पति - नेताजी ने फतवा जारी किया है कि मुंबई में दुकानों के साइनबोर्ड मराठी में होने जरूरी हें, वरना बुरा परिणाम भुगतना होगा।
पत्नी - हताशा में राजनीतिबाज कुछ भी कर सकते हें। बैसे भी आजकल राजनीति में गुंडई होना जरूरी हो गया है।
पति - तुम ठीक कहती हो। जिस तरह एक और राजनीतिबाज ने एक मुख्य मंत्री को कुर्सी से उठाकर पटका और ख़ुद उसकी कुर्सी पर जा बैठा वह तो राजनीति नहीं साफ़-साफ़ गुंडई है।
पत्नी - देखते रहो, मनमोहन जी की साझा सरकार क्या-क्या गुल खिलाएगी।
पति - मनमोहन जी ने कहा है कि उनकी सरकार पारदर्शी और रेस्पोंसिव है।
पत्नी - मनमोहन जी ने कुछ किया हो या न किया हो पर उन्हें बहुत सी राजनितिक परिभाषाओं को बदलने का श्रेय तो मिलना ही चाहिए।
पति - हाँ यह बात तो सही है। सरकार में अपराधी, आफिस आफ प्रोफिट, सरकार बचाने के तरीके, साफ़-सुथरी और खूबसूरत दिल्ली, पारदर्शी और रेस्पोंसिव सरकार, इन को अच्छा परिभाषित किया है उन्होंने।
पति - नेताजी ने कहा हड़ताल करना ग़लत है। इस पर उनकी पार्टी नाराज हो गई।
पत्नी - जिस पार्टी की लाइफ लाइन ही हड़ताल करना हो वह तो नाराज होगी ही।
पति - नेताजी ने कहा खेल संघों का नेता राजनीतिवाजों को ही होना चाहिए क्योंकि वह ही इन के लिए पैसा जुटा सकते हें।
पत्नी - यह सब पैसे का ही तो चक्कर है। जैसे चींटी मिठाई की तरफ़ भागती है बैसे ही राजनीतिबाज पैसे की तरफ़ भागते हें। खेल संघों के लिए पैसा जुटाने में ही तो अपने लिए पैसा जुटेगा।
पति - नेतानी जी ने कहा कि अमरनाथ यात्रा के दौरान भी कुछ समय के लिए जमीन यात्रियों को सुविधा देने के लिए नहीं देने देंगे।
पत्नी - ऐसा करके वह आतंकवादियों की मेहमाननवाजी का बदला चुका रही है।
पति - क्या मतलब?
पत्नी - इतनी जल्दी भूल गए? अरे इन्हीं नेतानी को मुक्त कराने के लिए तो दुर्दांत आतंकवादियों को मुक्त किया गया था। में तो तबसे यही मानती हूँ कि यह इन की और आतंकवादियों की मिलीजुली साजिश थी।
पति - लगता तो अब मुझे भी यही है।
हम आज ऐसे समाज में रहते हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है और हम सबके लिए नए तनावों की स्रष्टि कर रहा है. पर साथ ही साथ समाज में घट रही बहुत सी घटनाएं हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं. हमारे तनाव, भले ही कुछ समय के लिए, कम हो जाते हैं. हर घटना का एक हास्य-व्यंग का पहलू भी होता है. इस ब्लाग में हम उसी पहलू को उजागर करने का प्रयत्न करेंगे.
भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.
Saturday, August 30, 2008
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1 comment:
यही तो हैं चोट करने की कला - चुटकला
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