स्वामी रामदेव ने योग को आम आदमी का योग बना दिया है. अब आपको किसी योग संस्थान में जाने की जरूरत नहीं है. स्वामी जी के एक सप्ताह के योग शिविर में भाग लीजिये और योग प्रारंभ कर दीजिये. यह भी न कर पायें तो टीवी पर उनका कार्यक्रम देखिये और योग शुरू कर दीजिये. आज कल किसी पार्क में जाइए, आपको लोग प्राणायाम करते नजर आ जायेंगे. कोई अकेले, कोई दुकेले. कहीं स्वामी जी से योग शिक्षण लिए हुए कोई सज्जन योग की क्लास चला रहे हैं.
में जिस पार्क में जाता हूँ वहां भी इसी तरह की एक योग क्लास चलती है. पुरूष और महिलायें दोनों ही उस में भाग लेते हैं. पर बेचारे यह योगी पार्क के मालियों द्वारा बहुत तंग किए जाते हैं. यह पार्क डीडीऐ का एक डिस्ट्रिक्ट पार्क है, पर बहुत ही दयनीय स्थिति में है. दिन में माली पार्क में पानी चला देते हैं. शायद वह ऐसा पार्क में घास उगाने के लिए करते हैं, पर यह सिर्फ़ समय और पानी की बर्बादी है. पार्क में सूअर और कुत्ते बिना रोक टोक के घूमते हैं. कभी-कभी तो लगता है कि डीडीऐ ने यह पार्क इंसानों के लिए नहीं, सूअर और कुत्तों के लिए बनाया है. इन्होनें पार्क की अधिकतर जमीन को खोद डाला है. हरी घास ख़त्म हो गई है और जमीन नंगी हो गई है. अब वहां घास उगने की कोई सम्भावना नहीं है. फ़िर भी न जाने क्यों माली रोज पानी चला देते हैं. शायद ऐसा करके वह समझते हैं कि उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है.
इंसानों की तरह पार्कों में भी वीआइपी पार्क होते हैं. इस पार्क की गिनती तो लगता है आम पार्कों में भी नहीं होती, वरना सूअर और कुत्तों का पार्क में क्या काम. दिल्ली में ऐसे कितने डीडीऐ के पार्क हैं जिन पर किसी भी शहर को गर्व हो सकता है, पर एक पार्क यह भी है जो शहर के नाम पर कलंक है. लोग यहाँ कूड़ा फेंकते हैं. पालतू कुत्तों को टहलाने लाते हैं, हालांकि इस पर पार्क के कुत्ते और सूअर ऐतराज करते हैं. जुआरी और शराबियों के लिए यह पार्क स्वर्ग है. घूमने के रास्ते कच्चे हैं, उबड़-खाबड़, जगह-जगह पत्थर बाहर निकले हुए, क्यारिओं से पानी इन रास्तों पर आ जाता है और कीचड़ हो जाती है. लोग फिसल जाते हैं. बरसात में तो इन रास्तों पर घूमना खतरा मोल लेना है. एक साल पहले पश्चिम पुरी के २५० निवासियों ने हस्ताक्षर करके एक ज्ञापन इस छेत्र के प्रतिनिधियों को दिया था - एमपी, विधायक, निगम पार्षद. पर कुछ नहीं हुआ.
पार्क में रौशनी के नाम पर एक बल्ब भी नहीं जलता. आस-पास के लोग बल्ब, होल्डर, स्विच आदि को अपना मान कर अपने घर ले गए हैं. सुबह जब यह योगी पार्क में आते हैं तो अँधेरा होता है. बेचारे सब तरफ़ घूम कर कोई सूखी जगह तलाश करते हैं. मैं उन्हें रोज किसी नई जगह पर योग करते देखता हूँ. आज भी ऐसा ही हुआ. एक अन्तर जरूर था. आज केवल महिलायें ही आई थीं. न जाने किस कारण से पुरूष आज अनुपस्थित थे. क्योंकि आज केवल महिलायें ही थीं इसलिए योग कम और बात-चीत ज्यादा हुई.
एक महिला पार्क की दुर्दशा पर बहुत खफा थीं. उन्होंने इस छेत्र के विधायक का नाम लेकर कहा कि उसे पकड़ कर लाओ और इस पार्क की दुर्दशा दिखाओ और उस से पूछो कि क्या इस लिए हमने उसे जिताया है. मुझे उनकी यह बात सुन कर बहुत हँसी आई. इस नेतातान्त्रिक देश में क्या कोई किसी नेता को पकड़ सकता है या उसे पकड़ कर कहीं ले जा सकता है? यह महिला सबके साथ रोज मां शारदा से प्रार्थना करती हैं -
हे शारदे मां, हे शारदे मां,
अज्ञानता से हमें तार दे मां.
और फ़िर ऐसी अज्ञानता की बात करती हैं.
मां शारदा भी इनकी इस अज्ञानता पर मुस्कुरा रही होंगी. इन्हें इतना भी नहीं मालूम कि:
बड़े लड़ैया हैं यह नेता, इनकी मार सही न जाए,
एक को मारें दो मर जाएँ, तीसरा मरे सनाका खाए.
नेता जी इस बार फ़िर जीत गए. गया पार्क खड्डे में पाँच साल के लिए. हो सकता है तब तक पार्क ही न रहे, पार्किंग लाट बन जाए, कोई माल बन जाए, नए वोट बेंक की झुग्गी-झोंपडी बन जाएँ.
योग तो करते हैं लोग इस पार्क में, घूमते भी हैं, पर यह भी एक मजबूरी है, जाएँ तो जाएँ कहाँ?
2 comments:
आपकी बातों से लगता है कि जिस बस्ती में यह पार्क है, उसकी आबादी पर्याप्त होगी क्योंकि 250 लोगों ने तो आवेदन पर हस्ताक्षर किए थे।
यह भी स्पष्ट है कि इस पार्क की ओर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है - न नगर निगम और न ही क्षेत्रीय विधायक।
यह सब कुछ स्पष्ट हो जाने के बाद भी किसी की प्रतीक्षा करना समझदारी नहीं है। बस्ती के निवासियों को मिल बैठकर इस पार्क का पुनरुध्दार करने वर विचार करना चाहिए। इसके सिवाय और कोई रास्ता फिलवक्त तो नजर नहीं आता।
जो असुविधा झेल रहे हैं, निदान उन्हीं को निकालना पडेगा।
सुरेश जी बहुत समय बाद आप ने भारत के पार्क की सेर करवा दी, अजी मेरे को तो बहुत मजा आया इस पार्क मै घुम कर, जिधर देखो अजादी ही अजादी,
धन्यवाद
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