सरकार कहती है ‘जागो ग्राहक’,
पर खुद सोती रहती है,
बीच-बीच में जागती है,
जागते ही महंगाई बढ़ जाती है,
मैं कहता हूँ,
क्या करोगे जाग कर?
जागोगे तो भूख लगेगी,
सोते रहो,
सपने में खाना खाते रहो.
हम आज ऐसे समाज में रहते हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है और हम सबके लिए नए तनावों की स्रष्टि कर रहा है. पर साथ ही साथ समाज में घट रही बहुत सी घटनाएं हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं. हमारे तनाव, भले ही कुछ समय के लिए, कम हो जाते हैं. हर घटना का एक हास्य-व्यंग का पहलू भी होता है. इस ब्लाग में हम उसी पहलू को उजागर करने का प्रयत्न करेंगे.