प्रेस पार्टी ख़बरें सूंघ रही थी,
मुख्य मंत्री दफ्तर में ऊंघ रही थी,
जनता ने तीसरी बार जिताया,
कारण आज तक समझ नहीं आया,
खुद मैंने खुद को वोट नहीं डाला,
पर जनता मुझे ही वोट डाल गई,
क्या जनता बेबकूफ है?
या कोई साजिश कर रही है?
घर और बाहर कोई सुरक्षित नहीं,
चोर और पुलिस में कोई अंतर नहीं,
सड़कों में गड्ढे या गड्ढों में सड़कें?
मौत बांटती ब्लू लाइन बसें,
पानी तो बिजली नहीं,
बिजली तो पानी नहीं,
अक्सर दोनों ही नहीं,
कुछ भी तो सही नहीं,
बस एक ही बात सही है,
वह सीएम् की कुर्सी पर ऊंघ रही हैं,
प्रेस पार्टी ख़बरें सूंघ रही है.
हम आज ऐसे समाज में रहते हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है और हम सबके लिए नए तनावों की स्रष्टि कर रहा है. पर साथ ही साथ समाज में घट रही बहुत सी घटनाएं हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं. हमारे तनाव, भले ही कुछ समय के लिए, कम हो जाते हैं. हर घटना का एक हास्य-व्यंग का पहलू भी होता है. इस ब्लाग में हम उसी पहलू को उजागर करने का प्रयत्न करेंगे.
भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.
Tuesday, December 29, 2009
वह सीएम् की कुर्सी पर ऊंघ रही हैं
Labels:
delhi govt,
inflation,
law and order,
power crisis,
price rise,
vote,
water crisis
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3 comments:
बहुत बढ़िया रचना है।बधाई।
सच है
हमे भी
समझ नही आया..
कांग्रेस को
किसने जिताया...
शानदार!!
--
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
थक गई हैं बेचारी. खुद भी ऊंघ रही हैं और उनके साथ-साथ उनकी सरकार भी ऊंघ रही है. जनता भी परेशान हो कर ऊंघ रही है. बस बेईमान, मुनाफाखोर और रिश्वतखोर जाग रहे हैं और चांदी काट रहे हैं.
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