भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.

Monday, February 2, 2009

मनमोहन जी का व्यंग संग्रह

वह पेशे से वकील हैं, पर रूचि रखते हैं हास्य-व्यंग में. 
ख़ुद भी व्यंग रचना करते हैं, और यहाँ-वहां से सुनी-पढीं व्यंग रचनाएं संग्रहित भी करते हैं. उनके संग्रह से स्वरचित एक रचना आप सबको समर्पित है.

है कलिकाल तुम्हारी माया,
सचमुच तीन लोक से न्यारी.
मानवता का पाठ पढाते,
कपटी, लोभी, भ्रष्टाचारी.

सच्चे संत महापुरुषों की,
शर्म से गर्दन झुकी हुई है.
पाखंडी गुरुओं को मिल गई,
आज धर्म की ठेकेदारी.

मानवता मिल गई एक दिन,
मैंने देखा बुरा हाल था.
बुरी तरह से बिखरी-बिखरी,
टूटी-टूटी,हारी-हारी. 

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना प्रेषित की है।आभार।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना....

राज भाटिय़ा said...

बिलकुल सच उडेला है इन्होने अपनी कविता मै , बहुत सुंदर.
धन्यवाद आप का ओर इन कवि वकील मोहन जी का.

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