उनकी जमानत की अर्जी मंजूर हो गई,
सरकारी वकील की बहस नामंजूर हो गई,
अदालत में फिर एक बार साबित हो गया,
कानून अँधा नहीं है,
वह अपराधी को देखता है,
उसके परिवार के देखता है,
उसके सोशल स्टेटस को देखता है,
और वह कोई चपरासी नहीं थे,
वह तो थे सुपुत्र एक महान नेता के,
दलितों के आयोग के मुखिया के,
और कोई पांच रुपये की रिश्वत का मामला नहीं था यह,
एक करोड़ की रिश्वत का मामला था,
चपरासी होते तो नौकरी जाती,
जेल भी जाते,
अदालत ने चिंता जतायी,
अगर जेल में उनका चरित्र बिगड़ गया तो?
किसी अपराधी ने उन्हें छू लिया तो?
एक करोड़ से पांच रुपये का पतन,
अदालत को बर्दाश्त नहीं हुआ,
और एक महान निर्णय आया,
वह जमानत पर रहेंगे,
अपने घर,
अपने महान पिता की गोद में.
1 comment:
एकदम सही है, कानून की देवी बदचलन है, यह अंधे होने का नाटक करती है और पट्टी खिसका कर देख लेती है कि मुज़रिम उसका खास है या आम आदमी,
एसी देवी के सेवक कैसे होंगे? पैसे की खनखनाहट पर बड़े बड़े फैसले बिक जाते है, कानून बिक जाता है, ईमान बिक जाता है,
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