पटना में चाय की एक दुकान,
बतिया रहे थे कुछ बिहारी,
यह नितीश बौरा गए हैं क्या?
गुजरात की जनता ने मदद भेजी,
यह ससुर लौटा दिए उस को,
मरे गरीब बाढ़ में,
वह गए घर, खेत, खलिहान,
इनका क्या बिगड़ा?
जनता की जनता को मदद,
यह कौन हैं लौटाने वाले?
दिमाग में चढ़ गई है सत्ता,
भूल गए हैं ससुर,
जनता ने बिठाया था कुर्सी पर,,
जनता ही उतार देगी,
कोई समझाए इनको,
न लें जनता से पंगा.
हम आज ऐसे समाज में रहते हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है और हम सबके लिए नए तनावों की स्रष्टि कर रहा है. पर साथ ही साथ समाज में घट रही बहुत सी घटनाएं हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं. हमारे तनाव, भले ही कुछ समय के लिए, कम हो जाते हैं. हर घटना का एक हास्य-व्यंग का पहलू भी होता है. इस ब्लाग में हम उसी पहलू को उजागर करने का प्रयत्न करेंगे.
भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.
Thursday, June 24, 2010
जनता से पंगा !!!
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