एक दिन एक अनहोनी हो गई,
दिन दहाड़े एक दरोगाजी के घर चोरी हो गई,
फ़िर भी लोग चोर को शिष्ट बता रहे थे,
उसी के गुण गा रहे थे,
क्योंकि वह जाते-जाते एक अटेची छोड़ गया था,
और एक पत्र भी दरोगाजी की वर्दी में खोंस गया था,
निवेदन किया था,
हुजूर क्या बताएं?
इस शहर के लोग इतने गरीब हो गए हैं,
कि उनसे अपना पेट अब नहीं पल रहा है,
इसलिए मजबूर होकर आप ही के यहाँ यह कार्यक्रम रखना पड़ रहा है,
आशा है गुस्ताखी माफ़ करेंगे,
मेरे ख़िलाफ़ कोई रपट नहीं लिखेंगे,
इस गरीब की सेवाएँ याद रखेंगे,
आज भी अपना कर्तव्य निभाये जा रहा हूँ,
इस अटेची में आपका कमीशन छोड़े जा रहा हूँ.
(मनमोहन जी के संग्रह से)
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