कल रात मैंने एक सपना देखा,
सपने में देखा भगवान् को,
मैं तो उन्हें पहचान नहीं पाया,
पहले कभी देखा नहीं था न,
पर वह मुझे पहचान गए,
कहने लगे, 'तुम सुरेश हो न?',
मैंने कहा हाँ, और आप?
उन्होंने बताया मैं भगवान् हूँ,
मैंने कहा आप से मिल कर बहुत खुशी हुई,
'लेकिन मुझे नहीं हुई', वह बोले,
मैं घबरा गया, काँपने लगा,
बोला, 'क्या गलती हो गई भगवन?'
'यह क्या उल्टा-सुलटा लिखते रहते हो ब्लाग्स पर?
जानते नहीं यह नारी प्रगति का ज़माना है,
और कलियुग में प्रगति का मतलब है उल्टा चलना,
वास्तव में यह उल्टा चलना ही सीधा चलना है,
इतनी सी बात नहीं समझ पाते तुम?
अब नारी घर के बाहर रहेगी,
हर वह काम करेगी जो पुरूष करता है,
घर चलाना है तो पुरूष को करना होगा हर वह काम,
जो नारी करती थी अब तक,
वरना न घर होगा न घरवाली',
इतना कह कर वह अद्रश्य होने लगे,
मैं चिल्लाया, 'मेरी बात तो सुनिए',
अद्रश्य होते-होते वह बोले,
'इतना ही समय दिया था मुझे मेरी पत्नी ने,
मैंने भी तो अपना घर बचाना है'.
हम आज ऐसे समाज में रहते हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है और हम सबके लिए नए तनावों की स्रष्टि कर रहा है. पर साथ ही साथ समाज में घट रही बहुत सी घटनाएं हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं. हमारे तनाव, भले ही कुछ समय के लिए, कम हो जाते हैं. हर घटना का एक हास्य-व्यंग का पहलू भी होता है. इस ब्लाग में हम उसी पहलू को उजागर करने का प्रयत्न करेंगे.
भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.
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