कल अखवार पढ़ कर,
फिर मन में आया,
क्यों न राष्ट्रपति बन जाऊं?
एक बार पहले भी आया था मन में,
जब हाईवे टोल पर एक बोर्ड पढ़ा था,
राष्ट्रपति की कार को टोल नहीं देना,
राष्ट्रपति बने और फुर्र से निकल गए,
वर्ना खड़े रहो लाइन में और पैसा भी दो,
अब एक और पर्क मिला राष्ट्रपति को,
बेटे को एम्एलए का टिकट मिलेगा,
चिंता ख़त्म,
बेटा कैसा भी योग्य या अयोग्य हो,
नौकरी पक्की,
और कोई ऐसी बैसी नौकरी नहीं,
मरने तक रिटायरमेंट नहीं,
मजे ही मजे,
न कोई काम न धाम,
काम करो तो फायदा,
न करो तो फायदा,
दोनों हाथों में लड्डू,
क्या ख्याल है भाइयों,
बन जाऊं राष्ट्रपति?
7 comments:
सही लिखा है आपने.
मैं भी आपसे सहमत हूं
इसी के मद्देनज़र से कार्टून बनाया था मैंने.
कार्टून:-रे बाबा, इ सड़क मैं कबहुं ना चलि हौं
भूलसुधार से=ये
आप तो बन ही जाओ...हमारी शुभकामनाएं....मौज ही मौज होगी...थोड़ा इधर भी सरका देना :)
आज की अवसरवाद और परिवार वाद से ग्रसित होती राजनीति पर बहुत अच्छा व्यंग है .
Bahut Badhiya.
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दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं।
( Treasurer-S. T. )
हा हा हा. अग्रिम शुभकामनांए.
अब जल्दी से बन जाओ, फ़िर मोजा ही मोजा जी
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