मनमोहन जी के व्यंग संग्रह से कुछ और रचनाएं प्रस्तुत हैं. संग्रह में रचनाएं कुछ अपनी हैं कुछ दूसरों की. लेखकों का पता नहीं है इस लिए सबको बेनाम धन्यवाद.
समय समय की बात है, समय समय का योग,
सिक्कों में तुलने लगे दो कौड़ी के लोग.
बात गोली से कभी पार चली जाती है,
ज्यादा घिसने से सभी धार चली जाती है,
मिले कुर्सी तो औकात न भूलें, लिख लें,
एक ही झटके में सरकार चली जाती है.
जमीन बेच देंगे, गगन बेच देंगे,
यह मुर्दों के सर का कफ़न बेच देंगे,
कलम के सिपाही अगर चुप रहे तो,
वतन के यह नेता वतन बेच देंगे.
ख़ुद लूट लिया काफिला अपना ही जिन्होनें,
ऐसे ही हमें काफिला सालार मिले हैं.
इस दौर के हालत से मजबूर हो गया,
इंसान आज ख़ुद से बहुत दूर हो गया,
राहजन बनाए जाते हैं अब राहबर यहाँ,
क्या खूब अपने मुल्क का दस्तूर हो गया.
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