भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.

Friday, August 28, 2009

चालीस रुपये का सेब

एन ऐपल ए डे कीप्स डाक्टर अवे,
मास्टरजी ने पढाया बच्चों को,
पर खुद गड़बड़ा गए,
एक सेब चालीस रुपये का,
घर में पांच जन,
दो सौ रुपये के सेब हर दिन,
काफी महंगा हो गया है,
कहावतों को जीवन में चरितार्थ करना.

दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ,
एक बच्चा बोला,
गुरूजी पहले खुद खाकर दिखाओ,
सौ रुपये किलो दाल,
क्या खाओगे, क्या गाओगे,
कहावत बदल दो,
सूखी रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ.

सुरक्षा गार्डों से घिरे एक मकान के,
एक अँधेरे कमरे में,
मोमबत्ती जला कर,
घुटनों के बल बैठे थे वह,
हाथ जुड़े थे, आँखें बंद,
कुछ यों बुदबुदा रहे थे,
हे जिन्ना महाराज,
आप बड़े दयालू हैं, कृपालू हैं,
ऐसे ही घमासान चलता रहे,
विरोधी खेमें में,
मेरी कुर्सी सुरक्षित रहे,
फिर पांच साल तक.

3 comments:

Ashok Pandey said...

महंगाई की बढ़वार को देखते हुए अब सचमुच इन कहावतों को बदलना ही होगा।

देसी एडीटर
खेती-बाड़ी

राज भाटिय़ा said...

्सुरेश जी आप ने आज का सच लिख दिया, पता नही यह नेता गरिबो का खुन कब पीना छोडेगे ??

Ashutosh said...

सच लिखा है आपने , महंगाई की समस्या विकराल है.
हिन्दीकुंज

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