का एक नुक्सान यह है कि ग्लास से बर्फ बाहर गिर जाती है.

नए साल पर वह कोई बुरी आदत छोड़ना चाहते थे. उन्होंने शराब छोड़ने के लिए उसकी बुराइयों के बारे में सोचना शुरू किया और कुछ देर बाद सोचना छोड़ दिया. 

नए साल की पार्टी में उन्होंने अपने दोस्त से एक सिगरेट मांगी. दोस्त ने कहा, "तुमने तो नए साल पर संकल्प किया था कि धूम्रपान छोड़ दोगे". "यह सही है", उन्होंने कहा, "अभी में उस संकल्प के आधे में हूँ, मैंने सिगरेट खरीदना बंद कर दिया है". 

आप सबको नए साल की शुभकामनाएं, (यह चुटकुला नहीं है). 

Saturday, December 27, 2008

काश मेरा जन्मदिन रोज होता!!!

कल मैं आगरा में था. मेरी एक क्लाइंट कम्पनी में आडिट था. बात छिढ़ गई, चायावती के जन्मदिन पर पैसे इकट्ठे करने की. कम्पनी के मालिक ने बताया कि आगरा से २० करोड़ रुपये इकट्ठे होने हैं. औरैया में एक इंजिनियर की ५० लाख न देने पर हत्या कर दी गई, इस बात का संकेत भी दिया जा रहा है.  लोग डरे हुए हैं, पर यह नहीं समझ पा रहे हैं कि व्यापार में चल रही मंदी के समय चायावती के जन्मदिन पर देने के लिए पैसा कहाँ से लायें. अगर नहीं लाये तो कहीं हमारी हालत भी उस इंजिनियर जैसी न हो'. 

यह बात तो रही उनकी जिन्हें कहा जा रहा है, पैसा दो या मौत लो. अब उनकी बात करें जिन्हें यह पैसा देना है. कल चायावती ने अपने एक परम भक्त से कहा, कि काश मेरा जन्मदिन रोज होता!!!

Thursday, December 25, 2008

भारत में नरबली चढ़ाना अपराध है

दो दोस्त जंगल में जा रहे थे. 
अचानक सामने से भालू आ गया. 
एक दोस्त तुंरत स्पोर्ट्स शूज पहनने लगा.
दूसरे दोस्त ने पुछा, 'स्पोर्ट्स शूज क्यों  पहन रहे हो? तुम भालू से तेज नहीं भाग सकते?'
पहला दोस्त बोला, 'भालू से नहीं, तुमसे तेज भागना है'. 

जब वह किसी बिजनिस में सफल नहीं हुए तब उन्होंने राजनीति का बिजनिस शुरू किया. ख़ुद कांग्रेस में, पत्नी बीजेपी में, बेटा एसपी में, बेटी बीएसपी में, बेटे की बहू सीपीएम में. किसी ने पूछा तो बोले, ;देखें, इस बार बिजनिस सफल कैसे नहीं होता?'

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री ने फरमाया, 'अजमल कसाब नहीं, पंतुले हमारा आदमी है'.

एक आतंकवादी ने दूसरे आतंकवादी से पूछा, 'यार, यह देवघोदा और मुजराल कौन हैं और उन्हें हमसे क्या खतरा है?'
'पता नहीं यार, पर तुम क्यों पूछ रहे हो?' दूसरा आतंकवादी बोला.
'यार, भारत में एसपीजी उनकी सुरक्षा करती है', पहला आतंकवादी ठोडी खुजाता हुआ बोला.  

'भारत में नरबली चढ़ाना अपराध है', मास्टरजी ने क्लास में बताया. 
एक छात्र बोला, 'अगर यह सही है तो एक एम्एलऐ ने मुख्यमंत्री छायावती के जन्मदिन पर एक इंजिनीयर की बलि क्यों चढ़ाई?' 

एक कांग्रेसी ने फरमाया, 'पिदम्बरम महान हैं, उन्होंने एनएसजी के चार हब बना दिए हैं, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई में. अब आतंकी हमले में एनएसजी तुंरत पहुँच जायेंगे'. 
दूसरा कांग्रेसी बोला, 'इसी पिदम्बरम ने, जब वित्त मंत्री था एनएसजी की यह मांग खारिज कर दी थी'. 
तीसरा कांग्रेसी बोला, 'अबे धीरे से बोल, किसी ने सुन लिया तो मुफ्त में मारा जायेगा. तू कोई मुसलमान नहीं है जो पंतुले की तरह बच जायेगा'. 

Friday, December 19, 2008

कुछ सरकारी बयान (चुटकुले)

समय का महत्त्व और रेल मंत्रालय 
"यदि आप समय पर अपने गंतव्य पर पहुँचना चाहते हैं तब भारतीय रेल से यात्रा न करें. समय की हमारे लिए कोई कीमत नहीं है"

कर्तव्य और अधिकार वनाम उत्पाद और सेवा निर्माता
"ग्राहक को तंग करना हमारा कर्तव्य भी है और अधिकार भी"

किसके बफादार किसके गले पड़े!
मार्च १९६० में अर्जुन सिंह ने नेहरू से कहा - जीवन भर आपका और आपके परिवार का बफादार रहूँगा. इस बफादारी का ईनाम दिया देश ने. बफादारी एक परिवार की और भुगत रहा है देश.

सरकार और ग्राहक
दिल्ली सरकार ने विज्ञापन छापा, 'ग्राहक जागो', और ख़ुद सो गई.
"हम पानी और बीमारियाँ बेचते हैं" - दिल्ली जल बोर्ड
"हमने विजली का निजीकरण किया है, जनताकरण नहीं" - दिल्ली विद्युत बोर्ड 

दिल्ली 
"दिल्ली देश का सब से हरा भरा, साफ सुथरा और सुंदर शहर है" मनमोहन सिंह
(और किसी दिल्ली को मैं नहीं जानता)

"नागरिक एक दूसरे के प्रति अहिंसा का भाव रखें" पुलिस
(हिंसा हमारा अधिकार है)

मुझ से डरो, मैं वित्तमंत्री हूँ, मेरा काम कर लगाना है, अगर नहीं डरे तो समझ लेना, 'न डरने' पर भी कर लगा दूँगा।

एक मंत्री ने अपने ड्राइवर से पूछा, 'क्या तुम आँख बंद करके कार चला सकते हो?'
ड्राइवर के कहा, 'नहीं'
'अरे तुम इतना भी नहीं कर सकते. हमें देखो, हम आँख बंद करके देश चला रहे हैं' मंत्री बोले
ड्राइवर को गुस्सा आ गया. उसने आँख बंद करके कार चला दी. ............
(.......... आसपास के लोग भागे हुए आए. ड्राइवर को कार से बाहर निकाला, गले लगाया, हार पहनाये और कहा, 'आपने आज धरती का भार हल्का कर दिया'.)

Wednesday, December 17, 2008

चुटकुले इधर उधर से

एक बच्चे की शरारत से मां जब बहुत परेशान हो गई तो उस ने कहा, 'बेटे सो जा वरना गब्बर आ जायेगा'. 
बेटे ने कहा, 'मां, मुझे चोकलेट दो वरना पापा को बता दूँगा की मेरे सोने के बाद यहाँ गब्बर आता है'. 

पुलिस  ने रात के १ बजे  शराब  के  नशे  मैं डूबे  एक  आदमी  को  पकड़  कर  पूछा, 'रात  के एक  बजे  तुम  कहाँ  जा  रहे  हो? 
आदमी, 'मैं  शराब  पीने  के  दुषपरिणाम पर भाषण सुनने  जा  रहा  हूँ'. 
पुलिस, 'इतनी  रात  मैं  तुम्हे  कौन  भाषण देगा?
आदमी, 'मेरी बीवी'.

मुन्ना  भाई, 'सर्किट, बोले  तो  यह  फोर्ड  क्या  है?'
सर्किट, 'भाई, गाड़ी है'.
मुन्ना भाई, 'तो फिर यह ऑक्सफोर्ड क्या  है?
सर्किट, 'बोले  तो, सिंपल है  भाई, इंग्लिश में बैल को ओक्स कहते हैं, इसलिए ऑक्सफोर्ड बोले तो बैलगाडी.'

एक दुकान के बाहर लिखा था: 'इन्सानों की तरह बात करने वाला कुत्ता बिकाऊ है.'
एक आदमी दुकानदार से जाकर बोला: 'मैं उस कुत्ते को देखना चाहता हूं...' दुकानदार ने कहा: 'साथ के कमरे में बैठा है, जा कर मिल लो।'
ग्राहक उस कमरे में गया। कुर्सी पर एक हट्टा-कट्टा कुत्ता बैठा था. पूछा: 'क्यों भई, तुम यहां क्या कर रहे हो?'
कुत्ते ने बताया: 'कर तो मैं बहुत कुछ सकता हूं, लेकिन आजकल इस दुकान की रखवाली करता हूं. इससे पहले अमेरिका के जासूसी महकमे में काम करता था और कई खूंखार आतंकवादियों को पकड़वाया... फिर मैं इंग्लैंड चला गया जहां पुलिस के लिए मुखबरी करता था. एक साल बाद यहां आ गया.'
उस आदमी ने दुकानदार से पूछा: 'इतने गुणवान कुत्ते को आप बेचना क्यों चाहते हैं?'
'अव्वल नम्बर का झूठा है, 'जवाब मिला.

Wednesday, December 10, 2008

कौन ज्यादा परेशान है?

दिल्ली के चुनावों में जनता ने फ़िर कांग्रेस को चुन दिया और चुना भी काफ़ी जोर शोर से. जनता ने तो अपना काम कर दिया, पर राजनीतिबाजों को परेशानी में डाल दिया. भाजपा इसलिए परेशान है कि हार क्यों गए. कांग्रेस इसलिए परेशान है की इतनी सारी सीटों पर जीत कैसे गए. 

भाजपा की परेशानी इतनी बड़ी नहीं है.  बहुत सारे कारण हैं इस हार के. ग़लत मुद्दों पर ज्यादा जोर. सही मुद्दों पर कम जोर. 'कांग्रेस महंगी पड़ी' का नारा ख़ुद भाजपा पर महंगा पड़ गया. 

कांग्रेस की परेशानी बाकई परेशान करने वाली है. कांग्रेस जानती है कि उसकी सरकार ने पिछले ५ वर्षों में बहुत गड़बड़ की है. विकास की जो बात चुनाव प्रसार में कांग्रेस ने की, वह ख़ुद कांग्रेस को झूटी लग रही थी, पर यह जनता को क्या हो गया कि कांग्रेस का यह झूट उस ने सच मान लिया. पाँच साल तक भुगता बहुत कुछ और यकीन कर लिया कि कुछ नहीं भुगता. वाह री दिल्ली की जनता.  

कल मैं ऑटो से आ रहा था. खूब झटके लग रहे थे. ड्राइवर भी परेशान हो गया था, झटके खा-खा कर. गाली देने लगा दिल्ली की सड़कों को, सरकार को. मैंने कहा अब क्या गाली देते होते हो, चुन तो तुमने उसी सरकार को लिया. चुप हो गया बेचारा. फ़िर कुछ देर बाद धीरे से बोला, फ़िर साली गलती करदी. मैंने कहा अब क्या फायदा? पाँच साल भुगतो अब यह गलती. पाँच साल बाद फ़िर यही गलती करना. दिल्ली के लोगों को गलती करने और भुगतने की आदत हो गई है.

कुछ दिन बाद सब सेट हो जायगा. न भाजपा परेशान रहेगी और न कांग्रेस. आने वाले लोकसभा चुनाव में लग जायेंगे दोनों. हमेशा की तरह परेशान रहेगी, दिल्ली की आम जनता.  

Tuesday, December 9, 2008

चार बीबियाँ घर में, मियां अस्पताल में

एक नौजवान का दिमागी संतुलन बिगड़ गया और उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा. वह अपने तलाकशुदा मां-बाप से मिलने को तैयार नहीं था. हुआ यह कि उसके पिता ने अपनी बात ऊंची रखने के लिए उसकी शादी अपने रिश्तेदारी में अपनी पसंद की लड़की से करा दी. जब उस की मां को यह पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. उसने भी बेटे की शादी अपनी रिश्तेदारी में अपनी पसंद की लड़की से करा दी. मामला बराबर हो गया.

पिता को पता चला तो वह भड़क गया, 'उस औरत की यह हिम्मत कि मुझसे बराबरी करे'. तुंरत उसने बेटे की एक और शादी करवा दी. अब मां की बारी थी. उस से पिता की यह बढ़त बर्दाश्त नहीं हुई. उसने अपनी रिश्तेदारी में एक लड़की पसंद की और बेटे की चौथी शादी करवा दी. बेटा मां-बाप का यह प्यार और ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सका. अब वह अस्पताल में है और मां या बाप किसी का भी नाम सुनने पर भड़क उठता है. 

Thursday, December 4, 2008

बेचारा पप्पू

पप्पू - सोच रहा हूँ नाम बदल लूँ. 
गप्पू - क्यों इस नाम में क्या बुराई है?
पप्पू - पहले नहीं थी, अब हो गई है. इस साले चुनाव आयोग को भी यही नाम मिला था. मैंने वोट डाला था, फ़िर भी लोग मुझे रोक कर पूछते हैं कि आपने वोट क्यों नहीं डाला?
 
पति - वधाई हो,  आज दिल्ली में मतदान है.
पत्नी - इस में वधाई की क्या बात है?
पति - अरे भई, पाँच साल में यह मौका आता है. आज के दिन ऐसा महसूस होता है कि हम भी कुछ हैं.
पत्नी - यह तुम्हें ही महसूस होता है या कोई दूसरा भी यह महसूस करता है कि तुम भी कुछ हो?
पति - पहले तो ऐसा लगता था कि दूसरे भी यह महसूस करते हैं कि हम कुछ हैं, भले वह एक दिन के लिए ही ऐसा महसूस करते हों. पर इस बार तो ऐसा कुछ हुआ ही नहीं. आँखें तरस गईं, कान तरस गए - कोई आएगा, घंटी बजायेगा, हम तने हुए दरवाजा खोलेंगे,  वह हाथ जोड़ कर और कुछ झुक कर कहेगा, 'अपना अमूल्य वोट हमें ही दीजियेगा'. पर इस बार तो यह सपना सपना ही रह गया. कोई नहीं आया इस बार. 
पत्नी - हाँ यह बात तो है. मतदाता का इतना अपमान तो कभी नहीं हुआ. मत दो किसी को वोट इस बार. 
पति - वोट नहीं दूँगा तो चुनाव आयोग मुझे पप्पू कहेगा. 
पत्नी - हाँ यह बात भी है. मतदाता तो बेचारा हर तरफ़ से फंस गया. वोट दें तो दें किसे, कोई भी तो वोट के लायक नहीं  है. वोट न दो तो लोग पप्पू कहेंगे. 
पति - इस से तो अंग्रेजों की गुलामी अच्छी थी. गुलाम थे गुलाम कहलाते थ. अब कहने को तो आजद हो गए हैं, पर वोट तक डालने की तो आजादी नहीं है. यह सीट आरक्षित है, यानी अब कुछ लोगों में से ही अपना प्रतिनिधि चुन सकते हैं. रमाकांत पंडित हैं, पूरी तरह योग्य हैं, पर उन्हें नहीं चुन सकते क्योंकि वह आरक्षित वर्ग के नहीं हैं.
पत्नी - हाँ यह बात तो है. आजादी भी कुछ लोगों के लिए आरक्षित हो गई है. बाकी तो सब अब भी गुलाम हैं. 
   

Monday, December 1, 2008

सरकार ने सख्त कदम उठाये

त्रियंका - मॉम अब आपको जरूर कुछ करना चाहिए. 
नोनिया - क्यों बेटी, इस बार क्या खास बात हो गई?
त्रियंका - इस बार उन्होंने उस होटल पर अटेक कर दिया जिस में हम जैसे खास लोग ठहरते हैं. 
नोनिया - अरे हाँ, यह तो मैंने सोचा ही नहीं. 
काहिल - यस् मॉम, यह तो हद कर दी इन आतंकिओं ने. इनकी हिम्मत इतनी हो गई कि आम आदमियों के साथ-साथ खास आदमिओं पर भी अटेक करने लगे. इस तरह तो हमारा बाहर निकलना ही बंद हो जायेगा. 
नोनिया -  तुम सही कहते हो. बेटी, फोन लगाओ तनमोहन अंकल को. 
त्रियंका- हेलो अंकल, मॉम बात करेंगी.
नोनिया - हेलो तनमोहन, क्या कर रहे थे?
तनमोहन - पांय लागूं मैडम, बस जरा आँख लग गई थी.
नोनिया - तुम बहुत सुस्त हो गए हो, अब दोपहर में भी सोने लगे.
तनमोहन - क्या करुँ मैडम, काम तो कुछ है नहीं. 
नोनिया - ठीक है, पर आज कल तो जगे रहो. मुंबई में आतंकी हमला हुआ है. मीडिया को भनक मिल गई तो मुश्किल हो जायेगी. तानिशेक ननु को सफाई के बयान देने पड़ेंगे. 
तनमोहन - जी मैडम, अब ध्यान रखूंगा. क्या आज्ञा है? 
नोनिया - भई इस बार कुछ करना होगा. त्रियंका नाराज हो रही है. इस बार तो आतंकियों ने उसके फेवरेट होटल पर ही अटेक कर दिया है. इस साल नए साल की पार्टी वह इस होटल में करना चाहती थी.
तनमोहन - शेशमुख ने तो पहले ही इलीट फोर्स लगा दी है. सारे इलीट सिटीजन इस बात से खुश हैं कि उनकी रक्षा इलीट फोर्स कर रही है. त्रियंका बेटी अब और क्या चाहती हैं. क्या लिलानी को फोन कर दूँ कि आपको यह बात बुरी लगी है. आम आदमियों तक तो मारा-मारी ठीक है, खास आदमियों की तरफ न देखें. 
नोनिया - यह तो करो, पर कुछ लोगों को लटकाना भी होगा. पाटिल से कहो अब आराम करे. इस बार पब्लिक में नाराजी कुछ ज्यादा ही है. हर बार से कुछ ज्यादा करना होगा इस बार. 
तनमोहन - आप सही कह रही हैं मैडम. यह आम आदमी भी अजीब हैं, ख़ुद मर रहे थे तो कम नाराज थे, कुछ खास आदमी मर गए तो ज्यादा नाराज हो गए. 
नोनिया - यह आम आदमी मेरी समझ में भी नहीं आए, पर हमें कुर्सी पर तो यह लोग ही बैठाते हैं. इनके लिए कुछ करो मत पर कहते रहो. इस बार कुछ ज्यादा कहो और करने का नाटक भी करो. मैं कार्य समिति की बैठक बुलाती हूँ. तुम सब दलों को इकठ्ठा करो. मैं त्रियंका से सलाह करती हूँ. कुछ ऐसा करना होगा कि आतंक पर हम कुछ कर रहे हैं ऐसा लगे. अगले साल चुनाव भी तो जीतना है. 
तनमोहन - आप सही कह रही हैं मैडम. मैं काम पर लगता हूँ. पांय लागूं मैडम.
निनिया - सुखी रहो. कुर्सी पर जमे रहो. 

Saturday, November 29, 2008

चुटकले नेताओं के

नेताजी अपनी बड़ी सी वेन में चले जा रहे थे कि उन्होंने देखा कि एक मैदान में एक आदमी, एक औरत और दो बच्चे घास खा रहे हैं. उन्होंने वेन रुकवाई और उनके पास जाकर पूछा तो आदमी बोला, 'हमारे पास न रोजगार है और न ही खाने को अनाज. कई दिन से हम घास खा कर गुजारा कर रहे हैं'.
नेता जी की आंखों में आंसू आ गए, बोले, 'तुम सब मेरे घर चलो'. 
उस आदमी को यह सुन कर आश्चर्य हुआ, पर कुछ सोच कर वह अपने परिवार के साथ वेन में बैठ गया. कुछ आगे चलने पर वह बोला, 'आप जैसे दयालु नेता कम ही होते हैं जो भूखे आदमियों को खाना खिलाएं'.
नेता जी कहा, 'अरे ऐसी कोई बात नहीं है, मैं जो भी कर रहा हूँ एक नेता होने के नाते ही कर रहा हूँ. मैं तुमें खाना खिलाने नहीं ले जा रहा हूँ. दरअसल बात यह है कि मेरे गार्डन में दो-दो फुट घास उग आई है. मैं तम्हें वह घास खिलाने ले जा रहा हूँ'. 

एक विमान का अपहरण हो गया जिसमें सौ से ज्यादा नेता सवार थे. यह ख़बर सुन कर जनता खुशी से नाचने लगी. लेकिन यह खुशी ज्यादा देर नहीं रही, अपहरणकर्ता  ने कहा कि अगर हमारी मांगे नहीं मानी गईं तो हम एक-एक करके नेताओं को रिहा करना शुरू कर देंगे'. 

महा-नेता राज ठाकरे और उनके वीर महा-सैनिक मुंबई हमले के दौरान कहाँ छिपे रहे यह उन्हें भी नहीं पता. गैर-महामानुस गए मुंबई को बचाने. 

Sunday, November 23, 2008

गोरिल्ला

यह विडियो देखिये, शायद आप को हँसी आ जाय.


Monday, November 17, 2008

किताबी प्रजातंत्र

किताबों में पढ़ी थी, 
प्रजातंत्र की परिभाषा,
अब पता चला, 
भारत एक राजतान्त्रिक देश है,
जनता द्वारा चुने जाने के बाद,
जन-प्रतिनिधि राजा हो जाते हैं
और सत्ता की राजनीति चलाते हैं.

Friday, November 14, 2008

चुनाव आयोग और पप्पू कार्ड्स

चुनाव आयोग ने कहा,
पप्पू मत बनो वोट डालो,
पर ख़ुद बन गया पप्पू,
क्या पप्पू कार्ड बनाये हैं,
नाम ग़लत तो पता सही है,
पता ग़लत तो नाम सही है,
नाम किसी का,
फोटो किसी का,
पप्पू ने कर दिया बंटवारा,
एक भाई लक्ष्मी नगर में,
दूसरा भाई शक्ति नगर में,
माल पी गए पप्पू,
पैसा खा गए पप्पू,
पप्पू कार्ड बना कर,
बना दिया वोटर को पप्पू,
बोलो चुनाव आयोग की जय,
पप्पू महाराज की जय.

Wednesday, November 12, 2008

मंहगाई

नेतानी जी ने कहा,
कहाँ है मंहगाई?
मुझे तो आज तक मिलने नहीं आई,
न ही किसी नागरिक ने फोन किया,
कि शहर में मंहगाई है आई,
चुनाव आए तो बहकाने लगे जनता को,
इन लोगों को शर्म भी नहीं आई.

एक प्यारा सा चुटकुला

बहुत पहले की बात है. एक मुग़ल शहजादे ने अपनी प्रेमिका को दो कबूतर दिए. एक कबूतर उड़ गया. शहजादे ने पूछा, कबूतर कैसे उड़ गया? प्रेमिका ने दूसरा कबूतर उड़ाते हुए कहा, 'ऐसे'. 

बहुत जन्मों के बाद वह फ़िर मिले और शादी करली. प्रेमी-प्रेमिका से पति-पत्नी हो गए. 

विवाह की पहली वर्षगाँठ पर पति ने पत्नी को एक अच्छा उपहार देने का फ़ैसला किया. बहुत सोचने के बाद उसने तय किया कि वह एक मोबाइल उपहार में देगा. पत्नी को यह उपहार बहुत पसंद आया. बदले में पति को एक प्यारा सा मीठा सा चुम्बन मिला. पति ने पत्नी को मोबाइल प्रयोग करना अच्ची तरह समझा दिया. 

एक दिन पत्नी सुपर मार्केट गई. वहां उस के मोबाइल पर उस के पति का फ़ोन आया, 'प्रिय, तुम्हें उपहार कैसा लगा?'

पत्नी ने कहा, 'बहुत प्यारा, पर एक बात समझ में नहीं आई.'

'वह क्या', पति ने पूछा. 

'तुम्हें कैसे पता लगा कि मैं सुपर मार्केट में हूँ?' पत्नी बोली. 

Saturday, November 8, 2008

अल्पसंख्यक हिंदू

पति - अजी वधाई हो, भारत में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं.
पत्नी - वह कैसे?
पति - भारत में मुसलमान हैं, सिख हैं, ईसाई हैं, जैन, बोद्ध, पारसी, दलित हैं, और हैं .........
पत्नी - और कौन?
पति - वह जो पैदा हिंदू हुए पर धरम बदलकर बुद्दिजीवी हो गए.
पत्नी - यह बात तो सही है. चलो अच्छा हुआ, अब हमें वह सब सुविधाएं मिलेंगी जो अब तक इन्हें मिलती रही हैं. पर एक बात बताओ, इस तरह बहुसंख्यक कौन रहा?
पति - अरे भाई अब तो मुसलमान बहुसंख्यक हो जायंगे.
पत्नी - चलो यह भी अच्छा हुआ, अब इन्हें अल्पसंख्यक होने का मलाल नहीं रहेगा. 

Thursday, November 6, 2008

ट्रेफिक जाम

लोगों ने ट्रेफिक जाम लगाया,
लोगों ने ट्रेफिक जाम हटाया,
पुलिस चेक पोस्ट पर बैठी रही,
गाड़ियों को रोकती रही,
जेब गरम करती रही.

Wednesday, November 5, 2008

गंगा सीरिअल रीमेक

आप को याद होगा कुछ साल पहले एक सीरिअल आया था - 'हम देखेंगे गंगा साफ़ हो'. वह सीरिअल तो फ्लाप हो गया था, गंगा और गन्दी हो गई. हाँ जनता का पैसा सरकारी खजाने से जरूर साफ़ हो गया. 

अब उस फ़िल्म कम्पनी ने इस सीरिअल का रीमेक बनाया है - 'गंगा एक राष्ट्रीय नदी'. कलाकार दूसरे हैं. देखिये इस बार क्या होता है? जनता का कितना पैसा नेताओं की जेब में जाता है? 

Tuesday, November 4, 2008

दलित और सवर्ण

मंत्री जी दलित थे,
चपरासी सवर्ण था,
मंत्री जी कोठी में रहते थे,
चपरासी आउट हाउस  में, 
मंत्री जी का बेटा पढ़ता था पब्लिक स्कूल में,
चपरासी का बेटा सरकारी स्कूल में,
दोनों परीक्षा में बैठे बनने को डाक्टर,
मंत्री का बेटा लाया २० प्रतिशत,
आरक्षित स्थान पर प्रवेश पा गया,
चपरासी का बेटा लाया ८० प्रतिशत,
पर बेचारा गच्चा खा गया,
मंत्री जी दलित थे,
चपरासी सवर्ण था. 

Friday, October 31, 2008

कार्टून युद्ध

अगर कार्टून लड़ पड़े तो ........


Wednesday, October 29, 2008

मैं काली क्यों हूँ?

तुम काली हो,
ये फरिश्‍तों की भूल है,
वो तिल लगा रहे थे,
स्‍याही बिखर गयी।

Monday, October 27, 2008

नंगापन

चुनाव का मौसम आया,
यानी नंगा होने का मौसम आया,
देखना, कैसे-कैसे फैशनबाज,
नंगे होते हैं और नंगा करते हैं?
नफरत का नंगा नाच करेंगे, 
ईमान, अगर बचा है,
तो उसे बेचेंगे, 
पहले टिकट खरीदेंगे,
फ़िर वोट खरीदेंगे. 

Sunday, October 26, 2008

चुनाव

उन्होंने कहा,
मैं चुनाव में खड़ा हूँ,
मैंने कहा ग़लत,
आप तो मेरे दरवाजे पर खड़े हैं.

उन्होंने कहा,
मैं चुनाव लड़ रहा हूँ,
मैंने कहा ग़लत,
चुनाव कोई लड़ाई नहीं है.

उन्होंने कहा,
मुझे वोट दीजियेगा,
मैंने कहा,
पहले आप तय तो कर लीजिये,
आप कर क्या रहे हैं? 

Friday, October 24, 2008

हड़ताल

है ईश्वर,
हड़ताल करवा दो,
पुलिसवालों की,
कुछ दिन तो बिता ले शहर,
बिना अपराध के. 

Wednesday, October 22, 2008

एक चुटकुला नेट से

शादी से पहले : 


प्रेमी: हाँ. आखिरकार, इतनी देर से इंतज़ार कर रहा था. 

प्रेमिका: क्या मैं चली जाऊं? 

प्रेमी: नहीं! ऐसा सोचना भी मत.

प्रेमिका: क्या तुम मुझे प्रेम करते हो? 

प्रेमी: हां! बहुत ज्यादा!

प्रेमिका: क्या तुमने मुझे कभी धोका दिया है?

प्रेमी: नहीं! तुम यह पूछ भी क्यों रही हो?

प्रेमिका: क्या तुम मेरा चुम्मन लोगे?

प्रेमी: हर बार, अगर मौका मिला तो. 

प्रेमिका: क्या तुम मुझे मारोगे?

प्रेमी: क्या तुम पागल हो! मैं उस तरह का इंसान नहीं हूँ!

प्रेमिका: क्या मैं तुम पर विश्वास कर सकती हूँ?

प्रेमी: हां.

प्रेमिका: प्रिय!


शादी के बाद

सिर्फ इसे फिर से नीचे से ऊपर की तरफ पढ़े...... :)

Wednesday, October 15, 2008

बड़ा धर्म और छोटा धर्म, बड़ा ईश्वर और छोटा ईश्वर

बेटा - पिता जी कुछ लोग अपने धर्म को बड़ा और दूसरे धर्म को छोटा क्यों कहते हैं? 
पिता - पता नहीं बेटा. 
बेटा - कुछ लोग अपने ईश्वर को बड़ा और दूसरों के ईश्वर को छोटा क्यों कहते हैं? 
पिता - पता नहीं बेटा. 
बेटा - क्या जैसे एक आदमी दूसरे से बड़ा होता है, उसी तरह धर्म और ईश्वर भी एक दूसरे से बड़े होते हैं? 
पिता - पता नहीं बेटा.
बेटा - पिता जी आप को बाकई नहीं पता या आप बताना नहीं चाहते?
पिता - बेटा ईश्वर एक है, वह बड़ा या छोटा हो ही नहीं सकता. जो लोग ईश्वर में भेद-भाव करते हैं वह ईश्वर को समझ ही नहीं पाये. ईश्वर की नजर में सब इंसान एक है. इस लिए, कोई इंसान भी दूसरे से बड़ा या छोटा नहीं हो सकता. 
बेटा - शायद उन का धर्म यही सिखाता हो. 
पिता - पता नहीं बेटा. 
बेटा - पिता जी फ़िर यही. 
पिता - बेटा, धर्म इंसान ने बनाये हैं. शायद कुछ लोगों ने ख़ुद को दूसरों से बड़ा साबित करने के लिए, अपने धर्म को दूसरे धर्मों से बड़ा कह दिया. और फ़िर अपने धर्म को बड़ा साबित करने के लिए अपना ईश्वर भी अलग कर लिया और उस ईश्वर को भी बड़ा कहना शुरू कर दिया. 
बेटा - अजीब बात है न यह?
पिता - हाँ बेटा, अजीब बात तो है. एक बात बताओ, तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो?
बेटा - कल मैं अपने एक दोस्त पीटर के घर गया था, उसके पिता जी ने मुझ से कहा, 'तुम्हारे धर्म के लोग ईसाइयों को मार रहे हैं'. 
पिता - क्या तुमने उन से पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? 
बेटा - पूछा था. उन्होंने कहा कि उन का धर्म हमारे धर्म से बड़ा है. उन का ईश्वर भी हमारे ईश्वर से बड़ा है. हमारे धर्म के कुछ लोग उन के धर्म में जा कर बड़ा बनना चाहते हैं, पर हमारे धर्म के कुछ और लोग यह पसंद नहीं करते और उन के धर्म के लोगों को मारते हैं. 
पिता - फ़िर तुम ने क्या कहा?
बेटा - मैंने उन्हें वही कहा जो आपने मुझे हमारे धर्म के बारे मैं बताया है. मगर उन्होंने यह बात नहीं मानी और हमारे धर्म की हँसी उड़ाने लगे. हमारे देवी-देवताओं की भी हँसी उड़ाने लगे. फ़िर मैं वहां से चला आया. मुझे बड़ा अजीब लगा इस लिए मैंने फ़िर आपसे यह सब पूछा. 
पिता - तुमने उन के धर्म की हसीं तो नहीं उड़ाई.  
बेटा - नहीं पिता जी. 
पिता - यह तुमने बहुत अच्छा किया. जो लोग ईसाइओं को मार रहे हैं अच्छा नहीं कर रहे, पर शायद वह अपने धर्म की हँसी उड़ाना बर्दाश्त नहीं कर सके.
बेटा - क्या ईश्वर उन से नाराज होगा? 
पिता - हाँ बेटा, जरूर नाराज होगा. वह कभी पसंद नहीं करेगा कि कोई इंसान दूसरे इंसान को मारे. 
बेटा - मैं समझ गया पिता जी. एक बात और बताइये. भारत की एक ईसाई नन को पोप ने संत बनाया. सब कह रहे हैं कि इस से भारत का सम्मान बढ़ा. पोप ने ईसाइयों को मारने वालों की निंदा की, पर उन ईसायिओं को कुछ नहीं कहा जो हमारे धर्म  का मजाक उड़ाते हैं. 
पिता - इस का जवाब तो पोप ही देंगे बेटा. 
बेटा - ठीक हे पिता जी. मैं कभी उन से मिलूंगा तो पूछूंगा. 

Tuesday, October 14, 2008

पिता जी यह 'राजनितिक बयान' क्या होता है?

शर्मा जी के बेटे ने उन से पूछा, 'पिता जी यह 'राजनितिक बयान' क्या होता है?'
पिता - जब कोई राजनीतिबाज कोई बयान देता है तो उसे 'राजनितिक बयान' कहते हैं.
बेटा - तब क्या जो लोग राजनीतिबाज नहीं होते वह 'राजनितिक बयान' नहीं दे सकते?
पिता - दे सकते हैं बेटा, बल्कि बहुत से दे भी रहे हैं. राजनीति ने हमारे जीवन को इतना दुश्रभावित कर दिया है कि अब लगभग हर आदमी 'राजनितिक बयान' देने लगा है.
बेटा - मेरे दोस्त अजय के पिता जम कर झूट बोलते हैं पर अजय को हमेशा यह समझाते हैं कि झूट बोलना पाप है. क्या यह भी 'राजनितिक बयान' हुआ?
पिता - हाँ बेटा यह भी एक 'राजनितिक बयान' है.
बेटा - अब बात समझ में आई.
पिता - क्या बेटा?
बेटा - स्कूल में सर ने एक हिन्दी कहावत के बारे में बताया था - 'दूसरों को नसीहत, ख़ुद मियां फजीहत'. सर ने होम वर्क भी दिया है, एक ऐसा उदहारण जिस पर यह कहावत लागू होती हो. अब मैं आसानी से कह दूँगा - 'राजनितिक बयान' पर यह कहावत पूरी तरह लागू होती है.
पिता - बिल्कुल सही बेटा.
बेटा - पिता जी, क्या मैं 'राजनितिक बयान' पर एक निबंध लिखूं?
पिता - हाँ बेटा जरूर लिखो.
बेटा - तब 'राजनितिक बयान' के बारे में कुछ और भी बताइये न.
पिता - तो सुनो बेटा. 'राजनितिक बयान' में झूट का प्रतिशत सच के प्रतिशत से बहुत ज्यादा होता है. जब झूट १०० प्रतिशत के पास पहुँचने लगता है तो उस राजनीतिबाज को सफल और महान की संज्ञा दी जाती है. हमारा देश ऐसे सफल और महान राजनीतिबाजों से भरा पड़ा है.
बेटा - ऐसे कुछ लोगों के नाम बताइये न.
पिता - नहीं बेटा किसी का नाम नहीं लेना चाहिए. जिन का नाम नहीं लेंगे वह बुरा मान जायेंगे.
बेटा - अच्छा, और भी कुछ बताइए.
पिता - 'राजनितिक बयान' में ऐसा कुछ जरूर होना चाहिए जिस से लोगों में आपस में वैमनस्य फेले, लोग एक दूसरे से नफरत करने लगें, अगर आपस में मार-काट करने लगें तो और भी अच्छा है.
बेटा - मगर पिता जी, यह तो बहुत ग़लत बात है.
पिता - हाँ बेटा तुम सही कहते हो, पर राजनीतिबाजों की भाषा अलग होती है. लोगों में नफरत फैलाना ईश्वर के प्रति अपराध है, पर राजनीतिबाजों के लिए यह सफलता का मूल मन्त्र है.
बेटा - तब रहने दीजिये पिता जी, मैं यह निबंध नहीं लिखूंगा.
पिता - क्यों बेटा?
बेटा - इस से तो मेरा सोच ख़राब हो जायेगा. ऐसी गन्दी बातें लिखूंगा तो सर भी नाराज होंगे, और मेरे दोस्त तो मुझसे बोलना ही बंद कर देंगे. वह कहेंगे कि जो ऐसा सोचता है वह एक दिन ऐसा करेगा भी.
पिता - यह तो बहुत अच्छी बात कही तुमने बेटा. मुझे तुम पर गर्व है.
बेटा - और पिता जी, मैं कभी राजनीतिबाज नहीं बनूँगा.
पिता - हाँ बेटा, सूखी रोटी खाना अच्छा है पर लोगों में नफरत फैलाकर मक्खन खाना ग़लत है. आज तुमने भी मुझे बहुत कुछ सिखा दिया है.

Sunday, October 12, 2008

लिव-इन हा हा हा हा

अभी कहते हैं - विवाह की वधाई. जल्दी ही कहेंगे - लिव-इन की वधाई.

प्रेम विवाह भी होते हैं, पर अधिकतर विवाह माता-पिता तय करते हैं. क्या लिव-इन माता-पिता तय करेंगे?

पड़ोसन ने पूछा, 'बहन जी, बेटी की लिव-इन कब कर रही हैं?'

क्या एक पुरूष एक से ज्यादा लिव-इन कर सकता है?

'मम्मी, मैं पहले लिव-इन करूंगी, अगर ठीक लगा तो शादी कर लूंगी'.

तलाक के लिए अदालत में जाते हैं. क्या लिव-इन टूटने के लिए अदालत में जाना होगा?

अगर औरत लिव-इन तोड़ेगी तब मर्द को कुछ मिलेगा क्या?

लिव-इन के दौरान हुए बच्चों का लिव-इन टूटने पर क्या होगा?

स्कूल के फार्म में कुछ नई सूचना भी देनी होगी - बच्चा विवाह से है या लिव-इन से?, लिव-इन माता का नाम?, लिव-इन पिता का नाम?

तलाक के बाद - एक्स-वाइफ, एक्स-हसबेंड. लिव-इन के बाद - ????

विवाह में पति या पत्नी के मरने के वाद - विधवा, विधुर. लिव-इन में पार्टनर के मरने के वाद - ????

पार्टी में मिले. आपने विवाह किया है या लिव-इन?

मेरे दो बच्चे हैं, एक लिव-इन बेटा, एक विवाह बेटी.

इस्लाम में विवाह केवल मुसलमानों के बीच हो सकता है. लिव-इन में क्या कानून होगा?

'तुमने चेकअप करा लिया क्या?', 'हाँ, बेटी है', अबार्शन करोगी क्या?, 'नहीं, अब दहेज़ का खतरा नहीं है न. लिव-इन करेगी'

'क्या बकवास है?, अगर सास को साथ रखना होता तो विवाह न करती, लिव-इन किसलिए किया?'

Thursday, October 9, 2008

Thursday, September 25, 2008

कुछ हंसिकाएं

मेरे कुछ ब्लाग्स पर बिखरी पड़ी हैं कुछ हंसिकाएं। सोचा इकट्ठी कर के यहाँ डाल दूँ।

तुम काली हो ये फरिश्‍तों की भूल है/
वो तिल लगा रहे थे कि स्‍याही बिखर गयी।

"जो कुछ अच्छा हुआ,
वह हमने किया,
जो कुछ बुरा हुआ,
वह किया अधिकारियों ने",
यह सीधी बात नहीं समझती जनता,
ख़ुद भी होती है परेशान,
हमें भी करती है परेशान.

कुछ मत देखो,
कुछ मत सुनो,
कुछ मत कहो,
बस हमें वोट देते रहो।

सरकार करती हे रोजगार,
बेचती है पानी,
अगली चीज क्या बेचेगी सरकार?
हवा, सूरज की धूप या फूलों की खुशबू.

"लोग मुझे युवराज कहें,
यह मुझे अच्छा नहीं लगता,
क्या वह मुझे राजा नहीं कह सकते?"

लोगों ने ट्रेफिक जाम लगाया,
लोगों ने ट्रेफिक जाम हटाया,
पुलिस चेक पोस्ट पर बैठी रही,
गाड़ियों को रोकती रही,
जेब गरम करती रही.

भारत एक राजतान्त्रिक देश है,
जनता द्वारा चुने जाने के बाद,
जन-प्रतिनिधि राजा हो जाते हैं
और सत्ता की राजनीति चलाते हैं.

बचपन में पढ़ा था,
साहित्य समाज का दर्पण होता है,
पर आज टुकड़ों मैं बँटे समाज ने,
दर्पण ही खंडित कर दिया है.

Wednesday, September 24, 2008

संवेदनहीन सरकार और संवेदनहीन मंत्री

ग्रेटर नोयडा की एक फेक्ट्री में हिंसक भीड़ कम्पनी के सीईओ को मार डालती है. ऐसा करके इन लोगों ने क्या हासिल किया यह तो वही जाने पर एक हँसते-खेलते परिवार को इन हत्यारों ने हमेशा के लिए गमजदा कर दिया. इस पर तुक्का जड़ा इस संवेदनहीन सरकार के एक संवेदनहीन मंत्री ने. आस्कर फर्नांडिस ने एक बहुत ही शर्मनाक टिपण्णी की इस घटना पर. यह टिपण्णी मानवीय संवेदनाओं से शून्य तो थी ही, साथ ही एक प्रकार से धमकी भी थी कंपनी मालिकों को कि बाज आ जाओ वरना यही होगा सब के साथ. बात जब बिगड़ी तो इस मंत्री ने माफ़ी मांग ली. डर लगने लगा है अब। नंदीग्राम, सिंगूर और अब यह. क्या एक नए प्रकार का आतंकवाद जन्म ले रहा है?

कैसी है यह सरकार और कैसे हैं इस के मंत्री. जब दिल्ली में बम फट रहे थे और आम आदमी मर रहे थे तो इस सरकार का ग्रह मंत्री फैशन परेड में हिस्सा ले रहा था. किसी के पास दो शब्द नहीं थे सहानुभूति के किसी मृतक या उस के परिवार के लिए. वोटों की राजनीति की जा रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे आतंकवादी सरकार के लिए काम कर रहे हैं. कुछ आतंकवाद वह करते हैं और फ़िर उस के बाद कुछ आतंकवाद यह सरकार और इस के बाबू करते हैं. बाबुओं ने सहायता का चेक मृतकों के नाम से बना दिया. अब मृतक तो आने से रहा उसे भुनाने. क्या किया जाय? मेरे एक मित्र ने सुझाया कि उस बाबू को बोलो कि चेक की पर्सनल डिलिवरी करे.

यह हास्य है या व्यंग, मैं नहीं जानता. बस मन दुखता है.

Sunday, September 21, 2008

आतंकियों को लख-लख वधाई

मेरे प्यारे आतंकियों,

मैं हिन्दुस्तान का एक आम नागरिक हूँ, पर आपका एक बहुत बड़ा पंखा हूँ. मेरा मन हर समय आपकी तारीफ़ करने को करता है. शैतान में ईमान रखने वाले आप आतंकवादियों ने खूब जमके बेबकूफ बना रखा है खुदा में ईमान रखने वालों को. वह यह समझते हैं कि आप उनके लिए जिहाद कर रहे हैं, जब कि आप तो उनका ही जिहाद कर रहे हैं. एहमदाबाद, बंगलौर, हेदराबाद, जयपुर, दिल्ली,जहाँ भी आपने बम धमाके किए, खुदा के बन्दे भी उस में मारे गए. दरअसल आपने बम विस्फोट करने की अपनी तकनीक में काफ़ी सुधार किया है, पर आप असली सुधार करना भूल गए. जरा बम को भी कह देते कि वह फटने से पहले यह पता करले कि आप पास कोई खुदा का बंदा तो नहीं है. पर आप यह नहीं चाहते न. आप को तो बस दहशत फैलानी है. निर्दोष नागरिकों को मारना है, चाहे वह हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख या ईसाई हो. आप तो शैतान की हकूमत कायम करना चाहते हैं और इस के लिए खुदा के बन्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं. आपकी इसी सफलता ने तो मुझे आपका पंखा बना दिया है.

दूसरी तारीफ़ आपकी यह करनी है कि बाहर से आप नेताओं और उन की सरकार को गालियाँ देते हैं, जबकि अन्दर से आप और वह दोनों एक है. आप भी नफरत का कारोबार करते हैं और वह भी. फर्क सिर्फ़ इतना है कि आप शैतान की हकूमत कायम करना चाहते हैं और वह अपनी हकूमत बनाये रखना चाहते हैं. आपने आज तक इतने धमाके किए पर क्या कभी कोई नेता मरा आपके हाथों? यही आपकी सब से बड़ी दूसरी सफलता है. इस के लिए भी आपको मेरी वधाई.

अब मैं आपको एक सलाह देना चाहूँगा. आप क्यों अपने हाथ आम आदमी के खून से रंगते हैं? अरे भाई अक्सर ब्लू लाइन आम आदमी को कुचल देती है. कोई न कोई आम आदमी अक्सर बीआरटी कारडोर में अपनी जान गवां देता है. कभी कोई बीएम्अब्लू किसी आम आदमी को कुचल कर निकल जाती है. कभी पुलिस किसी आम आदमी का एनकाउन्टर कर देती है. कभी उसे थाने में पीट कर मार डालती है. कभी कोई पति अपनी प्रेमिका के साथ मिलकर अपनी पत्नी की हत्या कर देता है. कभी कोई जागरूक पत्नी अपने प्रेमी के साथ मिल कर अपने पति की हत्या कर देती है. कभी कोई असली मर्द एक बच्ची पर बलात्कार करके उसे मार डालता है. आज कल तो बच्चे भी कत्ल करने लगे हैं. मतलब मेरा यह है कि रोज हो कितने आम आदमी मर जाते हैं या मार डाले जाते हैं. अगर आप रोज एक ऐ-मेल भेज कर इन मौतों का क्रेडिट ख़ुद ले लिया करें तो आपके हाथ खून से रंगने से बच जायेंगे. शैतान की हकूमत लाने को तो तो इस देश की सरकार, नेता और खास आदमी ही रात-दिन एक कर रहे हैं. अब तो धीरे-धीरे आम आदमी भी उन की मुहीम में शामिल होता जा रहा है.

आपके फेवर में एक बात और है. शैतान तो एक है पर खुदा बहुत सारे हो गए हैं. हिन्दुओं का भगवान, मुसलमानों का अल्लाह, ईसाइयों का खुदा और न जाने कितने. यह ख़ुद ही आपस में लड़ मर रहे हैं. कुछ लोग अपने खुदा के लिए रिक्रूटमेंट करने में लगे हैं. दूसरों का धर्म बदलने के लिए रात-दिन एक कर रहे हैं. कुछ लोग इसके ख़िलाफ़ रात-दिन एक कर रहे हैं. कितनी जानें इसी में चली जाती हैं. आपके शैतान को तो मुफ्त में वालंटीयर मिल रहे हैं. आप आराम से अपने घर बैठो, इन्टरनेट पर मजे करो. आपका काम तो यह लोग ही कर देंगे.

उम्मीद करता हूँ कि आप और आपका शैतान मेरी सलाह पर अमल करेंगे.

आपका एक पंखा.

Saturday, September 13, 2008

तब बदल जाता है हास्य व्यंग में

हास्य-व्यंग की एक गोष्टी में,
एक सवाल पूछा मैंने,
हास्य क्या है?
और व्यंग क्या है?

हंसाते हैं दोनों कहा किसी ने,
खुलासा किया फ़िर किसी ने,
हास्य हंसाता भर है,
व्यंग भी हंसाता है,
पर देता है,
एक टीस, एक चुभन.

पत्नी का पति पर बेलन फैंकना,
हास्य की संज्ञा पा सकता है,
पर फैका जाता है जब वह बेलन,
एक ऐसे पति पर,
जो लौटा है उड़ा कर,
शराब और जुए में,
बीमार बच्चे की दवा के पैसे,
तब बदल जाता है हास्य व्यंग में.

Wednesday, September 10, 2008

गुड्डी बुड्ढी हो गई पर अक्ल नहीं आई

यह पढ़ कर मैंने सोचा कि अक्ल नापने का कौन सा यंत्र है नेता जी के पास, जिस से उन्होंने गुड्डी की अक्ल नाप ली और यह महान घोषणा कर डाली? अगर ऐसा कोई यंत्र है तो उन्हें तुंरत उस के बारे में बताना चाहिए क्योंकि आज अगर किसी को ऐसे यंत्र की सख्त जरूरत है तो वह हैं नेता. बैसे मुझे नहीं लगता कि इन नेता जी ने इस यंत्र का उपयोग कभी ख़ुद पर भी किया होगा. क्योंकि अगर वह ऐसा करते तो ख़ुद के बारे में उन के बहुत से भ्रम दूर हो गए होते और वह इस तरह की ग़लत बयानी न करते. पर क्या करें, नेता लोग तो बस दूसरों पर ऊँगली उठाते हैं. अगर अपने ऊपर ऊँगली उठाने लगें तो इस देश की बहुत सी समस्यायें सुलझ जाएँ.

बैसे ख़ुद को ईमानदार और दूसरों को बेईमान समझने की बीमारी समाज के हर वर्ग में व्याप्त है. अदालत में जज मुजरिमों का सजा देते हैं पर ख़ुद वह क्या हैं, यह अब पता चल रहा है. पुलिस वाले कानून के संरक्षक माने जाते हैं पर वह ख़ुद कानून की क्या हालत करते हैं अब यह बात खुल कर सामने आ गई है. मेरे आफिस में जो भी विजिलेंस आफिसर आता था अपना एक मकान बनबा कर ही विदा होता था. लोगों को धर्म का ज्ञान देने वाले बहुत से संत ख़ुद दरवाजे के पीछे मात्र अधर्म ही करते पाये जाते हैं. वकील कानून को रंडी की तरह इस्तेमाल करते हैं. क्या कहें, कितना कहें, यह दास्ताँ इतनी लम्बी है कि बयां करते-करते क़यामत आ जायेगी पर यह पूरी नहीं होगी.

तो बात हो रही थी एक हताश राजनीतिबाज की जो पिछले काफ़ी दिनों से नफरत फैला रहा है. मेरे एक मित्र यह बयान पढ़ कर हंसने लगे. मैंने कहा मित्रवर यह कोई हास्य या व्यंग नहीं है जो आप ऐसे हंस रहे हैं. यह इस देश के नेताओं का परिचय है, उन के 'नफरत फैलाओ' आन्दोलन का एक हिस्सा है. वह कहने लगे कि रोकर या दुखी होकर क्या कर लूँगा? नेता पागल हो रहे हैं. उन के पीछे चलती जनता पागल हो रही है. धीरे-धीरे सारा प्रदेश पागल हो जायेगा, फ़िर देश पागल हो जायेगा. पागलों का काम तो हँसना है. मैं इसलिए एडवांस में हंस रहा हूँ. आओ तुम भी हंसो. अपने ब्लाग वालों से कहो वह भी हंसें. प्रेक्टिस हो जायेगी. जब कल पागल होकर हंसोगे तो आसानी होगी.

Tuesday, September 9, 2008

पालीवुड की टॉप ऐक्ट्रेस

बुरा मत मानियेगा :
मुझे यह तस्वीरें मेल में मिलीं। अच्छी लगीं। सोचा आप सब को भी दिखाऊँ।

Sunday, September 7, 2008

दिल्ली पुलिस, आम आदमी और खास आदमी

एक आम आदमी स्कूटर चला रहा था. सड़क पर लगे स्टाप साइन को देख कर उस ने स्कूटर को धीमा कर लिया पर रोका नहीं. यह देख कर दिल्ली ट्रेफिक पुलिसमेन ने उस से उसका ड्राइविंग लाइसेंस माँगा.
आम आदमी ने कहा, 'क्या फर्क पड़ता है, स्कूटर धीमी करो या रोक लो'.
'अभी बताता हूँ', कह कर पुलिसमेन ने उसे पीटना शुरू कर दिया, 'बोलो धीमा करुँ या रोक दूँ?'
आम आदमी रोते हुए बोला, 'रोक दो'.
'अब यह ड्राविंग लाइसेंस से नहीं रुकेगा, तुम्हारी जेब में हाथ डालना पड़ेगा'.पुलिसमेन बोला.
जेब कटवा कर आम आदमी रोता हुआ चला गया.
इतने में एक खास आदमी कार चलाता हुआ आया. उस ने भी कार रोकी नहीं बस धीमी की. पुलिसमेन ने उस से भी ड्राइविंग लाइसेंस माँगा. खास आदमी ने कहा लाइसेंस नहीं है. कार का रजिस्ट्रेशन मांगने पर भी खास आदमी ने कहा नहीं है. पुलिसमेन उसे अफसर के पास ले गया और सारी बात बताई. अफसर के पूछने पर खास आदमी ने कहा कि लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन दोनों पुलिसमेन ने ले लिए हैं और अब पैसे मांग रहा है. फ़िर खास आदमी अपने मोबाइल पर एक नंबर मिलाने लगा.
इस बार पुलिसमेन रोने लगा, 'नहीं सर मैंने कोई लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन नहीं लिया',
अफसर बोला, 'चलो साहब से माफ़ी मांगो', फ़िर खास आदमी से कहा, 'साहब प्लीज इसे माफ़ कर दीजिये',
'चलो माफ़ किया, आइन्दा ख्याल रखना', खास आदमी ने कहा और चला गया.
पुलिसमेन ने शान्ति की साँस ली. अफसर ने उस के एक चांटा लगाया, 'साले दिखाई नहीं देता, खास आदमी से लाइसेंस मांगता है. मरेगा ख़ुद भी और मुझे भी मरवाएगा'.

Wednesday, September 3, 2008

एक फ़िल्म गेंग मेन पर भी

शर्मा जी - तो चीन ने खुले तौर पर एलान कर ही दिया कि वह भारत-अमरीका परमाणु करार पर एनएसजी में सवाल उठाएगा.
वर्मा जी - यह तो वह पहले ही कर चुका है और कर रहा है सीपीएम् के माध्यम से. जब मनमोहन और करात की खुट्टी हो गई तो उसे यह साफ़ एलान करना पड़ा.
शर्मा जी - हाँ यह बात तो है. आज करात ने फ़िर धमकाया है कि अगर यह करार हो गया तो भारत की हालत पाकिस्तान जैसी हो जायेगी.
वर्मा जी - कम्युनिस्टों कि यह बात तो माननी पड़ेगी कि वह धमकाने से बाज नहीं आते. जब तक धमक रहे थे मनमोहन खूब धमकाया. अब जब मनमोहन ने धमकना बंद कर दिया तो भी धमकाए जा रहे हैं.


शर्मा जी - तो टाटा ने आखिरकार यह एलान कर ही दिया कि वह सिंगूर से जा रहे हैं.
वर्मा जी - लो जी, गई भेंस पानी में.
शर्मा जी - यह मैं भी समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस से किसे फायदा होगा?
वर्मा जी - शायद ममता को अन्दर-ही-अन्दर कोई फायदा हो रहा हो, क्या पता. यह राजनीतिबाज बिना फायदे के कोई काम नहीं करते.


शर्मा जी - आज तक यह सुनते थे कि पैसे वाले और ताकतवर जुर्म कर के भी कानून से छूट जाते हैं. पर आज एक नई बात सुनने में आई.
वर्मा जी - वह क्या भाई?
शर्मा जी - अरे भाई, अदालत ने नंदा को बी एम् डब्लू केस में दोषी करार दिया है. इस पर उस के वकील ने कहा है कि नंदा को यह बहुत ही सख्त सजा इस लिए मिली कि वह पैसे वाला है और ताकतवर भी. अगर कोई गरीब आदमी ड्राइव कर रहा होता तो हलकी सजा पर ही छूट जाता. मीडिया पीछे लग गया, अदालत दबाब में आ गई. बेचारा नंदा फंस गया.
वर्मा जी - वाह भाई वाह, यह तो खूब रही. कानून से हर आदमी को शिकायत है, चाहे छोटा हो या बड़ा, चाहे गरीब हो या अमीर, चाहे कमजोर या ताकतवर.


शर्मा जी - लालू ने कुलियों को गेंग मेन बना दिया था. खूब तारीफ़ हुई थी. खूब तालियाँ बजी थीं.
वर्मा जी - हाँ हाँ मुझे याद है. पर तुम्हें आज यह कैसे याद आ गया?
शर्मा जी - अरे भाई अखबार में ख़बर छपी है. गेंग मेन अपना कुली का बिल्ला वापस मांग रहे हैं. वह कह रहे हैं कि गेंग मेन की नौकरी में कोई मजा नहीं है. बस काम ही काम और नो आराम. लगता है कुली का काम शाही काम है. तभी तो बिग बी भी कुली बन गए थे.
वर्मा जी - लालू को चाहिए कि बिग बी को लेकर एक फ़िल्म गेंग मेन पर भी बनबा दें.

Monday, September 1, 2008

भगवान् बोले,मैंने भी तो अपना घर बचाना है

कल रात मैंने एक सपना देखा,
सपने में देखा भगवान् को,
मैं तो उन्हें पहचान नहीं पाया,
पहले कभी देखा नहीं था न,
पर वह मुझे पहचान गए,
कहने लगे, 'तुम सुरेश हो न?',
मैंने कहा हाँ, और आप?
उन्होंने बताया मैं भगवान् हूँ,
मैंने कहा आप से मिल कर बहुत खुशी हुई,
'लेकिन मुझे नहीं हुई', वह बोले,
मैं घबरा गया, काँपने लगा,
बोला, 'क्या गलती हो गई भगवन?'
'यह क्या उल्टा-सुलटा लिखते रहते हो ब्लाग्स पर?
जानते नहीं यह नारी प्रगति का ज़माना है,
और कलियुग में प्रगति का मतलब है उल्टा चलना,
वास्तव में यह उल्टा चलना ही सीधा चलना है,
इतनी सी बात नहीं समझ पाते तुम?
अब नारी घर के बाहर रहेगी,
हर वह काम करेगी जो पुरूष करता है,
घर चलाना है तो पुरूष को करना होगा हर वह काम,
जो नारी करती थी अब तक,
वरना न घर होगा न घरवाली',
इतना कह कर वह अद्रश्य होने लगे,
मैं चिल्लाया, 'मेरी बात तो सुनिए',
अद्रश्य होते-होते वह बोले,
'इतना ही समय दिया था मुझे मेरी पत्नी ने,
मैंने भी तो अपना घर बचाना है'.

यह भी एक दुनिया है

अक्सर लोग और मैं भी कुछ न कुछ अच्छी बातें लिखते रहते हैं, जिनसे कुछ और लोगों को तकलीफ होती है. इन लोगों की बातें भी सुनिए. यह भी एक दुनिया है:

नेताओं की दुनिया मैं आइये,
यहाँ नफरत और झूट का राज्य है,
इस राज्य मैं आप का स्वागत है.

नेता भगवान का रूप हैं,
आइये नेताओं में भगवान के दर्शन करें.

नेता राष्ट्र की धरोहर हैं,
सुखी नेता, सुखी राष्ट्र.

अपने बच्चों को सही बातें मत सिखायेंगे,
तभी तो हम उन्हें बुरी बातें सिखा पायेंगे,
और नेता बना पायेंगे.

घर का कूड़ा इधर उधर फैंकिये,
इस से बीमारियाँ फेलेंगी,
देश की आबादी कम होगी.

सबसे नफरत करिये,
नफरत जीवन को संवारती है.
हम एक अच्छा नेता बनना चाहते हैं,
नफरत करके हमारी मदद कीजिए.

अच्छे पड़ोसी मत बनिए,
क्योंकि अच्छे पड़ोसी होते ही नहीं.

Sunday, August 31, 2008

नेता धर्म छोड़ कर मानव धर्म निभाया जाय

बिहार की बाढ़ एक राष्ट्रिय विपदा है। पर इस में भी राजनीति हो रही है। प्रदेश और केन्द्रीय सरकार एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं। नेताओं ने जनता से दान देने के लिए अपील अखबारों में देना छपवानी शुरू कर दी हैं। जिन्होनें दान देना है वह तो देंगे ही, इन अपीलों से क्या फर्क पड़ना है, पर जनता का पैसा खर्च करके यह नेता स्वयं को सार्थक साबित करने का प्रयास कर रहे हैं। इन विज्ञापनों में जितना पैसा खर्च हुआ अगर वह दान में दे दिया जाता तो कुछ बाढ़ पीड़ितों को कुछ राहत मिलती पर उन्हें रहत पहुँचाना इन नेताओं का उद्देश्य नहीं हैं। इन का उद्देश्य मात्र अपनी मार्केटिंग करनी है।

लालू प्रसाद ने काफ़ी विस्तृत विह्यापन दिया है जिसमें वह रेल कर्मचारियों से कह रहे हैं कि वह अपने एक दिन का वेतन बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए दान दें। परन्तु लालू जी अपनी अपील पर ख़ुद कब अमल करेंगे? या वह सिर्फ़ अपने नेता होने का धर्म निभा रहे हैं, जिसमें केवल दूसरों को उपदेश दिए जाते हैं, यानी दूसरों को नसीहत पर ख़ुद नेताजी फजीहत। दिल्ली की मेयर का भी यही हाल है। मनमोहन जी ने राष्ट्रिय विपदा कोष से दान देने की धोषणा कर दी, पर अपनी जेब से दान देने की घोषणा वह कब करेंगे? या यह नेता कुछ नहीं करेंगे, बस अपने नेता होने का धर्म निभाएंगे।

सीमा पार नेपाल सरकार का दिल कुछ पसीज गया है। उसने यह स्वीकार किया है कि उधर कोई कार्यवाही न होने के कारण बाढ़ की यह भयाभय स्थिति आई है। अब नेपाल सरकार भारतीय सरकार के साथ मिल कर ऐसे कदम उठाएगी कि कोसी फ़िर इतना नुक्सान न कर सके। सीमा के इस पार भी सरकारों का दिल पसीजे और नेतागिरी का धर्म छोड़ कर मानव धर्म निभाया जाय।

Saturday, August 30, 2008

राजनितिक हास्य और व्यंग

पति - नेताजी ने फतवा जारी किया है कि मुंबई में दुकानों के साइनबोर्ड मराठी में होने जरूरी हें, वरना बुरा परिणाम भुगतना होगा।
पत्नी - हताशा में राजनीतिबाज कुछ भी कर सकते हें। बैसे भी आजकल राजनीति में गुंडई होना जरूरी हो गया है।
पति - तुम ठीक कहती हो। जिस तरह एक और राजनीतिबाज ने एक मुख्य मंत्री को कुर्सी से उठाकर पटका और ख़ुद उसकी कुर्सी पर जा बैठा वह तो राजनीति नहीं साफ़-साफ़ गुंडई है।
पत्नी - देखते रहो, मनमोहन जी की साझा सरकार क्या-क्या गुल खिलाएगी।


पति - मनमोहन जी ने कहा है कि उनकी सरकार पारदर्शी और रेस्पोंसिव है।
पत्नी - मनमोहन जी ने कुछ किया हो या न किया हो पर उन्हें बहुत सी राजनितिक परिभाषाओं को बदलने का श्रेय तो मिलना ही चाहिए।
पति - हाँ यह बात तो सही है। सरकार में अपराधी, आफिस आफ प्रोफिट, सरकार बचाने के तरीके, साफ़-सुथरी और खूबसूरत दिल्ली, पारदर्शी और रेस्पोंसिव सरकार, इन को अच्छा परिभाषित किया है उन्होंने।


पति - नेताजी ने कहा हड़ताल करना ग़लत है। इस पर उनकी पार्टी नाराज हो गई।
पत्नी - जिस पार्टी की लाइफ लाइन ही हड़ताल करना हो वह तो नाराज होगी ही।


पति - नेताजी ने कहा खेल संघों का नेता राजनीतिवाजों को ही होना चाहिए क्योंकि वह ही इन के लिए पैसा जुटा सकते हें।
पत्नी - यह सब पैसे का ही तो चक्कर है। जैसे चींटी मिठाई की तरफ़ भागती है बैसे ही राजनीतिबाज पैसे की तरफ़ भागते हें। खेल संघों के लिए पैसा जुटाने में ही तो अपने लिए पैसा जुटेगा।


पति - नेतानी जी ने कहा कि अमरनाथ यात्रा के दौरान भी कुछ समय के लिए जमीन यात्रियों को सुविधा देने के लिए नहीं देने देंगे।
पत्नी - ऐसा करके वह आतंकवादियों की मेहमाननवाजी का बदला चुका रही है।
पति - क्या मतलब?
पत्नी - इतनी जल्दी भूल गए? अरे इन्हीं नेतानी को मुक्त कराने के लिए तो दुर्दांत आतंकवादियों को मुक्त किया गया था। में तो तबसे यही मानती हूँ कि यह इन की और आतंकवादियों की मिलीजुली साजिश थी।
पति - लगता तो अब मुझे भी यही है।
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