वर्मा जी ने पूछा शर्मा जी से,
यह कामनवेल्थ क्या है?
अरे इतना भी नहीं जानते?
कामनवेल्थ यानी साझा धन,
वर्मा जी बुरा मान गए,
इतनी अंग्रेजी हिंदी आती है मुझे,
यह बताओ कहाँ है यह धन?
और किस किस में साझा है?
यार यह तो कभी सोचा नहीं,
हाँ अखवार भरे हैं इस बारे में,
कोई खेल होंगे २०१० में,
जिनका नाम है कामनवेल्थ गेम्स.
दोनों गए मिश्रा जी के पास,
मिश्रा जी ने समझाया,
आज़ादी से पहले,
अंग्रेजों के गुलाम देश जो कमाते थे,
वह धन साझा होकर जमा होता था,
अंग्रेज रानी की तिजोरी में,
और कहलाता था कामनवेल्थ,
इस धन के कुछ हिस्से से,
रानी खेल खिलाती थी,
जिन्हें कहते थे कामनवेल्थ गेम्स,
पर अब तो हम आजाद हैं,
बोले वर्मा जी, शर्मा जी,
क्या बाकई? बोले मिश्रा जी,
तीनों चुप हो गए.
मिश्रा जी ने चुप्पी तोडी,
गुलामी हमारा जन्मसिद्ध अधकार है,
अंग्रेज चले गए तो क्या हुआ?
अपना अधिकार छोड़ देंगे क्या?
देखा नहीं क्या?
कैसे नतमस्तक हो जाते हैं सब,
गोरी चमड़ी के सामने?
कामनवेल्थ गेम्स में जिन्दा है अभी भी गुलामी,
अब रही कामनवेल्थ की बात,
तो अब जनता का साझा धन,
बंटता है मंत्रियों में, बाबुओं में,
ठेकेदारों में, चमचों में,
हजारों करोड़ का वजट है भाई,
कई पीढिया तर जायेंगी.
चलो अब यह बहस बंद करो,
अपना कर्तव्य निभाओ,
आम आदमी धन कमाएगा,
सरकार को कर देगा,
तभी तो जेब भरेगी,
गुलामों के गुलाम नेताओं की.
1 comment:
आप ने सॊ प्रातिशत सही कहा हम आज भी गुलाम है, इन अग्रेजो के.....
धन्यवाद इस सुंदर ओर सच्ची कविता के लिये
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