शर्मा जी के बेटे ने उन से पूछा, 'पिता जी यह 'राजनितिक बयान' क्या होता है?'
पिता - जब कोई राजनीतिबाज कोई बयान देता है तो उसे 'राजनितिक बयान' कहते हैं.
बेटा - तब क्या जो लोग राजनीतिबाज नहीं होते वह 'राजनितिक बयान' नहीं दे सकते?
पिता - दे सकते हैं बेटा, बल्कि बहुत से दे भी रहे हैं. राजनीति ने हमारे जीवन को इतना दुश्रभावित कर दिया है कि अब लगभग हर आदमी 'राजनितिक बयान' देने लगा है.
बेटा - मेरे दोस्त अजय के पिता जम कर झूट बोलते हैं पर अजय को हमेशा यह समझाते हैं कि झूट बोलना पाप है. क्या यह भी 'राजनितिक बयान' हुआ?
पिता - हाँ बेटा यह भी एक 'राजनितिक बयान' है.
बेटा - अब बात समझ में आई.
पिता - क्या बेटा?
बेटा - स्कूल में सर ने एक हिन्दी कहावत के बारे में बताया था - 'दूसरों को नसीहत, ख़ुद मियां फजीहत'. सर ने होम वर्क भी दिया है, एक ऐसा उदहारण जिस पर यह कहावत लागू होती हो. अब मैं आसानी से कह दूँगा - 'राजनितिक बयान' पर यह कहावत पूरी तरह लागू होती है.
पिता - बिल्कुल सही बेटा.
बेटा - पिता जी, क्या मैं 'राजनितिक बयान' पर एक निबंध लिखूं?
पिता - हाँ बेटा जरूर लिखो.
बेटा - तब 'राजनितिक बयान' के बारे में कुछ और भी बताइये न.
पिता - तो सुनो बेटा. 'राजनितिक बयान' में झूट का प्रतिशत सच के प्रतिशत से बहुत ज्यादा होता है. जब झूट १०० प्रतिशत के पास पहुँचने लगता है तो उस राजनीतिबाज को सफल और महान की संज्ञा दी जाती है. हमारा देश ऐसे सफल और महान राजनीतिबाजों से भरा पड़ा है.
बेटा - ऐसे कुछ लोगों के नाम बताइये न.
पिता - नहीं बेटा किसी का नाम नहीं लेना चाहिए. जिन का नाम नहीं लेंगे वह बुरा मान जायेंगे.
बेटा - अच्छा, और भी कुछ बताइए.
पिता - 'राजनितिक बयान' में ऐसा कुछ जरूर होना चाहिए जिस से लोगों में आपस में वैमनस्य फेले, लोग एक दूसरे से नफरत करने लगें, अगर आपस में मार-काट करने लगें तो और भी अच्छा है.
बेटा - मगर पिता जी, यह तो बहुत ग़लत बात है.
पिता - हाँ बेटा तुम सही कहते हो, पर राजनीतिबाजों की भाषा अलग होती है. लोगों में नफरत फैलाना ईश्वर के प्रति अपराध है, पर राजनीतिबाजों के लिए यह सफलता का मूल मन्त्र है.
बेटा - तब रहने दीजिये पिता जी, मैं यह निबंध नहीं लिखूंगा.
पिता - क्यों बेटा?
बेटा - इस से तो मेरा सोच ख़राब हो जायेगा. ऐसी गन्दी बातें लिखूंगा तो सर भी नाराज होंगे, और मेरे दोस्त तो मुझसे बोलना ही बंद कर देंगे. वह कहेंगे कि जो ऐसा सोचता है वह एक दिन ऐसा करेगा भी.
पिता - यह तो बहुत अच्छी बात कही तुमने बेटा. मुझे तुम पर गर्व है.
बेटा - और पिता जी, मैं कभी राजनीतिबाज नहीं बनूँगा.
पिता - हाँ बेटा, सूखी रोटी खाना अच्छा है पर लोगों में नफरत फैलाकर मक्खन खाना ग़लत है. आज तुमने भी मुझे बहुत कुछ सिखा दिया है.
हम आज ऐसे समाज में रहते हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है और हम सबके लिए नए तनावों की स्रष्टि कर रहा है. पर साथ ही साथ समाज में घट रही बहुत सी घटनाएं हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं. हमारे तनाव, भले ही कुछ समय के लिए, कम हो जाते हैं. हर घटना का एक हास्य-व्यंग का पहलू भी होता है. इस ब्लाग में हम उसी पहलू को उजागर करने का प्रयत्न करेंगे.
भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.
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3 comments:
बहुत कुछ सिखा दिया है.
main to yah chahta hoon ki raajnitigya ban jaaon, kyonki yahan ki janta bhi yahi chahti hai
word verification hata den, kripya
क्या बात है कितनी गहरी बात आप ने मजाक मे ही कह दी.
धन्यवाद
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