जब मार्गरेट अल्वा बोलीं,
तब बुरा लगा और 'हाथ' उठा,
जब नारायण राने बोले,
तब भी बुरा लगा और 'हाथ' उठा,
पर जब अंतुले बोले,
न बुरा लगा, न 'हाथ' उठा.
जान हथेली पर रख कर,
जनता ने दिया जवाब,
आतंक को, अलगाववाद को,
पर जिन्हें चुना, उन्होंने किया,
सत्ता का बंटवारा, सेवा का नहीं.
उन्होंने फरमाया,
जन्म दिन मनाना है नेता का,
पैसा दो या जान से जाओ,
नेता डाकू भाई-भाई.
हमने जन्म दिन मनाया,
कई महीनों का बजट बिगड़ गया,
उन्होंने जन्म दिन मनाया,
कई पीढियों का जीवन संवर गया.
पन्द्रह मिनट में उन्नीस बिल,
बेहयाई का रिकार्ड कायम किया,
जन-प्रतिनिधियों ने.
1 comment:
सुरेश जी आप ने तो सच्चे सच्चे चुटकले सुना दिये, आज नेता जिन गरीबो का नाम ले कर बनते है, जिस गरीबी का नाम ले कर बनते है, ओर बनते ही सब से पहले उस गरीब को उस गरीबी को भुल जाते है, ओर अपने जन्म दिन पर लोगो की लाशे बिछाते है, ओर उन लाशो पर अपना जन्म दिन मनाते है.. वाह केसे केसे नेता है.
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