वह पेशे से वकील हैं, पर रूचि रखते हैं हास्य-व्यंग में.
ख़ुद भी व्यंग रचना करते हैं, और यहाँ-वहां से सुनी-पढीं व्यंग रचनाएं संग्रहित भी करते हैं. उनके संग्रह से स्वरचित एक रचना आप सबको समर्पित है.
है कलिकाल तुम्हारी माया,
सचमुच तीन लोक से न्यारी.
मानवता का पाठ पढाते,
कपटी, लोभी, भ्रष्टाचारी.
सच्चे संत महापुरुषों की,
शर्म से गर्दन झुकी हुई है.
पाखंडी गुरुओं को मिल गई,
आज धर्म की ठेकेदारी.
मानवता मिल गई एक दिन,
मैंने देखा बुरा हाल था.
बुरी तरह से बिखरी-बिखरी,
टूटी-टूटी,हारी-हारी.
3 comments:
बढिया रचना प्रेषित की है।आभार।
बहुत सुंदर रचना....
बिलकुल सच उडेला है इन्होने अपनी कविता मै , बहुत सुंदर.
धन्यवाद आप का ओर इन कवि वकील मोहन जी का.
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