नेता जी बहुत परेशान थे,
शहर की रामलीला ने,
मुख्य अतिथि बनाया था उन्हें,
उन्हें वाण चलाना था,
रावण को जलाना था,
हमने उन्हें वधाई दी,
वह और परेशान हो गए,
हमने पूछा तो अकेले में ले गए,
बोले रावण की तरफ देखो,
हमने रावण की तरफ देखा,
बोले रावण का चेहरा देखो,
हमने रावण का चेहरा देखा,
क्या दिखाई दिया, उन्होंने पूछा,
डराबना, बुराई का मूर्त रूप,
वह और परेशान हो गए,
उदास स्वर में बोले,
रावण के चेहरे में दिखता है मुझे,
मेरा अपना चेहरा,
यह कहते हैं जलाना है उसे,
कैसे जला दूं खुद को?
मैंने फिर से देखा और डर गया,
चुपके से खिसक लिया,
बाद में पता चला,
नेताजी की तबियत ख़राब हो गई,
अस्पताल में भरती हो गए,
बच गए रावण को जलाने से,
आत्मह्त्या करने से.