भ्रष्टाचार है - तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, कानून की अवहेलना, योग्यता के मुकाबले निजी पसंद को तरजीह देना, रिश्वत लेना, कामचोरी, अपने कर्तव्य का पालन न करना, सरकार में आज कल यही हो रहा है. बेशर्मी भी शर्मसार हो गई है अब तो.

Tuesday, December 29, 2009

वह सीएम् की कुर्सी पर ऊंघ रही हैं

प्रेस पार्टी ख़बरें सूंघ रही थी,
मुख्य मंत्री दफ्तर में ऊंघ रही थी,
जनता ने तीसरी बार जिताया,
कारण आज तक समझ नहीं आया,
खुद मैंने खुद को वोट नहीं डाला,
पर जनता मुझे ही वोट डाल गई,
क्या जनता बेबकूफ है?
या कोई साजिश कर रही है?
घर और बाहर कोई सुरक्षित नहीं,
चोर और पुलिस में कोई अंतर नहीं,
सड़कों में गड्ढे या गड्ढों में सड़कें?
मौत बांटती ब्लू लाइन बसें,
पानी तो बिजली नहीं,
बिजली तो पानी नहीं,
अक्सर दोनों ही नहीं,
कुछ भी तो सही नहीं,
बस एक ही बात सही है,
वह सीएम् की कुर्सी पर ऊंघ रही हैं,
प्रेस पार्टी ख़बरें सूंघ रही है.

Thursday, December 17, 2009

चोर और मंत्री

माननीय धनिया राम,
इस बार मंत्री बन ही गए,
मीडिया वाले उन के घर आये,
उन का इंटरव्यू लिया,
अंत में एक सवाल पूछा,
किस का हाथ है?
आपकी इस सफलता के पीछे,
धनिया जी मुस्कुराए,
अपनी पत्नी की और इशारा किया,
सही है सब ने कहा,
हर सफल आदमी के पीछे,
होती है एक औरत.

केमरा घूम गया,
श्रीमती धनिया राम की तरफ,
वह मुस्कुराई और बोली,
धनिया जी एक चोर थे,
अक्सर पकडे जाते,
जम कर ठुकाई होती,
मेरे मन में एक ख़याल आया,
मैंने धनिया जी को समझाया,
चुनाव क्यों नहीं लड़ते,
अगर जीत गए और मंत्री बन गए,
तो रोज चोरी करना देश के धन की,
जो पुलिसवाले आज ठोकते हैं,
तब सलाम करेंगे,
आज दस नम्बरी कहलाते हो,
तब माननीय कहलाओगे,
इन्होनें मेरी बात मान मान ली,
आज पुलिस विभाग के मंत्री हैं,
पुलिस और चोर,
दोनों भेंट चढाते हैं,
मांननीय धनिया राम जी
सारे देश में पूजे जाते हैं,
पहले मात्र चोर थे,
अब चोर मंत्री हैं.

Thursday, December 10, 2009

नया प्रदेश और दहेज़

सुना है नेताजी अनशन पर बैठ गए हैं,
हाँ आपने सही सुना है,
पर क्यों यह नहीं पता चला,
अरे सबको पता है, आपको नहीं,
एक नया प्रदेश बनाओ,
यह मांग है उनकी,
नया प्रदेश, पर कहाँ, किस नाम से?
कहीं भी, किसी भी नाम से,
बस उन्हें नया प्रदेश चाहिए,
पर क्यों, कुछ तो कारण होगा,
उनके होने वाले दामाद की जिद है,
शादी में सीएम् की कुर्सी चाहिए,
और कुर्सी कोई खाली है नहीं,
नया प्रदेश बनेगा,
नई कुर्सी बनेगी,
उस पर दामाद बैठेगा.

Monday, December 7, 2009

प्रेम का नया दुश्मन

एक सुवर को मुर्गी से प्रेम हो गया,
मुर्गी भी सुवर को प्रेम करने लगी,
पर यह प्रेम पसंद नहीं आया,
दोनों के घरवालों को,
सुवर और मुर्गी का प्रेम,
न देखा कभी न सुना,
समझाया फिर धमकाया,
पर प्रेम अँधा होता है,
दोनों नहीं माने,
घर छोड़कर भाग गए,
रहने लगे लिव-इन रिलेशनशिप में,
एक रात सुवर ने चुम्बन लिया मुर्गी का,
सुबह दोनों मृत पाए गए,
डाक्टरी जांच से पता चला,
सुवर मरा बर्ड फ़्लू से,
मुर्गी मरी स्वाईन फ़्लू से.

Monday, October 19, 2009

कामनवेल्थ (साझा धन) खेल स्पर्धा शुरू

साझा धन खेल स्पर्धा,
हो गई समय से पहले शुरू,
कल्मादी, हूपर, फेनेल,
जुट गए मल्ल युद्ध में,
दुसरे को नीचा दिखाने की,
खुद को ऊंचा साबित करने की,
अघोषित प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक,
कौन जीतेगा?
कोई भी जीते,
क्या फर्क पड़ता है,
खेल तो हार गए.

Friday, October 9, 2009

निद्रा देवी की कृपा से कामनवेल्थ गेम्स बच गए

आज पार्क में शर्मा जी बहुत खुश थे. लोगों के पूछने पर अपने हाथ में लिया अखवार हिलाते थे और कहते थे, 'आने दो वर्मा को, आज माफ़ी न मंगवाई तो मेरा नाम नहीं'.
किसी की कुछ समझ में नहीं आया तो मिश्रा जी बोले, 'भई आ जाने दो वर्मा जी को सब पता चल जायगा'.
कुछ देर में वर्मा जी आ गए. शर्मा जी ने अखवार उनकी तरफ बढाया और बोले' 'लो पढो इसे और कुछ शर्म बाकी है तो माफ़ी मांगो'. वर्मा जी ने खबर पढ़ी और बोले, 'क्या है यह और किस बात की माफ़ी?'
'अच्छा किस बात की माफ़ी? अरे शर्म करो, भूल गए जब में किसी लेक्चर या प्रेजेंटेशन में सोता हूँ तो मेरा मजाक उडाते हो, बॉस से चुगली लगाते हो और मुझे डांट खिलवाते हो. अब कामनवेल्थ गेम्स फेडरेशन का प्रेसिडेंट प्रेजेंटेशन में सो रहा है तो पूछ रहे हो क्या है यह और किस बात की माफ़ी?'
वर्मा जी से अखवार ले कर हम सबने खबर पढ़ी तो सारी बात समझ में आई.
मिश्रा जी बोले, 'भई वर्मा जी यह बात तो गलत है, शर्मा जी का मजाक उड़ाना, उनकी चुगली करना और बॉस से डांट खिलवाना. अरे भई लेक्चर और प्रेजेंटेशन में सोने वाले तो महान लोग होते हैं. क्या तुमने लोक सभा और विधान सभा में
मंत्रिओं को सोते नहीं देखा? शर्मा जी महान हैं तभी तो सोते हैं,'
सब ने मिश्रा जी की बात का समर्थन किया. वर्मा जी को शर्मा जी से माफ़ी मांगनी पडी.
महान शर्मा जी का सब ने तालियों से अभिनन्दन किया,
मिश्र जी ने कहा, 'अब यह सोते हुए प्रेसिडेंट खेलों की तैयारियों पर पूरा संतोष प्रकट करेंगे. यह भी खुश, भारत सरकार भी खुश, कामनवेल्थ में से अपने-अपने हिस्से की वेल्थ लेने वाले भी खुश. सोचो जरा, अगर यह सोते नहीं तो गए थे कामनवेल्थ खेल दिल्ली से'.

Sunday, October 4, 2009

अच्छा बापू अब अगले साल याद करेंगे तुम्हें

मेरा एक दोस्त जो सरकारी बाबू है इस बार बापू से बहुत खुश था. बापू ने इस साल शुक्रवार को पैदा होकर बहुत अच्छा किया, तीन छुट्टियां बन गईं और वह मसूरी निकल लिया. और भी बहुत सारे लोग बापू से इस बात पर खुश होते हैं कि वह हर साल २ अक्टूबर को पैदा होते हैं और उनकी जेब गरम कर जाते हैं. सरकार ने जनता का करोडों रुपया पानी की तरह बहा दिया विज्ञापनों में. यह बहता पानी कुछ तो गया नेताओं और बाबुओं की जेब में, कुछ गया अखवार वालों की जेब में, और कुछ गया ...... अरे भाई किसी न किसी जेब में तो गया होगा. कुछ सरकारों ने बापू के नाम पर गरीब जनता के लिए कुछ योजनाओं की घोषणा कर दी. अब बापू के अगले जन्म दिन तक सब मजे करेंगे.

एक नवोदित लेखक ने बापू को चिट्ठी लिख डाली कि बापू एक दिन के लिए आ जाओ और ६० सालों में जो बिगडा है उसे ठीक कर जाओ. साथ ही धमकी भी दे दी कि अगर नहीं आये तो हम खुद ठीक कर लेंगे. एक नए मंत्री ने ट्वीट कर दी कि बापू के जन्म दिन पर सब को काम करना चाहिए. इस पर कुछ राजनीतिबाजों ने आदतन बयानबाजी कर डाली. और भी बहुत से लोगों ने कुछ किया होगा और कुछ ने कुछ नहीं भी किया होगा. मतलब यह कि बापू का जन्म दिन आया और निकल गया. कुछ को पता चला और कुछ को नहीं पता चला. जिन को पता चला उन्होंने क्या उखाड़ लिया और जिन्हें नहीं पता चला वह क्या उखाड़ लेते अगर पता चल जाता. हर साल की तरह जो होता है वह इस साल भी हुआ और अगले साल भी होगा.

आज तक कोई बापू को समझ नहीं पाया. सब ने उन्हें अपने हिसाब से समझा. वह जैसे थे बैसा किसी ने नहीं समझा. बापू हम सबकी तरह एक आम इंसान थे. वह कोई मसीहा नहीं थे. बस कुछ आम इंसान अपने व्यवहार में दूसरे आम इंसानों से ऊपर उठ जाते हैं. बापू एक ऐसे ही आम इंसान थे. पर कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उन्हें मसीहा का नाम दे दिया, राष्ट्रपिता कह दिया, और इस ब्रांडिंग का पेटेंट अपने नाम कर लिया. आज तक उनकी पीढियां इस ब्रांडिंग का फायदा उठा रही हैं. वास्तविकता तो यह है कि बापू के आदर्शों का सबसे ज्यादा मजाक इन्हीं लोगों ने उड़ाया. यह बापू की सबसे बड़ी कमजोरी थी कि वह सही और गलत आदमी में भेद नहीं कर पाए. सब उन्हें प्यार करते थे, उनका आदर करते थे, और इसी प्यार और आदर का गलत इस्तेमाल करके बापू ने इन गलत लोगों को इस देश और जनता पर थोप दिया.

बापू की सबसे बड़ी खासियत थी उनका मानवीय संबंधों के प्रति आदर. मेरे विचार से यह एक खासियत बापू को एक आम इंसान से बहुत ऊपर उठा ले गई. अफ़सोस की बात यह है कि उनकी इसी खासियत को लोग समझ नहीं पाए. बापू सबसे प्रेम करते थे. उन्होंने कभी किसी से नफरत नहीं की. यही प्रेम उनके अहिंसा के सिद्धांत का आधार था. जो इंसान प्रेम करता है वह हिंसक हो ही नहीं सकता. आज भारतीय समाज में मानवीय संबंधों के प्रति जो अनादर है उसे दूर किये बिना बापू का जन्म दिन मनाने का कोई मतलब नहीं है.

Friday, October 2, 2009

जनता का धन है किसका साझा धन?

वर्मा जी ने पूछा शर्मा जी से,
यह कामनवेल्थ क्या है?
अरे इतना भी नहीं जानते?
कामनवेल्थ यानी साझा धन,
वर्मा जी बुरा मान गए,
इतनी अंग्रेजी हिंदी आती है मुझे,
यह बताओ कहाँ है यह धन?
और किस किस में साझा है?
यार यह तो कभी सोचा नहीं,
हाँ अखवार भरे हैं इस बारे में,
कोई खेल होंगे २०१० में,
जिनका नाम है कामनवेल्थ गेम्स.

दोनों गए मिश्रा जी के पास,
मिश्रा जी ने समझाया,
आज़ादी से पहले,
अंग्रेजों के गुलाम देश जो कमाते थे,
वह धन साझा होकर जमा होता था,
अंग्रेज रानी की तिजोरी में,
और कहलाता था कामनवेल्थ,
इस धन के कुछ हिस्से से,
रानी खेल खिलाती थी,
जिन्हें कहते थे कामनवेल्थ गेम्स,
पर अब तो हम आजाद हैं,
बोले वर्मा जी, शर्मा जी,
क्या बाकई? बोले मिश्रा जी,
तीनों चुप हो गए.

मिश्रा जी ने चुप्पी तोडी,
गुलामी हमारा जन्मसिद्ध अधकार है,
अंग्रेज चले गए तो क्या हुआ?
अपना अधिकार छोड़ देंगे क्या?
देखा नहीं क्या?
कैसे नतमस्तक हो जाते हैं सब,
गोरी चमड़ी के सामने?
कामनवेल्थ गेम्स में जिन्दा है अभी भी गुलामी,
अब रही कामनवेल्थ की बात,
तो अब जनता का साझा धन,
बंटता है मंत्रियों में, बाबुओं में,
ठेकेदारों में, चमचों में,
हजारों करोड़ का वजट है भाई,
कई पीढिया तर जायेंगी.

चलो अब यह बहस बंद करो,
अपना कर्तव्य निभाओ,
आम आदमी धन कमाएगा,
सरकार को कर देगा,
तभी तो जेब भरेगी,
गुलामों के गुलाम नेताओं की.

Monday, September 28, 2009

रावण के चेहरे में दिखता है उन्हें अपना चेहरा

नेता जी बहुत परेशान थे,
शहर की रामलीला ने,
मुख्य अतिथि बनाया था उन्हें,
उन्हें वाण चलाना था,
रावण को जलाना था,
हमने उन्हें वधाई दी,
वह और परेशान हो गए,
हमने पूछा तो अकेले में ले गए,
बोले रावण की तरफ देखो,
हमने रावण की तरफ देखा,
बोले रावण का चेहरा देखो,
हमने रावण का चेहरा देखा,
क्या दिखाई दिया, उन्होंने पूछा,
डराबना, बुराई का मूर्त रूप,
वह और परेशान हो गए,
उदास स्वर में बोले,
रावण के चेहरे में दिखता है मुझे,
मेरा अपना चेहरा,
यह कहते हैं जलाना है उसे,
कैसे जला दूं खुद को?
मैंने फिर से देखा और डर गया,
चुपके से खिसक लिया,
बाद में पता चला,
नेताजी की तबियत ख़राब हो गई,
अस्पताल में भरती हो गए,
बच गए रावण को जलाने से,
आत्मह्त्या करने से.

Saturday, September 26, 2009

सोच रहा हूँ राष्ट्रपति बन जाऊं

कल अखवार पढ़ कर,
फिर मन में आया,
क्यों न राष्ट्रपति बन जाऊं?
एक बार पहले भी आया था मन में,
जब हाईवे टोल पर एक बोर्ड पढ़ा था,
राष्ट्रपति की कार को टोल नहीं देना,
राष्ट्रपति बने और फुर्र से निकल गए,
वर्ना खड़े रहो लाइन में और पैसा भी दो,
अब एक और पर्क मिला राष्ट्रपति को,
बेटे को एम्एलए का टिकट मिलेगा,
चिंता ख़त्म,
बेटा कैसा भी योग्य या अयोग्य हो,
नौकरी पक्की,
और कोई ऐसी बैसी नौकरी नहीं,
मरने तक रिटायरमेंट नहीं,
मजे ही मजे,
न कोई काम न धाम,
काम करो तो फायदा,
न करो तो फायदा,
दोनों हाथों में लड्डू,
क्या ख्याल है भाइयों,
बन जाऊं राष्ट्रपति?

Wednesday, September 23, 2009

'भोंदू', 'पागल', बेबकूफ'

भारतीय पत्नी समाज के लिए यह एक आनद विभोर कर देने वाली खबर है. आप अपने पति को 'भोंदू', 'पागल', बेबकूफ' कह सकती हैं, और कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. अगर आपका पति कम शिक्षित है तब आप उसका जितना चाहे मजाक उड़ा सकती हैं. बॉम्बे हाई कोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने आपको यह अधिकार दिया है. जिन पत्नियों ने अभी तक इस परम आनंद का अनुभव नहीं किया है वह तुंरत इस अधिकार का प्रयोग करना शुरू कर दें.

वधाई हो.

Sunday, September 20, 2009

आओ खर्चा बचाएँ

शर्मा जी बहुत खुश थे,
केटल क्लास में सफ़र करके,
सरकार खर्चा बचा रही है,
वर्मा जी नाराज थे,
सरकार खर्चा नहीं बचा रही,
आम आदमी का मजाक उड़ा रही है,
कितने दिन चलेगा यह नाटक?
खर्चा बचाने का.

वर्मा जी बोले,
अखवार भरे हैं,
सरकारी विज्ञापनों से,
विज्ञापन भरे हैं फोटो से,
राजनीतिबाजों के,
किसका पैसा है यह?
क्यों नहीं होती इस में,
खर्चा बचाने की मुहिम?

हाँ भाई, शर्मा जी बोले,
खुले आम हो रही है चमचागिरी,
हर विज्ञापन में मेडम की फोटो,
मेडम पार्टी में हैं, सरकार में नहीं,
पैसा जनता का है, पार्टी का नहीं,
यह मजाक सिर्फ जनता से नहीं,
कानून के साथ भी है.

Tuesday, September 15, 2009

गर्व की बात है या शर्म की ?


कितनी अजीब बात है कि आज कल अखवार ऐसी प्रतियोगिताएं करवाते हैं जिन में आपने यह वोट देना होता है कि कौन सी लड़की गर्म है और कौन सी नहीं. अखवार के अनुसार यह उस लडकी और उस के कालिज के लिए गर्व की बात होगी. कोई ज्यादा पुरानी बात नहीं, अगर कोई लड़का किसी लडकी को 'क्या माल है' कह देता था तो झगडा होने की पूरी सम्भावना रहती थी. पर आज कल क्या कहते हैं, ज़माना बदल गया है. औरतें इस बात पर गर्व अनुभव करती हैं कि मर्द उन्हें 'गर्म' की संज्ञा देते हैं. सोशल वेबसाइट्स पर अगर कोई लड़का किसी लडकी की फोटो पर यह कमेन्ट कर दे कि वह 'हॉट' है तो जवाब में वह लड़की 'थैंक्स' कहती है.

आगे क्या होगा, जरा सोचिये? लड़का लडकी के घर आया और उस के पिता से कहा कि आपकी लड़की बहुत 'हॉट' है इस लिए मैं उसे डेट पर ले जाने आया हूँ. लडकी के पिता का सीना चौडा हो गया. लगा जिन्दगी धन्य हो गई. गर्व से मुस्कुराते हुए कहा 'थैंक्स', 'हाँ हाँ ले जाओ'. फिर बेटी की और गर्व से देखा और कहा, 'जाओ बेटी, आज तुमने समाज में मेरा सर गर्व से ऊंचा कर दिया'.

Friday, August 28, 2009

चालीस रुपये का सेब

एन ऐपल ए डे कीप्स डाक्टर अवे,
मास्टरजी ने पढाया बच्चों को,
पर खुद गड़बड़ा गए,
एक सेब चालीस रुपये का,
घर में पांच जन,
दो सौ रुपये के सेब हर दिन,
काफी महंगा हो गया है,
कहावतों को जीवन में चरितार्थ करना.

दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ,
एक बच्चा बोला,
गुरूजी पहले खुद खाकर दिखाओ,
सौ रुपये किलो दाल,
क्या खाओगे, क्या गाओगे,
कहावत बदल दो,
सूखी रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ.

सुरक्षा गार्डों से घिरे एक मकान के,
एक अँधेरे कमरे में,
मोमबत्ती जला कर,
घुटनों के बल बैठे थे वह,
हाथ जुड़े थे, आँखें बंद,
कुछ यों बुदबुदा रहे थे,
हे जिन्ना महाराज,
आप बड़े दयालू हैं, कृपालू हैं,
ऐसे ही घमासान चलता रहे,
विरोधी खेमें में,
मेरी कुर्सी सुरक्षित रहे,
फिर पांच साल तक.

Saturday, August 22, 2009

सरकारी जमीन पर कब्जा करने का आत्मिक सुख

आज सुबह पार्क में सिन्हा साहब बहुत खुश नजर आ रहे थे. मुहाबरे की भाषा में कहें तो, ख़ुशी फूटी पड़ रही थी उनके चेहरे पर. बैसे ध्यान से देखने पर अत्यधिक प्रसन्न सिन्हा साहब के चेहरे पर कुछ परेशानी भी नजर आ रही थी. अत्यधिक प्रसन्नता और कुछ परेशानी का ऐसा अद्भुत संगम मैंने पहले कभी नहीं देखा था. कई लोगों ने पूछा पर उन्होंने अपनी इस प्रसन्नता और परेशानी को किसी के साथ बांटा नहीं था. जब मेरी उत्सुकता मुझे परेशान करने लगी तो मैं भी उनके पास पहुँच गया.
मुझे देखते ही बोले, 'दीवान साहब नहीं आये अभी तक?'
दीवान साहब उनके लंगोटिया यार हैं. तो यह कारण था उनकी परेशानी का. ख़ुशी की बात दीवान साहब को न बता पाने के कारण परेशान थे सिन्हा साहब. खैर यह परेशानी ज्यादा देर नहीं रही. दीवान साहब भी आ गए.
सिन्हा साहब ने अपनी शिकायत दर्ज कराई, 'कहाँ रह गए थे यार? इतनी देर से इंतज़ार कर रहा हूँ.'
'यार कल रात दारू पार्टी ज्यादा देर तक चली. उठने में देर हो गई', सिन्हा साहब ने सफाई दी और पूछा, 'तुम कहाँ रहे कल? पार्टी में नहीं आये'.
'अरे यही तो बताना है तम्हें' सिन्हा साहब ने कहा और दीवान साहब का बाजू पकड़ कर उन्हें झाडियों की तरफ ले गए.
मैं भी खिसका और झाडियों की दूसरी तरफ छिप कर खड़ा हो गया. सिन्हा साहब ने दीवान साहब को जो बताया वह मैं आपको बता रहा हूँ, पर इस शर्त के साथ कि आप किसी और को नहीं बताएँगे.
दीवान साहब, 'हाँ अब बताओ.'
सिन्हा साहब, 'यार तुम तो जानते ही हो कि ईश्वर ने मुझे हर गलत काम करने का आत्मिक सुख दिया, पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने के आत्मिक सुख से अभी तक बंचित कर रखा था. कल वह सुख भी प्राप्त हो गया'.
दीवान साहब, 'भई वधाई हो, अब जल्दी से खुलासा कर के बताओ'.
सिन्हा साहब, 'तुम्हे पता ही है कि मैं बेटे की शादी कर रहा हूँ और उस के लिए मकान में कुछ फेर बदल करवा रहा हूँ'.
दीवान साहब, 'हाँ हाँ मालूम है, अब आगे कहो'.
सिन्हा साहब, 'दो दिन से पिछले कमरे में काम चल रहा था कि तुम्हारी भाभी ने एक आइडिया दिया. क्यों न सड़क की तरफ दीवार बढा कर एक अलमारी और एक स्टोर बना लें? इस से कमरे में जगह भी खूब मिल जायेगी और सरकारी जमीन पर कब्जा करने का तुम्हारा सपना भी पूरा हो जाएगा. मेरी तो बांछे खिल गई यार, क्या आइडिया दिया था बीबी ने'.
दीवान साहब, 'वाह क्या बात है. किसी ने सही कहा है कि हर सफल आदमी के पीछे एक औरत होती है'.
सिन्हा साहब, 'हाँ यार, भगवान् ऐसी बीबी किसी दुश्मन को न दे. कल रात जा कर यह महान काम पूरा हुआ. तब से एक गहरे आत्मिक आनंद का अनुभव कर रहा हूँ'.
दीवान साहब, 'लेकिन लोग ऐतराज नहीं करेंगे क्या? सड़क बैसे ही काफी तंग है, अब तो और भी तंग हो जायेगी'.
सिन्हा साहब, 'अरे यार यह बात तो मेरे इस आत्मिक आनंद को दुगना कर रही है. आपके कारण पडोसी परेशान हों, इसी में तो मनुष्य जीवन की सफलता है. एक मीठी गुदगुदी सी महसूस कर रहा हूँ अपने अन्दर. आज जब दिन में सब देखेंगे और जलेंगे तो कितना आनंद मिलेगा हमें'.
दीवान साहब, 'अगर किसी ने शिकायत कर दी तो?'.
सिन्हा साहब, 'अरे वह तो शायद कर भी चुके लोग. पुलिस वाले और नगर निगम वाले आये थे और अपनी भेंट ले कर चले गए. अब माता रानी को भेंट और चढानी है. आखिर उनकी कृपा से ही तो यह सब संभव हुआ है'
दीवान साहब, 'वधाई हो, अब मिठाई कब खिला रहे हो?'.
सिन्हा साहब, 'क्या यार तुम भी, मिठाई नहीं दारू और मुर्गे की बात करो. माता रानी की कृपा हुई है, क्या मिठाई से निपटा दूंगा? फाइव स्टार में पार्टी होगी यार'.
दीवान साहब, 'जय माता रानी की. चलो अब चलते हैं, माँ की कृपा के दर्शन तो कर लें'.

Monday, August 17, 2009

वह जमानत पर रहेंगे

उनकी जमानत की अर्जी मंजूर हो गई,
सरकारी वकील की बहस नामंजूर हो गई,
अदालत में फिर एक बार साबित हो गया,
कानून अँधा नहीं है,
वह अपराधी को देखता है,
उसके परिवार के देखता है,
उसके सोशल स्टेटस को देखता है,
और वह कोई चपरासी नहीं थे,
वह तो थे सुपुत्र एक महान नेता के,
दलितों के आयोग के मुखिया के,
और कोई पांच रुपये की रिश्वत का मामला नहीं था यह,
एक करोड़ की रिश्वत का मामला था,
चपरासी होते तो नौकरी जाती,
जेल भी जाते,
अदालत ने चिंता जतायी,
अगर जेल में उनका चरित्र बिगड़ गया तो?
किसी अपराधी ने उन्हें छू लिया तो?
एक करोड़ से पांच रुपये का पतन,
अदालत को बर्दाश्त नहीं हुआ,
और एक महान निर्णय आया,
वह जमानत पर रहेंगे,
अपने घर,
अपने महान पिता की गोद में.

Thursday, August 6, 2009

महान लोगों द्बारा स्थापित महान आदर्श

बूटा जी का आदर्श - अगर इस्तीफा देने को कहा तो जान दे दूंगा.
मीरा जी का आदर्श - भले ही लाखों जीवित हिंदुस्तानिओं के सर पर छत न हो, मुझे मेरे मृत पिता के लिए आलीशान मकान चाहिए.
जजों के आदर्श - हमसे व्यक्तिगत संपत्ति का व्योरा देने के लिए कहना न्याय पालिका का अपमान है. देखते नहीं अदालत में हमारी कुर्सी सबसे ऊंची होती है.
जजों का एक और आदर्श - जनता का सूचना अधिकार हम पर लागू नहीं होता.
माया का आदर्श - जनता भूखी है तो यह उसका प्रारब्ध है. सूखा प्रदेश में मेरी और हाथिओं की मूर्तियाँ हरियाली की वर्षा करेंगी.
ममता का आदर्श - जो मैंने कह दिया वही सच है, शाश्वत है, सनातन है, भले ही गलत कह दिया हो.
कांग्रेस का आदर्श - पार्टी और सरकार कब साथ और कब अलग है यह फैसला मालकिन करेंगी.
बीजेपी का आदर्श - चुनाव हरा कर हमसे आदर्श की उम्मीद करते हो?
हारे हुए नेताओं के आदर्श - एक बार सरकारी मकान में घुस गए तो उस से बाहर न निकलना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है.

Wednesday, August 5, 2009

वर्ल्ड क्लास शहर का वर्ल्ड क्लास पार्क

समझ नहीं पाता हूँ मैं,
शिकायत करुँ या करुँ धन्यवाद?
दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार,
कौन है धन्यवाद का हकदार?
सांसद, एम्एलए, पार्षद,
किसे पहनाऊं प्रशंसा का हार?
उपराज्यपाल, डीडीए उपाध्यक्ष,
किस की प्रशंसा का हूँ मैं कर्जदार?
डीडीए डिस्ट्रिक्ट पार्क पश्चिम पुरी,
गढ़ रहा है नए मानक लगातार,
इंसान करते हैं योग, प्राणायाम,
पास मैं सूअर करते हैं विहार,
गाय चरती हैं कूड़ा पार्क में,
कुतिया करती है बच्चों से दुलार,
युवा चलाते हैं वाइक पार्क में,
बच्चे रहते हैं साइकिल पर सवार,
अम्मा फेंकती हैं कूड़ा पार्क में,
बाबा बीड़ी पी कर करते हैं हवा में सुधार,
भैया टहलाते हैं कुत्ता पार्क में,
भाभी की आँखों से छलकता है प्यार,
बच्चे दौड़ते हैं क्यारियों में,
फूल तोड़ता है परिवार,
क्रिकेट और फुटबाल खेलकर,
घास का करते जीर्णोद्दार
खाली बोतल खोजते बीपीएल बच्चे,
दारू पीकर फेंक गए थे छोटे सरकार,
कल मनाई थी पिकनिक पार्क में,
कूडादान करता रहा इंतज़ार,
वर्ल्ड क्लास शहर है दिल्ली,
बारी जाऊं मैं बारम्बार,
क्लिक करो यदि निम्न लिंक पर,
खुल जायेंगे चित्र हज़ार.

Thursday, July 30, 2009

कचरा संस्कृति

एक महिला परेशान खोई-खोई अपने बरामदे में टहल रही थी. दोपहर का वक़्त था. उनकी पडोसन भी अपने बरामदे में आईं. इन परेशान महिला को देखा तो बोलीं, 'क्या बात है बहन, बड़ी परेशान लग रही हो. सब ठीक तो है न?'
महिला, 'हाँ सब ठीक है, बस कुछ उलझन सी हो रही है'.
पडोसन, कैसी उलझन?'
महिला, 'ऐसा लग रहा है जैसे मैंने कुछ करना था पर किया नहीं और अब याद भी नहीं आ रहा कि क्या करना था.'
पडोसन, 'अरे तो इस में परेशान क्या होना. एक-एक करके गिन लो कि क्या करना था और क्या नहीं किया. सुबह उठने से शुरू करो.
'हाँ यह ठीक है', महिला ने खुश हो कर कहा और मन ही मन गिनना शुरू किया. कुछ ही देर में ख़ुशी से चिल्लाईं, 'याद आ गया. आज मैंने अभी तक पार्क में कचरा नहीं फेंका. बस इसी बात से उलझन हो रही थी.'
पडोसन, 'चलो ठीक हुआ, अब जल्दी से कचरा फेंको पार्क में और इस उलझन से छुटकारा पाओ'.'
महिला ने जोर से आवाज लगाईं, 'अरे बहू जल्दी दे प्लास्टिक में डाल कर कचरा दे, पार्क में फेंकना है.'
'पर सासूजी कचरा तो सारा जमादार ले गया.' बहू अन्दर से चिल्लाई.
'थोडा बचाकर नहीं रख सकती थी मेरे लिए? रोज पार्क में कचरा फेंकती हूँ जानती नहीं क्या?' महिला गुस्से से चिल्लाईं.
बहू बाहर आकर बोली, 'मैंने सोचा आपने फेंक दिया होगा. रोज सुबह आप सबसे पहला काम आप यही तो करती हैं.'
'अरे आज भूल गई', महिला बोली, 'अब जल्दी से कुछ कचरा तैयार करके ले आ. जब तक कचरा पार्क में नहीं फेंकूँगी मेरी उलझन दूर नहीं होगी'.
'अब इतनी जल्दी कचरा कहाँ से पैदा करूँ?, बहू ने कहा.
'हे भगवान्, किस गंवार को हमारे पल्ले बाँध दिया. जरा सा कचरा तक नहीं पैदा कर सकती.' महिला ने परेशानी में अपने माथे पर हाथ मारा.
बहू कुछ नहीं बोली और झल्लाती हुई अन्दर चली गई. मन में सोचा, बाबूजी को क्यों नहीं फेंक देती पार्क में, बेचारों का हर समय कचरा करती रहती है.
इधर महिला और परेशान हो गई. अचानक ही उन्हें एक आईडिया सूझा. उन्होंने अपनी पडोसन से कहा, 'बहन आपके यहाँ थोडा कचरा होगा? मुझे दे दीजिये कल लोटा दूँगी. मेरा आज का काम हो जाएगा.'
'हाँ हाँ बहन ले लीजिये कचरा और लौटाने की कोई जरूरत नहीं. आप अक्सर चाय, चीनी, दूध मांगती रहती हैं. कभी लौटाया है क्या कि अब कचरा लौटाएँगी'. पडोसन मुस्कुराते हुए बोली.
महिला तिलमिलाईं पर हंसते हुए बोली, 'अब जल्दी से मंगवा दो न कचरा.'
पडोसन ने अपनी बहू को आवाज दी, 'अरे बहू थोडा कचरा एक प्लास्टिक में डाल कर ले आ. आंटी को पार्क में फेंकना है.'
बहू कचरा ले कर आई और आंटी को दे दिया. महिला ने कचरे से भरा प्लास्टिक पार्क में फेंक दिया. दूर बैठा एक कुत्ता दौड़ा हुआ आया आया. प्लास्टिक को फाड़ा और कचरे को इधर उधर फैला दिया.
महिला के चेहरे पर प्रसन्नता और शान्ति का भाव था, ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने कोई महान सामजिक और सांस्कृतिक कर्तव्य पूरा किया हो. वह हंसते हुए पड़ोसन से बोली, 'बहन आपका बहुत बहुत धन्यवाद. आपका यह उपकार जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.'
पड़ोसन बोली, 'पड़ोसी होते किस लिए हैं?'
जय कचरा संस्कृति.

Monday, June 29, 2009

The " Y " Generation

People born between 1925 and 1945....Are called...
The Silent Generation

People born between 1946 and 1964...Are called....
The Baby Boomers

People born between 1965 and 1982...Are called....
Generation X.

People born after 1983...Are called....
Generation Y

BUT.........Y
Why do we call the last group of people...Generation Y ?
I had no idea until I saw this caricaturist' s explanation!
A picture is worth a thousand words! 


Friday, May 22, 2009

आओ वंटवारा करें

मिल बाँट कर खाना हमारी खासियत है. सच पूछो तो यही खासियत हम राजनीतिबाजों की सफलता का राज है. भगवान और जनता ने एक बार फिर हमें मौका दिया है सत्ता को बांटकर खाने का. बहुत पुराने खिलाडी हैं हम सत्ता को बांटने के. खिलाडी क्या चेम्पियन नंबर वन हैं. सत्ता के लिए तो हमने देश को भी बाँट दिया था. शायद हमारी यही बात जनता को बहुत पसंद आती है.

हम बांटते हैं. जम कर बांटते हैं. पर इस बांटने में हमारा एक सिद्धांत है - 'अँधा बांटे रेवडी, अपने अपनों को दे'. इस सिद्धांत पर चलने से कुछ लोग हमसे नाराज भी रहते हैं, पर इसका एक जबदस्त फायदा है कि हमारे वफादारों की गिनती बहुत ज्यादा है. इन वफादारों में हर समय एक होड़ लगी रहती है यह दिखाने की कि कौन बड़ा वफादार है. अंग्रेज भी हमसे इस बात पर ईर्ष्या करते हैं. वफादार तो उनके भी थे पर हमारे वफादारों जैसे नहीं. हमने अपने एक वफादार को पहले से ही गद्दी का मालिक बना दिया था. उसे कहा कि तुम चुनाव भी मत लडो, कहीं हार गए तो मुश्किल हो जायेगी. दूसरों को लड़ने दो. इस वफादार ने कभी सपने में भी हम पर अविश्वास नहीं किया. हमने उसकी वफादारी का पूरा ईनाम दिया है उसे. वाकी सब वफादारों के लिए एक मिसाल है यह. हमने फिर अपना वादा निभाया - 'तुम हमें अपनी वफादारी दो हम तुम्हें सत्ता में हिस्सा देंगे'.

पिछले कई दिनों से हमारे यहाँ सत्ता का वंटवारा चल रहा है. देश के कौने-कौने से हमारे वफादार इस महान आयोजन में भाग लेने आये हैं. हमारे इन वफादारों के अपने-अपने वफादार हैं, जिन के लिए इन्होनें आगे सत्ता का वंटवारा करना है. हमारे एक वफादार चल नहीं सकते इसलिए पहिये वाली कुर्सी पर आये हैं. आखिर उन्हें अपने बेटे और बेटी के लिए सत्ता का एक टुकडा लेना है. हमने सबको यही कहा है कि सब को वफादारी का ईनाम मिलेगा. हो सकता है किसी को उसकी आशा के अनुसार न मिले, पर मिलेगा सब को.

कुछ पुराने वफादार पता नहीं किस भ्रम में चुनाव से पहले हमें धमकियाँ देने लगे थे, पर अब सही रास्ते पर आ गए हैं और हमारे दरवाजे पर लाइन लगा कर 'भिक्षाम देही मां' की गुहार लगा रहे हैं. इसको भी कुछ न कुछ भिक्षा तो हम देंगे ही, पर कब यह नहीं कहा जा सकता. सही रास्ते से भटक गए थे. इसकी कुछ सजा तो जरूर मिलेगी इन्हें.

हमारी प्यारी जनता को हमारा बहुत सारा धन्यवाद. अब जनता का काम समाप्त हुआ. अब पाँच वर्ष बाद हम फिर जनता से वोट डालने का काम करवाएंगे. तब तक इस बंटवारे के बाद अगर कुछ बचता है तो जनता को भी कुछ मिल जाएगा, पर इस की उम्मीद कुछ कम है. ऐसे-ऐसे मोटे पेट वाले वफादारों से कुछ नहीं बच पायेगा. बैसे भी जनता तो आदी हो गई है यह सब झेलने की. मंहगाई, आतंकवाद, असुरक्षा जैसे मुद्दों से हमें डर लग रहा था, पर जनता को कोई डर नहीं लगा, कोई नाराजी नहीं हुई. फिर हमें वोट डाल दिया. फिर हमें आदेश दे दिया, तुम ही सत्ता का सुख भोगो. अब हम कैसे जनता के इस आदेश की अवहेलना करें? सत्ता का सुख तो भोगना ही पड़ेगा. अब हम सुख भोगेंगे तो जनता दुःख भोगेगी. जनता का त्याग महान है. हम इस त्यागी जनता को नमस्कार करते हैं.

Friday, April 10, 2009

साइन बोर्ड्स


 
हमें अंग्रेजी आती है 

Saturday, March 7, 2009

हमारी तो आदत है यह !!!

क्या हो गया अगर हमने गांधी जी की व्यक्तिगत बस्तुओं को भारत लाने में मिली सफलता को अपनी पार्टी और सरकार की सफलता कह दिया तो? यह तो हमारी आदत है. हमने हमेशा हर सफलता को अपने खाते में लिखा है, और हर विफलता को दूसरों के खाते में. देश को आज़ादी मिली तो हमने दिलाई. जो मर गए, फांसी पर लटक गए, वेबकूफ थे. यह हमारा पहला महान काम था. इस में तो हमने गाँधी जी को भी किनारे कर दिया. सारा श्रेय हमने अपने परिवार और पार्टी को दे दिया. उसके बाद से हम लगातार ऐसे महान काम करते चले आ रहे हैं. 

आज देश के कितने शिक्षा मंदिर, अस्पताल, सड़कें, इमारतें, सरकारी योजनायें, सब हमारे परिवार के नाम पर चलती हैं. अपनी हर पीढी को भारत रत्न दिया है हमने. कुछ वबकूफ़ लोगों ने पिछले प्रधान मंत्री को भारत रत्न देने का चक्कर चलाया. हमने उन्हें उनकी जगह दिखा दी. हमारी पार्टी को हराकर प्रधानमंत्री बनने वाला व्यक्ति भारत रत्न कैसे हो सकता है? इतनी सी सीधी बात भी इन वेबकूफों की समझ में नहीं आई. हमारी पार्टी की मालिकिन की तस्वीर हर सरकारी विज्ञापन में छपती है. इस पर भी कुछ वेबकूफ ऐतराज करते हैं. करते रहें और जलते रहें. हमें क्या फर्क पड़ता है. 

'जय हो' को आस्कर मिला तो उस का श्रेय हमें जाता है. इससे पहले ओलम्पिक में पहला स्वर्ण पदक भी हमारी वजह से मिला. और भी बहुत से महान कार्य हमने किये हैं पर इस समय याद नहीं आ रहे. यह तो वेबकूफी हैं उन लोगों की जो इसे अपनी व्यकिगत सफलता मानते हैं. 

आओ और हमारी जय-जयकार करो. तुमने भी अगर कुछ अच्छा किया है तो उस का श्रेय हमें दो. यही तुम्हारा कर्तव्य है. अपना कर्तव्य पूरा करो. नहीं तो हमारी मालकिन को अच्छा नहीं लगेगा. 

Thursday, March 5, 2009

मैं हूँ न !!!

राजमाता के चरणों में शत-शत नमन. 

आप क्यों चिंता करती हैं राजमाता? आपकी लोक सभा के लिए चुनावों का कार्यक्रम आपके चुनाव आयोग ने घोषित कर दिया है. चुनाव होंगे और जरूर होंगे. आप चाहती हैं, चुनाव निष्पक्ष हों, देश के अन्दर और देश के बाहर सारी दुनिया को लगे कि चुनाव निष्पक्ष हुए हैं, इसलिए चुनाव निष्पक्ष होंगे. मेरी निष्पक्ष चुनाव की परिभाषा वही है जो आपकी है - केवल वही चुनाव निष्पक्ष है जिस में राजमाता की पार्टी जीतती है. इसलिए आप कोई चिंता न करें. में हूँ न. 

मेरे खिलाफ शिकायत थी. मेरे बड़े  आयुक्त भाई ने उस पर जांच की और मुझे दोषी पाया. मुझे पद से हटाने की सिफारिश कर दी राष्ट्रपति को. शिकायत भी सही थी, जांच भी सही थी, सिफारिश भी सही थी, पर बड़े भाई यह भूल गए कि सत्य वही होता है जिसे राजमाता सत्य कहें. राष्ट्रपति ने आपके निर्देश को सत्य माना और सबको धता बता दी. अब बड़े भाई के हटते ही मैं बड़ा भाई हो जाऊँगा. उसके बाद आपको कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है - मैं हूँ न. 

यह देश आपका है, इस देश की राष्ट्रपति आपकी हैं, इस देश के उपराष्ट्रपति आपके हैं. इस देश के प्रधान मंत्री आपके हैं. सारे  मंत्री आपके हैं. अब इस देश के चुनाव आयोग का मुखिया भी आपका है. यह सब लोग रात-दिन यही कहते रहते हैं - हम हैं न. चुनाव के मामले में भी आप कोई चिंता न करें - मैं हूँ न. 
 
मैं तो यह कहूँगा कि चुनाव की आवश्यकता ही क्या है. लोग नामांकन पत्र भरेंगे. जांच के बाद बस 'हाथ' वाले उम्मीदवार का पर्चा सही पाया जायेगा. बाकी सारे पर्चे किसी न किसी कारण से अस्वीकार कर दिए जायेंगे. सारे 'हाथ' वालों को निर्विरोध निर्वाचित कर दिया जायेगा. जिनको विरोध करना है करेंगे. सारा संसार देखेगा कि भारत में सबको विरोध करने का अधिकार है. सब यही कहेंगे कि सच्चा प्रजातंत्र है भारत. मुझे चुनाव आयोग का मुखिया बनाने में आपने भारतीय जनता और अदालत को जैसे धता बताई वैसे ही मैं भी धता बता दूंगा. आप चिंता न करें - मैं हूँ न. 

आप नाराज न हों. मैंने तो बस एक राय दी थी. ठीक है मैं समझ गया. मुझे अपनी औकात में रहना है.  आप चाहती हैं कि सब कुछ सही तरह से हो. मुझे जो गलत करना है वह भी सही तरह से हो. जहाँ सही करने से 'हाथ' को फायदा हो वहां सही करना है. यहाँ गलत करने से फायदा हो वहां गलत करना है. मतलब यह कि हर हाल में 'हाथ' को ही फायदा होना चाहिए. आप चिंता न करें ऐसा ही होगा - मैं हूँ न. 

इस पत्र को पढ़ कर जला दीजियेगा. 

आपका

मैं हूँ न. 

Monday, March 2, 2009

भारत की सबसे अच्छी नौकरी की जगह खाली है !!!

इस देश में अगर सबसे आसान काम कोई है तो वह है लोक सभा, विधान सभा, नगर निगम की सदस्यता की नौकरी. एक बार इन संस्थाओं में नौकरी पा जाइए और पांच वर्षों तक ऐयाशी कीजिए. बस यह स्थाई नौकरी नहीं है. आपको हर पांच वर्ष बाद नए सिरे से एप्लाई करना पड़ता है. पर खासबात यह है कि आपको जीवन भर पेंशन मिलती है. बस एक दिन हाजिरी लगा दीजिये और जीवन भर पेंशन का मजा लीजिये.

ऐसी नौकरी आपको कहीं नहीं मिलेगी. कोई काम नहीं, बस आराम ही आराम. दफ्तर साल में कुछ ही दिन खुलता है. इन दिनों में भी जब तब दफ्तर कुछ समय के लिए बंद हो जाता है (इसे इन दफ्तरों की भाषा में सत्र स्थगित होना कहते हैं). मान लीजिये आज आपका मूड नहीं है दफ्तर में बैठने का, तो कोई भी बात लेकर चिल्लाना शुरू कर दीजिये. इन दफ्तरों में एक कुआँ होता है, उसमें खड़े हो जाइए और चिल्लाते रहिये. मास्टरजी चुप कराने की कोशिश करेंगे. चुप मत होइए. और ज्यादा चिल्लाइये. मास्टरजी दुखी होकर छुट्टी कर देंगे.

किसी और दफ्तर में अगर आप कोई अपराध कर देंगे, जैसे रिश्वत लेना, मार-पीट करना, तब आपको सजा मिलेगी, पर इन दफ्तरों में आपको इन अपराधों की कोई सजा नहीं मिलती. इस नौकरी के लगते ही आप मान्यवर हो जाते हैं. नौकरी से पहले आपकी फोटो लोकल थाने में लगी है. मोहल्ले में कोई भी अपराध हो, पुलिस आपको थाने ले जाती है और धुलाई करती है. इन दफ्तरों में किसी तरह नौकरी हथिया लीजिये, वही पुलिस आपको सलाम करेगी और सुरक्षा प्रदान करेगी. आखिर आप दस-नम्बरी से मान्यवर हो गए हैं यह नौकरी लगते ही.

यह संस्थायें सही अर्थों में सेकुलर हैं. किसी भी धर्म का व्यक्ति हो इन संस्थाओं में नौकरी पा सकता है. यह संस्थायें सब को एक निगाह से देखती हैं. ऐसा या तो भगवान करते हैं या यह संस्थायें. आप पढ़े-लिखे हैं, आप अंगूठा-टेक हैं, कोई अंतर नहीं. आप ईमानदार हैं, आप परले दर्जे के बेईमान हैं, कोई अंतर नहीं. आपने जीवन में एक चींटी भी नहीं मारी, आपने कितने ही इंसानों को टपका दिया है, कोई अंतर नहीं. मतलब यह कि कोई भी हो, देव या दानव, सबको यहाँ नौकरी मिल सकती है.

आज कल भारत देश के सब से बड़े ऐसे दफ्तर में जगह खाली हो रहीं हैं. जल्दी ही विज्ञापन आने वाला है. ५०० से अधिक नौकरियां हैं. कोई जुगाड़ लगाइए और इस दफ्तर में एक नौकरी हथिया लीजिये. आपकी सात पुश्तें तर जायेंगी. तनख्वाह भी अच्छी है. फ्री मकान मिलता है. फ़ोन, विजली, पानी सब फ्री है. सारे भारत में घूमने का फ्री टिकट मिलता है, रेल और हवाई जहाज का. दफ्तर अटेंड करने का भत्ता भी मिलता है. और भी सारे भत्ते हैं. जब आपको नौकरी मिल जायेगी तो सब पता लग जायेगा. मतलब आपके दोनों हाथों में लड्डू (नहीं नहीं, नोटों की गड्डियां) होंगी. कुछ और गोटी फिट हो गई तो नोट ले जाने के लिए सूटकेस की जरूरत भी पड़ सकती है. नौकरी लगते ही कुछ बड़े सूटकेस खरीद लीजियेगा.

तो क्या ख्याल है, एप्लाई कर रहे हैं न? अगर हाँ, तो हमारी हार्दिक शुभकामनाएं.

Thursday, February 26, 2009

कुछ सवाल और जवाब

१. घडी बनाने की कंपनी में तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
 - यह तो समय ही बतायेगा.

२. केले की कंपनी में तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
-  काम करते हुए अक्सर फिसल जाता हूँ.

३. नए हाइवे पर तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
- इतना व्यस्त हूँ कि यह पता ही नहीं चलता कि किधर मुड़ना है. 

४. ट्रेवल एजेंसी में तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
- मैं कहीं नहीं जा रहा.

५. घूमने वाली कुर्सियों की कंपनी में तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
- अक्सर मेरा सर घूम जाता है.

६. नींबू जूस की कंपनी में तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
- इस से ज्यादा कड़वी नौकरियां कर चुका हूँ. 
 
७. गुब्बारे बनाने की कंपनी में तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
- हम इन्फ्लेशन का मुकाबला नहीं कर पा रहे.

८. क्रिस्टल बाल बनाने की कंपनी में तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
- मैं अपना फार्चून बना रहा हूँ. 

९. इतिहास की पुस्तक छापने की कंपनी में तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
- इस का भविष्य सुखद नहीं है. 
 

Monday, February 23, 2009

दरोगा जी के घर चोरी

एक दिन एक अनहोनी हो गई,
दिन दहाड़े एक दरोगाजी के घर चोरी हो गई,
फ़िर भी लोग चोर को शिष्ट बता रहे थे,
उसी के गुण गा रहे थे,
क्योंकि वह जाते-जाते एक अटेची छोड़ गया था,
और एक पत्र भी दरोगाजी की वर्दी में खोंस गया था,
निवेदन किया था,
हुजूर क्या बताएं?
इस शहर के लोग इतने गरीब हो गए हैं,
कि उनसे अपना पेट अब नहीं पल रहा है,
इसलिए मजबूर होकर आप ही के यहाँ यह कार्यक्रम रखना पड़ रहा है,
आशा है गुस्ताखी माफ़ करेंगे,
मेरे ख़िलाफ़ कोई रपट नहीं लिखेंगे,
इस गरीब की सेवाएँ याद रखेंगे,
आज भी अपना कर्तव्य निभाये जा रहा हूँ,
इस अटेची में आपका कमीशन छोड़े जा रहा हूँ. 

(मनमोहन जी के संग्रह से)

Thursday, February 19, 2009

धर्म की तिजारत

कुछ और व्यंग मनमोहन जी के संग्रह से.

उनकी तुर्बत पे एक दिया भी नहीं,
जिनके खूँ से जला चिरागे वतन.
जगमगाते हैं मकबरे उनके,
बेचते रहे जो शहीदों का कफ़न. 

मवालियों को न देखा करो हिकारत से,
न जाने कौन सा गुंडा वजीर बन जाए.

ख़ुद बाग़ के माली ने गुलशन की यह हालत की,
फूलों का लहू बेचा, खुशबू की तिजारत की.

तुम्हें हिंदू की चाहत है न मुस्लिम से अदावत है,
तुम्हारा धर्म सदियों से तिजारत था, तिजारत है.

शायद कोई लीडर नहीं गुजरा है इधर से,
बस्ती में बहुत दिन से अमन देख रहा हूँ. 

Monday, February 9, 2009

कुछ और व्यंग रचनाएं - आज की राजनीति

मनमोहन जी के व्यंग संग्रह से कुछ और रचनाएं प्रस्तुत हैं. संग्रह में रचनाएं कुछ अपनी हैं कुछ दूसरों की. लेखकों का पता नहीं है इस लिए सबको बेनाम धन्यवाद. 

समय समय की बात है, समय समय का योग,
सिक्कों  में  तुलने  लगे  दो  कौड़ी    के     लोग.

बात गोली से कभी पार चली जाती है,
ज्यादा घिसने से सभी धार चली जाती है,
मिले कुर्सी तो औकात न भूलें, लिख लें,
एक ही झटके में सरकार चली जाती है.

जमीन बेच देंगे, गगन बेच देंगे,
यह मुर्दों के सर का कफ़न बेच देंगे,
कलम के सिपाही अगर चुप रहे तो,
वतन के यह नेता वतन बेच देंगे.

ख़ुद लूट लिया काफिला अपना ही जिन्होनें,
ऐसे ही हमें काफिला सालार मिले हैं.

इस दौर के हालत से मजबूर हो गया,
इंसान आज ख़ुद से बहुत दूर हो गया,
राहजन बनाए जाते हैं अब राहबर यहाँ,
क्या खूब अपने मुल्क का दस्तूर हो गया. 

Monday, February 2, 2009

मनमोहन जी का व्यंग संग्रह

वह पेशे से वकील हैं, पर रूचि रखते हैं हास्य-व्यंग में. 
ख़ुद भी व्यंग रचना करते हैं, और यहाँ-वहां से सुनी-पढीं व्यंग रचनाएं संग्रहित भी करते हैं. उनके संग्रह से स्वरचित एक रचना आप सबको समर्पित है.

है कलिकाल तुम्हारी माया,
सचमुच तीन लोक से न्यारी.
मानवता का पाठ पढाते,
कपटी, लोभी, भ्रष्टाचारी.

सच्चे संत महापुरुषों की,
शर्म से गर्दन झुकी हुई है.
पाखंडी गुरुओं को मिल गई,
आज धर्म की ठेकेदारी.

मानवता मिल गई एक दिन,
मैंने देखा बुरा हाल था.
बुरी तरह से बिखरी-बिखरी,
टूटी-टूटी,हारी-हारी. 

Wednesday, January 28, 2009

कुछ चुटकुले

नया साल शुरू हुआ है. इस साल की पहली चुटकुला पोस्ट हाजिर है. 

फ्रिज बिकाऊ है
हमारे एक मित्र कानून का बहुत सम्मान करते हैं. उन्होंने एक नया फ्रिज ख़रीदा. अब समस्या थी कि पुराने फ्रिज का क्या करें. उन्होंने एक एजेंसी से बात की कि पुराने फ्रिज को बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए डिस्पोज करने में कितने रुपए  लगेंगे. एजेंसी ने एक मोटा खर्चा बता दिया. मित्र ने कुछ सोच कर फ्रिज घर के बाहर बगीचे में रख दिया और उस पर एक बोर्ड लगा दिया - आप चाहें तो इसे मुफ्त अपने घर ले जा सकते हैं. हफ्ता गुजर गया पर किसी ने फ्रिज को हाथ भी नहीं लगाया. मित्र ने फ़िर सोचा और बोर्ड बदल दिया. अब उस पर लिखा था - फ्रिज बिकाऊ है, मात्र ५०० रुपए. दूसरे दिन फ्रिज चोरी हो गया. 

फ़िर धो दो
मित्र की पत्नी ने घर बजट में बचत करने के लिए अपनी एक ड्रेस को ड्राई-क्लीन न करवा कर घर में ही धो लिया. पति को प्रभावित  करने के लिए उन्होंने यह बात उन्हें बताई और कहा देखो मैंने ५० रुपए बचा लिए. पति अखबार पढने में व्यस्त थे. उन्होंने कहा, 'एक बार फ़िर धो लो, ५० रुपए और बच जायेंगे'. 

पिज्जा 
मित्र घर वापस जाते हुए बाज़ार होते हुए निकले. एक पिज्जा की दूकान पर पहुंचे और एक पिज्जा पैक करने का ऑर्डर दिया. दूकानदार ने पूछा कि पिज्जा के चार टुकड़े करें या छै. मित्र ने काफ़ी देर सोचा और बोले, 'चार टुकड़े करना, क्योंकि मुझे इतनी भूख नहीं लगी है कि छै टुकड़े खा सकूं'. 

अब कौन घोषणा करेगा?
पहले तेल मंत्री ने, फ़िर ग्रह मंत्री ने, फ़िर कांग्रेस माता ने घोषणा की कि पेट्रोल और डीजल की कीमत कम हो सकती है. मित्र जो काफ़ी समय से कीमत कम होने की प्रतीक्षा कर रहे थे बहुत झल्लाए, 'अरे अब बस भी करो, कितनी लम्बी लिस्ट है घोषणा करने वालों की? लिस्ट छाप दो, हमें पता लग जायेगा कि अब कौन घोषणा करेगा. साले घोषणा किए जा रहे हैं, कीमतें कम नहीं करते'.

अब किसका नंबर है?
प्रधान मंत्री अस्पताल चले गए आपरेशन करवाने. अब स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं. 
घोषणा हुई कि विदेश मंत्री प्रधान मंत्री का काम देखंगे.वह श्रीलंका चले गए उनकी समस्या सुलझाने. 
घोषणा हुई कि रक्षा मंत्री प्रधान मंत्री का काम देखंगे. 
मित्र बहुत झल्लाए, 'यह पाकिस्तान चले जायेंगे उनकी समस्या सुलझाने. इनके बाद किसका नंबर है?'
फ़िर ख़ुद ही सुझाव दिया, 'सब को बाहर भेज दो और राहुल को प्रधान मंत्री बना दो. रिहर्सल हो जायेगा लोक सभा चुनाव के बाद प्रधान मंत्री बनने का'. 

आतंकियों को गोली मार दी
विश्वस्त सूत्रों से ख़बर मिली है कि कुछ आतंकियों को पाकिस्तान में गोली मार दी गई है. यह घटना यह बात पता चलने पर हुई कि गणतंत्र दिवस परेड में अभूतपूर्व सुरक्षा के वाबजूद किसी ने एक जापानी राजनयिक का बैग चुरा लिया. उनका अपराध यह माना गया कि जब एक टुच्चा चोर अन्दर घुस कर बैग चुरा सकता है तो तुम साले यहाँ पाकिस्तान में क्या भाड़ झोंक रहे थे. मुंबई में तम्हारे कुछ साथी क्या मर गए कि तुम सबकी हवा निकल गई. 'गणतंत्र दिवस परेड में अभूतपूर्व सुरक्षा है' का बहाना बना कर साले हिन्दुस्तान से भाग कर घर आ गए. लो अब वहां नहीं मरे तो यहाँ मरो. 

चोर मीडिया
राहुल के कुछ कागज़ चोरी करने का इल्जाम टीवी वालों पर लगाया गया है. क्या था उन कागजों में? 

Sunday, January 25, 2009

पार्क में योग - बेचारे योगी

स्वामी रामदेव ने योग को आम आदमी का योग बना दिया है. अब आपको किसी योग संस्थान में जाने की जरूरत नहीं है. स्वामी जी के एक सप्ताह के योग शिविर  में भाग लीजिये और योग प्रारंभ कर दीजिये. यह भी न कर पायें तो टीवी पर उनका कार्यक्रम देखिये और योग शुरू कर दीजिये. आज कल किसी पार्क में जाइए, आपको लोग प्राणायाम करते नजर आ जायेंगे. कोई अकेले, कोई दुकेले. कहीं स्वामी जी से योग शिक्षण लिए हुए कोई सज्जन योग की क्लास चला रहे हैं. 

में जिस पार्क में जाता हूँ वहां भी इसी तरह की एक योग क्लास चलती है. पुरूष और महिलायें दोनों ही उस में भाग लेते हैं. पर बेचारे यह योगी पार्क के मालियों द्वारा बहुत तंग किए जाते हैं. यह पार्क डीडीऐ का एक डिस्ट्रिक्ट पार्क है, पर बहुत ही दयनीय स्थिति में है. दिन में माली पार्क में पानी चला देते हैं. शायद वह ऐसा पार्क में घास उगाने के लिए करते हैं, पर यह सिर्फ़ समय और पानी की बर्बादी है. पार्क में सूअर और कुत्ते बिना रोक टोक के घूमते हैं. कभी-कभी तो लगता है कि डीडीऐ ने यह पार्क इंसानों के लिए नहीं, सूअर और कुत्तों के लिए बनाया है. इन्होनें पार्क की अधिकतर जमीन को खोद डाला है. हरी घास ख़त्म हो गई है और जमीन नंगी हो गई है. अब वहां घास उगने की कोई सम्भावना नहीं है. फ़िर भी न जाने क्यों माली रोज पानी चला देते हैं. शायद ऐसा करके वह समझते हैं कि उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है. 

इंसानों की तरह पार्कों में भी वीआइपी पार्क होते हैं. इस पार्क की गिनती तो लगता है आम पार्कों में भी नहीं होती, वरना सूअर और कुत्तों का पार्क में क्या काम. दिल्ली में ऐसे कितने डीडीऐ  के पार्क हैं जिन पर किसी भी शहर को गर्व हो सकता है, पर एक पार्क यह भी है जो शहर के नाम पर कलंक है. लोग यहाँ कूड़ा फेंकते हैं. पालतू कुत्तों को टहलाने लाते हैं, हालांकि  इस पर पार्क के कुत्ते और सूअर ऐतराज करते हैं. जुआरी और शराबियों के लिए यह पार्क स्वर्ग है. घूमने के रास्ते कच्चे हैं, उबड़-खाबड़, जगह-जगह पत्थर बाहर निकले हुए, क्यारिओं से पानी इन रास्तों पर आ जाता है और कीचड़ हो जाती है. लोग फिसल जाते हैं. बरसात में तो इन रास्तों पर घूमना खतरा मोल लेना है. एक साल पहले पश्चिम पुरी के २५० निवासियों ने हस्ताक्षर करके एक ज्ञापन इस छेत्र के प्रतिनिधियों को दिया था - एमपी, विधायक, निगम पार्षद. पर कुछ नहीं हुआ. 

पार्क में रौशनी के नाम पर एक बल्ब भी नहीं जलता. आस-पास के लोग बल्ब, होल्डर, स्विच आदि को अपना मान कर अपने घर ले गए हैं. सुबह जब यह योगी पार्क में आते हैं तो अँधेरा होता है. बेचारे सब तरफ़ घूम कर कोई सूखी जगह तलाश करते हैं. मैं उन्हें रोज किसी नई जगह पर योग करते देखता हूँ. आज भी ऐसा ही हुआ. एक अन्तर जरूर था. आज केवल महिलायें ही आई थीं. न जाने किस कारण से पुरूष आज अनुपस्थित थे. क्योंकि आज केवल महिलायें ही थीं इसलिए योग कम और बात-चीत ज्यादा हुई. 

एक महिला पार्क की दुर्दशा पर बहुत खफा थीं. उन्होंने इस छेत्र के विधायक का नाम लेकर कहा कि उसे पकड़ कर लाओ और इस पार्क की दुर्दशा दिखाओ और उस से पूछो कि क्या इस लिए हमने उसे जिताया है. मुझे उनकी यह बात सुन कर बहुत हँसी आई. इस नेतातान्त्रिक देश में क्या कोई किसी नेता को पकड़ सकता है या उसे पकड़ कर कहीं ले जा सकता है? यह महिला सबके साथ रोज मां शारदा से प्रार्थना करती हैं - 
हे शारदे मां, हे शारदे मां,
अज्ञानता से हमें तार दे मां.
और फ़िर ऐसी अज्ञानता की बात करती हैं.
मां शारदा भी इनकी इस अज्ञानता पर मुस्कुरा रही होंगी. इन्हें इतना भी नहीं मालूम कि:
बड़े लड़ैया हैं यह नेता, इनकी मार सही न जाए,
एक को मारें दो मर जाएँ, तीसरा मरे सनाका खाए. 
नेता जी इस बार फ़िर जीत गए. गया पार्क खड्डे में पाँच साल के लिए. हो सकता है तब तक पार्क ही न रहे, पार्किंग लाट बन जाए, कोई माल बन जाए, नए वोट बेंक की झुग्गी-झोंपडी बन जाएँ. 

योग तो करते हैं लोग इस पार्क में, घूमते भी हैं, पर यह भी एक मजबूरी है, जाएँ तो जाएँ कहाँ? 

Wednesday, January 21, 2009

वर्ष २००९ का ऐतिहासिक रविवार !!!

अभी वर्ष २००९ पूरी तरह शुरू भी नहीं हुआ था कि एक ऐतिहासक घटना घट गई. मैं बराक ओबामा के अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने की बात नहीं कर रहा. मैं बात कर रहा हूँ भारत में घटी एक ऐतिहासिक घटना की. हुआ यह कि भारत के मनोनीत प्रधान मंत्री अपने ड्राइविंग लाइसेंस का नवीनीकरण करवाने आरटीओ दफ्तर गए. आज़ादी के बाद आज तक किसी प्रधान मंत्री ने ऐसा महान कार्य नहीं किया. यह भी हो सकता है कि महानता की ऐसी मिसाल पूरे विश्व में भी न हो. कहाँ दुनिया के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश का प्रधान मंत्री (भले ही मनोनीत हो) और कहाँ एक टुच्चा सा आरटीओ दफ्तर.  कोई सपने में भी यह सोचने की हिमाकत नहीं कर सकता था कि प्रधान मंत्री वहां जायेंगे और वह भी एक टुच्चे  से ड्राइविंग लाइसेंस का नवीकरण करवाने. आप किसी दलाल को पैसे दीजिये और घर बैठे ड्राइविंग लाइसेंस का नवीकरण क्या, नया लाइसेंस ही बनवा लीजिये. हैरानी की बात यह है कि क्या उन्हें यह बात मालूम नहीं थी या उनके किसी सलाहकार ने उन्हें यह नहीं बताया कि यह काम तो कुछ ही पैसों में हो जाता, और इसके लिए देश का इतना महत्वपूर्ण समय और सुरक्षा पर लाखों रुपए खर्च करने की जरूरत नहीं थी. 

हमारे एक मित्र यह सुन कर कहने लगे कि मियाँ तुम समझते तो हो नहीं, बस इन महान लोगों के पीछे लेपटाप लेकर पड़े  रहते हो. अरे भई लोक सभा चुनाव का काउंट डाउन शुरू हो चुका है. अब ऐसे कई महानता के रिकार्ड कायम किए जायेंगे. उनकी पार्टी के एक प्रवक्ता ने पहले ही इस महान कार्य को दूसरों के लिए एक उदाहरण बता दिया है. बैसे तुम्हारे अटल जी भी तो यह महान कार्य कर सकते थे, क्यों नहीं किया उन्होंने? बस 'भारत चमक रहा है' चिल्लाते रहे और चुनाव हार गए. 
'अटल जी मेरे नहीं हैं', मैंने बुरा मानते हुए कहा, 'मैं तो कायदे की बात कर रहा हूँ'. 
'बस फ़िर वही पुराना राग, मियां इन राजनीतिबाजों का कायदे से क्या लेना-देना?' मित्र ने चुटकी ली, 'कायदे की बात करें तो अखबार में लिखा था कि लाइसेंस की मियाद एक महीने पहले ही ख़त्म हो चुकी थी'.
मैंने कहा, 'पर मेरे अखबार में तो लिखा था कि लाइसेंस की मियाद कुछ दिन और बाकी थी'. 
'और क्या लिखा था तुम्हारे अखबार में', मित्र ने पूछा.
'लो तुम ख़ुद ही पढ़ लो', हमने उस महान ख़बर वाला महान अखबार उन की तरफ़ बढ़ा दिया. 

अखबार के अनुसार प्रधान मंत्री ने लाइसेंस का नवीनीकरण रविवार को करवाया था. उस दिन दफ्तर विशेष रूप से खोला गया था. सम्बंधित अधिकारिओं और कर्मचारियों को छुट्टी के दिन विशेष रूप से दफ्तर बुलाया गया था. यह पढ़ कर हमारे मित्र झल्ला गए, 'इस में महानता की क्या बात है?, किसी आम आदमी के काम के लिए तो छुट्टी के दिन दफ्तर नहीं खोला जाता'. 
हमें हँसी आ गई, 'यार अब तो तुम बुरा मान रहे हो. प्रधान मंत्री की यह महानता देख कर अधिकारिओं और कर्मचारियों को भी महानता का अनुभव हो रहा था. उन्होंने छुट्टी के दिन दफ्तर बुलाने का बिल्कुल बुरा नहीं माना. प्रधान मंत्री आम आदमियों की तरह हर काम के लिए लाइन में लगे'.
'और लाइन में वह अकेले थे. यह नहीं कहोगे', मित्र ने फ़िर चुटकी ली.
'नहीं, उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं. उन्होंने सोचा कि लगे हाथ अपना ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवा लूँ'. हमने बताया. 
'बिना लर्निंग लाइसेंस के?' मित्र बोले. 
'पता नहीं यार, छोड़ो इन बातों को, महानता की मिसाल तो कायम हो गई. मेरा सुझाव है कि हर वर्ष जनवरी के तीसरे रविवार को 'राष्ट्रीय महानता दिवस' के रूप में मनाया जाय. सब लोग कम से कम एक महान काम करें. सोचो जरा कैसा लगेगा? हर तरफ़ हर आदमी महान काम कर के महान बना घूम रहा है. राजनीतिबाज, पुलिस वाले, सरकारी बाबू, वकील, डाक्टर हर कोई महान काम कर रहा है. एक दिन के लिए ही सही, सारा भारत देश महान हो गया है'. हमने कहा.
मित्र ने सहमति जतायी और बोले, 'यार एक बात और भी है. जिस ड्राइविंग लाइसेंस के कारण प्रधान मंत्री को यह महानता दिखाने का मौका मिला वह भी तो एक महान ऐतिहासिक दस्तावेज हो गया है. मेरे विचार में उसके लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार में स्थान सुरक्षित कर दिया जाना चाहिए, जहाँ बाद में उसे रख दिया जाय और जिसे देख कर लोग महान काम करने के लिए प्रेरणा ले सकें'. 

अब हमें लग रहा है कि इस महानता के बारे में बात करके और ऐसे महान सुझाव दे कर हम भी महान हो गए हैं. 
बोलो महान रविवार की जय. 
नहीं, नहीं, बोलो जनवरी के तीसरे महान रविवार की जय.
महान ड्राइविंग लाइसेंस की जय.
महान ड्राइविंग लाइसेंस के महान नवीकरण की जय.
हमारे और हमारे मित्र के महान सुझावों की जय.
इस महान व्यंग को पढने वाले आप सब महान पाठकों की जय. 
महान टिप्पणीकारों की जय.  

Monday, January 19, 2009

क्यों भई क्यों, आख़िर क्यों?

नजर आती है उनकी तस्वीर,
हर सरकारी विज्ञापन में,
आख़िर कौन हैं वह?
क्या पोजीशन है उनकी?
भारत सरकार में?

सरकार के हर फैसले में,
क्यों नजर आती है?
उनकी दखलंदाजी,
क्यों झुकी रहती है हर समय?
सरकार उनके क़दमों में,

एक देश की गुलामी से मुक्त होकर,
हो गए गुलाम भारतवासी,
एक परिवार के,
एक परिवार के मुखिया के,
कैसी आज़ादी है यह?

क्यों भई क्यों, आख़िर क्यों? 

Friday, January 16, 2009

काम सरकार का, क्रेडिट राजमाता को

सरकार ने मीडिया पर लगाम कसने की बात की तो हल्ला मच गया. मुंबई हमलों में यह तो सबने देखा है कि जैसे गोली-पर-गोली रिपोर्टिंग की जा रही थी उस से आतंकियों को फायदा तो जरूर हुआ. अन्दर बैठकर उन्हें पता चल रहा था कि बाहर क्या हो रहा है. पर मीडिया की भी अपनी मजबूरी है. कम्पटीशन इतना ज्यादा है कि एंकरों को बार-बार यह कहना पड़ता था कि यह जो आप देख रहे हैं बस हमारा चेनल ही आपको दिखा रहा है. अब हर बात का क्रेडिट लेने पर राजनीतिबाजों का तो एकाधिकार नहीं हो सकता. मीडिया को भी यह अधिकार मिलना चाहिए. 

मीडिया वाले प्रधान मंत्री से मिले और उन्होंने पूर्ण आश्वासन दे दिया कि बहुत सोच-समझ और विचार-विमर्श के बाद ही कानून में कोई बदलाव किया जायेगा. प्रधान मंत्री सरकार के प्रमुख हैं. उनके आश्वासन से मीडिया आश्वस्त हो गया. इस बात का क्रेडिट प्रधान मंत्री को मिल गया. लेकिन कांग्रेस की मालकिन और राजमाता को तो कोई क्रेडिट नहीं मिला. यह बात ग़लत हो गई. मीडिया वालों को तुंरत राजमाता के दरबार में हाज़िर होने की हिदायत दी गई. वह हाज़िर हुए और राजमाता ने आदेश दिया कि सरकार कानून में ऐसा कोई बदलाव नहीं करेगी. अब आप यह पूछ सकते हैं कि राजमाता कोई सरकारमाता तो हैं नहीं, उन्होंने कैसे यह कह दिया कि सरकार यह नहीं करेगी? पूछिए,जरूर पूछिए. अब मेरा भी जवाब सुन लीजिये. आप भारत में रहते हैं या कहीं और? 

जब कांग्रेस और करात में ऊपरी दोस्ती थी तो प्रधान मंत्री अक्सर कुछ ऐसा कह देते थे कि करात नाराज हो आते थे. फ़िर राजमाता की और से उनके प्रिय चाटुकार  प्रणब करात के पास जाते थे और मनमोहन जी को माफ़ करवाते थे, करात का गुस्सा ठंडा करवाते थे. सारा क्रेडिट राजमाता को मिलता था. अब देखिये, इंग्लेंड से आए विदेश सचिव ने मुंबई मामले पर भारत सरकार की हर बात को दुत्कार दिया, 'मैं नहीं मानता कि पाकिस्तान की सरकारी एजेंसियां इन हमलों में शामिल थीं. मैं यह भी नहीं मानता कि इन हमलों के लिए जिम्मेदार आतंकियों को भारत के हवाले किया जाय. इन पर पाकिस्तान में ही मुकदमा चलेगा.' सरकार की फुस-फुस हो गई. सरकारी प्रवक्ता ने इसे सचिव महोदय की व्यक्तिगत राय कह कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली. अब राजमाता ने सचिव महोदय को राहुल बाबा के साथ अमेठी घूमने भेज दिया है. वहां बाबा उन्हें क्या दिखा रहे हैं यह तो आपको बाबा या सचिव से पूचना पड़ेगा? इस बारे में हम कोई अनुमान भी नहीं लगा सकते. एक आम आदमी, राजा लोग जब ऐसे घूमने जाते हैं तो क्या करते हैं उसका अनुमान कैसे लगा सकता है? हाँ  अगर किसी वजह से सचिव महोदय ने अपनी व्यक्तिगत राय बदल दी तो इस का क्रेडिट राजमाता को मिल जायेगा. ऐसे बन जायेगी बात. 

Monday, January 12, 2009

नए साल पर नया धंधा

हमने एक मन्दिर बनाया,
भगवान को उस में बिठाया,
एक बड़ा संदूक ला कर,
उस पर दान पात्र लिखवा कर,
मोटा एक ताला लगा कर,
नए साल पर धूम-धाम से,
खोली एक नई दूकान,
धंधा चले खूब भगवान.

हम दहेज़ के ख़िलाफ़ हैं,
हमें कुछ नहीं चाहिए,
आपकी बेटी है,
आप चाहेंगे सुख से रहे,
उसे जो देंगे और देते रहेंगे,
आपके और उसके बीच की बात है. 

पडोसन बोली,
कब कर रही हो बेटे की शादी?
बेटे को पढाया, लिखाया,
हर तरह से काबिल बनाया,
अब वह अपने पैरों पर खड़ा है,
न जाने क्यों इस बात पर अडा है,
मास्टर जी का बेटा पसंद है उसे,
कहता है उसी से करूंगा शादी.


Sunday, January 11, 2009

मुन्नाभाई एमबीबीएस बनेंगे स्वास्थ्य मंत्री

किसी ने राम जे से पूछा, 'आपने संजय का मुकदमा लड़ा था, पर अब जब उस ने चुनाव लड़ने का सोचा तो आपने न जाने क्या-क्या कह डाला. उसके एमपी बनने को देश के लिए खतरा बता दिया'. 
'क्यों न कहूं?', राम जे बोले, 'मुक़दमे की फीस नहीं मिली अभी तक'. 

किसी ने अमर से पूछा, 'आपने कहा संजय को चुनाव में खड़ा करेंगे, अगर अदालत ने आपत्ति की तो मान्यता को खड़ा कर देंगे, क्या कोई और नहीं मिल रहा आपको?'
अमर बोले, 'यह कांग्रेस के एकाधिकार के ख़िलाफ़ हमारी जंग है. क्या कांग्रेस का दत्त परिवार पर एकाधिकार है? पहले पिताजी, फ़िर बेटी, अब नजर डाल रहे थे बेटे पर. हमने उनसे पहले , अपना दावा ठोक दिया.'

किसी ने अर्जुन से पूछा, 'जब आपने कहा था उन्हें पीएम बनाओ तो आपको डांट पड़ी थी, अब जब प्रणब ने यही कहा तो किसी न उन्हें नहीं डांटा. यह भेद-भावः क्यों?'
'अपना-अपना मुकद्दर है. लगता है प्रणब की चमचागिरी मेरी चमचागिरी से ज्यादा पसंद है उन्हें.', वह दुखी मन से बोले. 

किसी ने अमर से फ़िर पूछा, 'अगर संजय जीत गए और आपकी सरकार बन गई तो उन्हें कौन सा मंत्रालय देंगे?'
'स्वास्थ्य मंत्रालय' उन्होंने तुंरत जवाब दिया, 'आपने देखा नहीं, उसने डाक्टरी परीक्षा में टॉप किया था उस फ़िल्म में, और कितने मरीजों को ठीक किया था. संजय से अच्छा स्वास्थ्य मंत्री हो ही नहीं सकता'. 
'लेकिन वह तो ऐक्टिंग थी'. 
'अरे भाई, असल में भी तो ऐक्टिंग ही करते हैं स्वास्थ्य मंत्री'. 
'लेकिन संजय ने तो दादागिरी की थी'.
'और इन्होनें भी तो दादागिरी ही की थी एम्स के निदेशक के ख़िलाफ़'. 

किसी ने गिलानी से कहा, 'आप ने खूब खरी-खोटी सुनाई भारत और सारी दुनिया को. किस ने लिखा था यह भाषण?' 
'किसी ने नहीं. जरदारी साहब ने अपने आफिस में बुला कर सारी तोहमत मेरे ऊपर लगा दी मुंबई हमले की. मेरा दिमाग फ़िर गया. बस में बाहर आया और शुरू हो गया'. गिलानी ने खुलासा किया. 
'भारत में टीवी वाले खूब मजाक उड़ा रहे थे आपका'. 
'उडाने दो. हमने उनके इतने आदमियों को उड़ा दिया. उन्हें कम से कम मजाक तो उडाने दो', गिलानी ने अपनी पीठ ठोकते हुए कहा. 


Friday, January 9, 2009

बच्चों के चुटकुले

आज कल के बच्चे बहुत तेज हैं. कुछ बच्चे चुटकुले सुना रहे थे. आप भी पढिये .

एक बच्चे ने चुटकुला सुनाया.
एक आतंकवादी ने माला के घर में बम रख दिया. 
पड़ोसियों ने देखा तो चिल्लाये, 'संभल कर, माला बम है, माला बम है'. 
माला ने सुना तो हंसने लगी, 'अब नहीं, वह तो में जवानी में थी'. 

एक बच्चे ने पहेली पूछी. 
जो जानवर जमीन पर रहते हैं वह बच्चे देते हैं, पर पक्षी हवा में उड़ते हैं और वह अंडे देते हैं. वह कौन है जो हवा में उड़ते हैं पर बच्चे देते हैं?
बच्चे सोचने लगे पर उत्तर नहीं ढूँढ पाये. सबने हार मान ली.
उस बच्चे ने उत्तर बताया, 'एयर होस्टेस'. 

एक और बच्चे ने चुटकुला सुनाया.
हमारे पड़ोसी ने अपने माली से कहा, 'पौधों को पानी दे दो'.
माली ने कहा, 'मालिक, वारिश हो रही है'. 
पड़ोसी चिल्लाये, 'कामचोर, छाता लगा कर पानी नहीं दे सकते'. 

और पढिये .
एक डाक्टर एक आदमी के पीछे भाग रहा था.
किसी ने पूछा, 'क्या हुआ डाक्टर साहब?'
डाक्टर बोला, 'साला, कई बार दिमाग का आपरेशन करवाने आया और बाल कटवा कर भाग गया'. 

अब यह पढिये .
लड़का, 'जानेमन  इस  दिल  में  आजा'.
लड़की, 'सेंडल  निकालू  क्या?
लड़का, पगली, यह कोई मन्दिर थोड़े  ही  है, ऐसे  ही  आजा'. 

एक और.
एक आदमी प्लेटफार्म पर बैठा सिगरेट पी रहा था. एक औरत आई और उसके पास बेंच पर बैठ गई. सिगरेट के धुएँ से परेशान होने पर उसने आदमी से कहा, 'जनाब अगर आप एक अच्छे इंसान होते तो यहाँ पर सिगरेट नहीं पीते'. 
आदमी बोला, 'अगर आप अच्छी इंसान होतीं तो थोड़ा दूर पर बैठतीं'. 
कुछ देर बाद औरत ने गुस्से से फ़िर कहा, 'अगर आप मेरे पति होते तो मैं आपको जहर दे देती'. 
आदमी मुस्कुराया और बोला, 'यकीन कीजिए, अगर आप मेरी पत्नी होतीं तो मैं खुशी से जहर पी लेता'. 

Sunday, January 4, 2009

"अब मेरी शादी हो जायेगी"

मेरी जानकारी में एक सज्जन हैं. उन्होंने हजारों लड़कियों को पसंद किया पर न जाने क्यों किसी लड़की ने उन्हें पसंद नहीं किया. बेचारे कुंवारे रह गए. 
कल मिले तो बहुत खुश थे. 
मैंने पूछा, 'भाई क्या बात है आज तो बहुत खुश नजर आ रहे हो'. 
वह बोले, 'खुशी की ही तो बात है, अब मेरी शादी हो जायेगी'. 
मैंने कहा, 'यह तो बहुत अच्छी बात है, पर यह चमत्कार हुआ कैसे?'
उन्होंने समझाया, 'भाई, तालिबान ने हुक्मनामा जारी किया है कि लोग अपनी लड़कियों की शादी तालिबान से कर दें'. 
मैंने कहा, 'हाँ भाई, यह तो मैंने भी सुना है. पर इस से आपकी शादी कैसे हो जायेगी?' 
वह हंस कर बोले, 'भाई बहुत अक्लमंद बनते हो पर यह भी नहीं समझ पाये, अरे भाई, धर्म बदल कर दो चार हिन्दुओं का खून कर के तालिबान बन जाऊँगा और अफगानिस्तान भाग जाऊंगा.  तालिबान तो अब कोई कुंवारा रहेगा नहीं. इस चक्कर में मेरी भी शादी हो जायेगी'. 
मैं चकरा गया पर मन-ही-मन उनकी अक्ल की तारीफ़ भी करनी पड़ी. चाँद को धर्म बदलने से उसकी प्रेमिका मिल गई. इन्हें भी धर्म बदल कर बीबी तो मिल ही जानी चाहिए. 

Friday, January 2, 2009

वोटों की राजनीति - चुटकुले या सच्चाई?

जब मार्गरेट अल्वा बोलीं,
तब बुरा लगा और 'हाथ' उठा, 
जब नारायण राने बोले,
तब भी बुरा लगा और 'हाथ' उठा, 
पर जब अंतुले बोले,
न बुरा लगा, न 'हाथ' उठा. 

जान हथेली पर रख कर,
जनता ने दिया जवाब,
आतंक को, अलगाववाद को, 
पर जिन्हें चुना, उन्होंने किया,
सत्ता का बंटवारा, सेवा का नहीं.

उन्होंने फरमाया, 
जन्म दिन मनाना है नेता का,
पैसा दो या जान से जाओ,
नेता डाकू भाई-भाई.  

हमने जन्म दिन मनाया,
कई महीनों का बजट बिगड़ गया,
उन्होंने जन्म दिन मनाया,
कई पीढियों का जीवन संवर गया.

पन्द्रह मिनट में उन्नीस बिल,
बेहयाई का रिकार्ड कायम किया,
जन-प्रतिनिधियों ने. 

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